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Showing posts from February, 2010

सभी परिन्दे उड़ जाते हैं पेड़ खड़ा रह जाता है।

नैनपुर की पहचान उमाशंकर के साथ होती है। नैनपुर के सबसे बड़े भूखण्ड के वे स्वामी थे। स्कूल , कारखाने, गोदाम , बिल्डिंग , बैंक भवन ,जीवनबीमा भवन सब उनके थे। सबसे ज्यादा लोग उनके थे । अमीर उनके थे गरीब उनके थे। सभी विभागों के अधिकारी उनके थे। छोटे बड़े कर्मचारी उनके थे। वे अपने एक मित्र के इलाज के सिलसिले में मुबई गए थे। एक होटल में कमरा बुक करा रहे थे। फोन पर बात करते हुए वे एक खराब लिफ्ट के टूटे हुए बाटम से नीच गिर गए। उनके न रहने की खबर नगर को मिली और सब स्तब्ध रह गए। हमने सीखा है सलीक़ा तुम्हीं से जीने का। दर्द सहने की अदा ,ढंग ज़ख़्म सीने का । हादसों और करिश्मों से भरी दुनिया में, मौत दरवाज़ा खुला छोड़ती है ज़ीने का।। 0 रखी तुमने बुनियाद , जब ज़िन्दगी की। अदा हमने सीखी है , तब जिन्दगी की। वो मुस्काते आना , वो मुस्काते जाना, तुम्हें आंखें ढूंढेगी , अब ज़िन्दगी की।। 0 इस मिट्टी का चलन निराला , गिनगिन बोते अनगिन पाते। बीच सड़क का नगर ज़िन्दगी , कितने आते कितने जाते। पत्थर होकर रह जाते हैं , शिलालेख लिखवानेवाले , अमिट वही चेहरे होते जो दिल पर छाप छोड़कर जाते ।। 0 भीड़ भाड़ से भरा रास्ता यहीं पड़ा रह जात...

भटा-भात और ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा

श्रीमान भटा को कौन नहीं जानता। भटाप्रसाद आलूलाल के कनिष्ठ और गोभीरानी के ज्येष्ठ भ्राताश्री हंै। शाकाहार करनेवालों की परम्परा में जैसे अध्यात्म के त्रिदेव हंै, वैसे ही सब्जी में यही तीन देवता प्रसिद्ध हैं। भटे के बारे में कुछ और बातें कहने के पहले भटे पर एक कवितानुमा गद्य या गद्यनुमा कविता या कवितानुमा तुकबाज़ी पढ़ें। कवि कहता है- जैसे जुल्फों को घटा कहते हैं , जैसे जूड़े को जटा कहते हैं , जैसे पीढ़े को पटा कहते हैं , वैसे ही बैंगन को भटा कहते हैं । जैसे ऊंट की करबट होती है वैसे बैंगन की एक थाली होती है ऊंट की करबट को लोग नहीं जानते बैंगन की फितरत को थाली तक नहीं जानती। कहते हैं बैंगन यानी भटा बादी होता है इसकी एलर्जी होती है किसी को सूजन होती है किसी को खुजली होती है सुना है भटा खाकर जो करते हंै यात्रा वो भटक जाते हैं हालांकि ऐसा सुनकर भटा-प्रेमियों के मुंह लटक जाते हैं यानी भटे के कई रूप है ,कई रंग है सब्जियों के राजा आलू के वह संग है ,अंतरंग है यूं तो गोभीरानी का भी भटा साथ निभाता है परन्तु कभी कभी गुरुदेव रवीन्द्र की तरह अकेला ही पतीली में ...

स्वयंवरों का देश

वैश्विक बाजारवाद में संस्कृतियों और परंपराओं को बदला नहीं जाता। उनको उत्पाद की तरह बेचा जाने लगता है। उपभोक्ता इसमें सीधे नहीं जुड़ता है किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से उसकी जेबें ढीली हो जाती हैं। मंहगाई इसका साइड इफेक्ट है। मंहगाई एक अनिवार्य घटना है जिसे उपभोक्ता रोक नहीं सकता ,केवल भुगत सकता है। बाजार में उपलब्ध उत्पाद वे चुम्बकीय उपकरण हैं जो अबाध रूप से उपभोक्ताओं के अतिगोपित-अंटियों तक जाते हैं और दुर्निर्वार्यतः मुद्राएं खींच ले आते हंै। सर्वोच्च न्यायालय के पास भी इसकी काट नहीं है। हमें केवल आश्चर्यचकित होने का अधिकार है कि कटघरे में किसी भी व्यक्ति को खड़ा कर सकने की वैधानिक क्षमता और प्रभुता रखनेवाला राष्ट्रीय न्यायालय भी अपने को वैधानिक ऋचाओं के कटघरें में कैद पाता है। प्रजातंत्र में चुनाव एक अनिवार्य सह ऐच्छिक स्वयंवर है। नागरिकों का मौलिक अधिकार है कि वे अपने मनपसंद पार्षद, पंच, सरपंच, विधायक,सांसद का वरण करें। फिर भूल जाएं कि उन्होंने किसका वरण किया है। उनके सारे अधिकार अब अधिग्रहित हो चुके हैं। महिने पंद्रह दिनों में मिट जानेवाले दाग की तरह उनके सारे अधिकार अदृश्य हो चुके हंै।...

मंथरा का दर्शनशास्त्र

रामचरित मानस में कथित तौर पर कैकैयी की दासी मंथरा कहती है: ‘कोइ नृप हो हमहुं का हानी’। यही है मंथरा का दर्शनशास्त्र ? हम देखते है अनुसचिवीय या सचिवीय संततियों का भी यही दर्शनशास्त्र है। या यूं कहें कि मंथरा का जो दर्शनशास्त्र था वह उसके पुत्रों का भी दर्शनशास्त्र है। कहीं लिखा नहीं है कि मंथरा के भी पुत्र हुए और आगे उन्होंने मंथरा-नीति का विधिवत एवं सुदृढ़ संचालन किया। यह लिखने की जरूरत भी नहीं थी और ना है। लिखी हुई चीज़ें अक्सर बेकार हो जाती हैं। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है और लिखा हुआ है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा नीतिविशेषज्ञ और सदाचार का विश्वगुरू है। इसके पास जितना लिखित वांग्मय है उतना दुनिया के किसी देश के पास नहीं है। हम इस सब लिखे हुए को कितना मानते हैं? ब्रिटिश संविधान लिखा हुआ नहीं है। परम्परा और मान्यताओं के पहिओं पर चल रहा है और आज भी गतिमय है। सारी दुनिया यह बात मानती है। बात मानने की है। लिखने-पढ़ने की नहीं है। दासीपुत्र विदुर कोई बूकर शूकर को नहीं जानता था। उसने कोई बेस्टसेलर नहीं दिया मगर उसकी नीतियों को द्वापर से अब तक मान्यता प्राप्त है। मंथरा ...