और आखिर अपनी आदत के मुताबिक मेरे पड़ौसी का तोता उड़ गया। उसके उड़ जाने की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। वह दिन भर खुले हुए दरवाजों के भीतर एक चाौखट पर बैठा रहता था। दोनों तरफ खुले हुए दरवाजे के बाहर जाने की उसने कभी कोशिश नहीं की। एक बार हाथों से जरूर उड़ा था। पड़ौसी की लड़की के हाथों में उसके नाखून गड़ गए थे। वह घबराई तो घबराहट में तोते ने उड़ान भर ली। वह उड़ान अनभ्यस्त थी। थोडी दूर पर ही खत्म हो गई। तोता स्वेच्छा से पकड़ में आ गया।
तोते या पक्षी की उड़ान या तो घबराने पर होती है या बहुत खुश होने पर। जानवरों के पास दौड़ पड़ने का हुनर होता है , पक्षियों के पास उड़ने का। पशुओं के पिल्ले या शावक खुशियों में कुलांचे भरते हैं। आनंद में जोर से चीखते हैं और भारी दुख पड़ने पर भी चीखते हैं। पक्षी भी कूकते हैं या उड़ते हैं। इस बार भी तोता किसी बात से घबराया होगा। पड़ौसी की पत्नी शासकीय प्रवास पर है। एक कारण यह भी हो सकता है। हो सकता है घर में सबसे ज्यादा वह उन्हें ही चाहता रहा हो। जैसा कि प्रायः होता है कि स्त्री ही घरेलू मामलों में चाहत और लगाव का प्रतीक होती है।
दूसरा बड़ा जगजाहिर कारण यह है कि लाख पिजरों के सुख के बावजूद ; लगाव ,प्रेम ,लाड़ और देखभाल के बावजूद तोते अपनी पक्षीगत उड़ान पर निकल जाते हैं। हर पक्षी का यह स्वभाव है कि वह आकाश में स्वच्छंद उड़े। चील और बाजों के भय के बावजूद वह उड़ान भरे। तोते को चूंकि प्यार से पाला पोसा जाता है क्योंकि वह मनुष्यों की बोली की नकल कर लेता है। मम्मी तो बोलता ही बोलता है। बाकी के शब्द भी वह दोतराता है। ऐं ऐं की टें टें तो दिन भर करता रहता है। हंसता है ,छोटे छोटे वाक्य बोल लेता है। चिढ़ाता भी है। मैने अपने तोते को लड़की की छींक के बाद छींकते देखा सुना है। लड़की को भाई या मां की सच्ची झूठी डांट पड़ती है तो उसे हंसते देखा है। तोते कमाल के मनोरंजक पालतू पक्षी हैं। लेकिन वे इन सब के बावजूद किसी घर के होकर नहीं रह जाते। मौका मिलते ही उड़ जाते हैं। उनके इसी स्वभाव के कारण तोतों को बेईमान कहा गया है। मगर इस बेईमानी के बाद भी उसे पालना लोग छोड़ते नहीं। उसे अनुकूल बातें सिखाना नहीं छोड़ते। उसे हिफाजत से पिंजरे में रखना नहीं छोड़ते। मनुष्य कहना चाहता है कि हजार धोकों के बावजूद विश्वास और आशा वह नहीं छोड़ेगा।
एक होता है कबूतर । वह केवल गुटरगूं करता है। उसे बहुत कम लोग पालते हैं। वह लौटकर आता है। दिन भर इधर उधर उड़ता है और शाम होते ही अपने दड़बे में लौट आता है। पालनेवाले उसे पहचानते हैं और वह पालनेवालों को । पालनहार के घर को भी कबूतर पहचानते हैं। उसके उड़ने का कभी खतरा नहीं । इसलिए वह पिंजरे में नहीं होता। वह कभी संदेश लेकर जाता भी था और आता भी था।
कबूतर शांति और निष्ठा के प्रतीक हैं। केनेडी और नेहरू उन्हें आकाश में उड़ाते थे कि वही शांति और निष्ठाएं आकाश की ऊंचाइयों से फिर जमीन पर आएं।
इतिहास में एक कहानी है कि दो प्रेमी राजा रानी बगीचे में दो पक्षियों से खेल रहे हैं। किसी काम से राजा थोड़ी देर के लिए कहीं जाता है और पक्षियों को वह रानी के हाथों में दे जाता है। लौटता है तो देखता है कि रानी के हाथ में एक ही पक्षी है। राजा पूछता है एक कहां गया ?
रानी कहती है उड़ गया। राजा पूछता है -कैसे ? रानी दूसरा हवा में उछालकर कहती है- ऐसे। जिस फिल्म में मैंने यह शाट देखा था उसमें प्रेयसी के हाथ में कबूतर थे। मगर कबूतरों और तोतों के चरित्रों का विश्लेषण करनेपर साफ पता चलता है कि यह शाट निर्देशक ने अपनी टेक और रिटेक की सुविधा की दृष्टि से किया है। तोते एक बार उड़े तो उड़ेही उड़े। कबूतर दुबारा लौटेंगे और उन्हें वापस उनके मालिकों को दिया जा सकेगा। तोतों के साथ रिस्क और अनावश्यक समय की बर्बादी है। कितने रिटेक होंगे उस हिसाब से तोते रखने होंगे। जबकि दो कबूतरों से काम निकल जाएगा और वे मूलधन की तरह वापस आएंगे। ब्याज में किराया तो मिल ही रहा है। तोते तो किसी प्रोजेक्ट की निश्चित असफलता से डूबनेवाली लागत भी हैं और चूंकि लोन लेकर प्रोजेक्ट लांच किए जाते हैं इसलिए ब्याज भी डूबता है। अस्तु , हाथों से जो उड़े वो तोते ही थे ;कबूतर नहीं। इसलिए तोता उड़ना मुहावरा है सब कुछ के नष्ट हो जाने का।
ेबच्चों के सामान्यज्ञान और सतर्कता से संबंधित एक मासूम सा खेल है। जमीन पर बच्चों से हाथ रखकर कहा जाता है- तोता उड़ , चिड़िया उड़ , कबूतर उड़ , चील उड़ , तीतर उड़ , बटेर उड़ ,बगुला उड़ आदि। बच्चे हर बार हाथ जमीन से उठाकर उड़ने का समर्थन करते हैं। इसी बीच खेल का संचालक भैंस उड़ /हाथी उड़ /गैंडा उड़ का अप्रत्यासित पासा फेंकता है और प्रायः एक दो हाथ उड़ने के सकेत में अभ्यासवशात उठ जाते हैं। वे बच्चे फाउल हो जाते हैं या आउट हो जाते हैं। उन्हें दंड देना पड़ता है। वे सतर्क बच्चे नहीं हैं जो न उड़नेवालों को भी उड़ा देता है। इस खेल से उड़ने और नाउड़नेवालों की अच्छी पहचान हो जाती है। लेकिन मित्रों ! यह जिन्दगी है। लाख सिखाने के बाद भी बहुत कुछ अनसीखा रह ही जाता है।
इसलिए पुरखों के जमाने से यह बात हम सुनते आएं हैं कि तोते उड़ गए। तोते उड़ गए यानी सारा किया धरा मिट्टी में मिल गया। अच्छे दिनों के साथी की उम्मीद में जिसे पाला पोसा ,जिसकी हर बात का ध्यान रखा ,अंत में वही उड़ गया। धोका ,विश्वासघात तुम्हारे साथ हुआ ,मगर चलो जरा तोते से पूछें कि वह क्यों उड़ा।
लोग घर और जीवनसाथी के बिना जिन्दगी बेकार समझते हैं। फिर एक तोता भरा पूरा परिवार और आराम की जिन्दगी छोड़कर मुंह फेरकर क्यों उड़ जाता है ? अगर आजादी ही प्राकृतिक है तो मनुष्य पिंजरे क्यों बनाता है ? अपने लिए और उड़ जानेवालों के लिए। लौटकर घर और दड़बों तक आनेवाले ,केवल गुटरगूं करनेवाले कबूतरों से ज्यादा प्यार उन तोतों को क्यों मिलता है ,जो बोलते तो मीठा हैं ,मगर एक दिन ऐसे उड़ जाते हैं कि जैसे कभी वास्ता ही नहीं था। 31.09.09
Comments
मज़ा आया..............वाह !
तोता पर निबंध
Lekin nhi pta tha ki es trh akle ud jaayega.bhut yaad aata hai.mn naanta hi nhi hai ki ud gya .jb bhi bahr se ghum ke aata hun to dekhne jaata hun aaya ki nhi.lekin nhi rhta hai.dil tot jaata hai.
Abhi main ye sb likh rha to mere aankh se bhut aansu aa rha.ruk hi nhi rha . main bhut bhulne ki kosis kr rha hun .lekin nhi bhula paa rha.ab kabhi etna lagao nhi rkhenge kisi se kyonki bhut drd hota hai.mere tote ke baare me aur btaye hi nhi .ha humko etna pta h ki vo dar se uda hai kyonki main humesa apne tote ko khidki pr rkhta tha lekin nhi udta ..lekin jis din uda us din bahr ek bachha danta se niche laa rha tha .lekin o nhi aaya aur ud gya
Main apne tote ko bhulane ke liye ye sb padh rha tha .