इक्कीसवीं सदी में एक नया इतिहास बना है। ओबामा साहब राजनैतिक विश्व में सबसे शक्तिशाली देश के पहले ग़ैर-श्वेत नस्ल के राष्ट्रपति के रूप में सत्तारूढ़ हुए हैं। विद्वान हैं ,उत्साही हैं ,सुलझे हुए हैं और आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। हालांकि उनकी विद्वता ,उत्साह ,सुलझाव और आत्मविश्वास की दिशाएं पूरी तरह खुली हुई नहीं हैं। अमेरिका को इसलामिक राष्ट्र और पुतिन को राष्ट्रपति कहकर उन्होंने संकेत जरूर दिया है कि वे किधर जा रहे हैं। पर इतिहास रचनेवाले तो वे हमेशा रहेंगे।
बराक साहब की लोकप्रियता का एक और कारण है । पद पर आकर उन्होंने सबसे पहले जिस प्राणी की खोज की वह एक शानदार जानदार समझदार कुत्ता था। इसके साथ ही मनुष्य समाज का सबसे वफादार दोस्त कुत्ता नामक प्राणी दुनिया भर में फिर चर्चा का विषय बन गया। दुनिया भर के बलागर्स में कुत्ते भी शामिल हुए । उन्होंने न केवल बराक ओबामा को कुªªत्ता जाति को सम्मानित करने के लिए धन्यवाद प्रेषित किये बल्कि अपने-अपने रिज्यूम भी भिजवाए ताकि उनका यथास्थान नियोजन हो सके।
यद्यपि यह पहली बार नहीं हुआ कि कोई कुत्ता सत्ता के गलियारों में इतने शानदार ढंग से प्रविष्ठ हुआ हो। महाभारत काल में महाराज युधिष्ठिर के पास भी एक कुत्ता था जो विश्व इतिहास का पहला महानायक है। महानायक इस अर्थ में कि सारे पंचनायक अपनी अवसान बेला में हिमालय जा रहे थे और उनके साथ सबसे आगे युधिष्ठिर का कुत्ता भी था। एक एक कर सारे नायक और महानायिका भी मार्ग में ध्वस्त हो गए किंतु कुत्ता अपनी संपूर्णता के साथ युधिष्ठिर के साथ खड़ा रहा। वह पहला प्राणि था जो स्वर्ग गया। किताबें कहती हैं कि वह रूपांतरित हुआ। किताबें कभी-कभी लोकहित और लोकधर्म के कारण थोड़ा बहुत रूपांतरण कर लेती हैं। तथापि यह सच है कि वह स्वर्ग गया और महालक्ष्य को प्राप्त करने के कारण महानायक कहलाया।
भारतीय परम्पराओं में कुत्ते एक देवता दत्तात्रेय के भी साथ देखे गए हैं। परन्तु वे वहां आसपास मंडराते चार छर्राें से ज्यादा नहीं है। भगवान भैरव के रूप में भी कुत्ता प्रतिष्ठित हुआ है।
सतयुग की कई कथाओं में कुत्ता एक महत्वपूर्ण उत्कर्ष उपस्थित करता है। कभी किसी राजा की व्रतप्रियता की परीक्षा में वह रोटी खाता है तो कभी कोई ऋषि उसका मांस खाकर तुच्छ जीवन की रक्षा करता है।
त्रेतायुग के रामराज्य में भी एक कुत्ता साधु और कुत्ता के बीच न्याय की वकालत करता है और मुकदमा जीतता है।
द्वापरयुग में अभी महाभारत काल की चर्चा ऊपर हो चुकी है।
कलयुग में कबीर अपने को राम का कुत्ता कहकर एक और क्रांति की थी। उन्होंने कहा‘‘ मैं तो कुत्ता राम का ,मुतिया मेरा नांवुं। गले राम की लेहड़ी ,जित खींचे तित जांवंु।। ‘‘ उनके पीछे आनेवाले रामभक्तिधारा के लोककवि तुलसी ने भी कुत्ते की उपाधि स्वर्ग के राजा इंद्र को प्रदान की थी। उनके ही शब्दों में ‘‘सूख हाड़ि लै भाग सठ स्वान निरखि मृगराज। छीनि लेह जनि जान जड़ तिमि सुरपतिहिं न लाज ।।‘‘ नारद तप करने बैठे तो स्वभाव के कारण इन्द्र को भय हुआ कि कहीं वे स्वर्ग के राजा तो नहीं बनना चाहते। कहां विधिपुत्र नारद और कहां सुरपति इंद्र। परन्तु मानसिकता का कोई क्या करे ? तो वे घबराए। उनकी घबराहट की तुलना करते हुए कुत्ते का रूपक महाकवि ने खींचा कि जैसे सठ-कुत्ता सिंह को आता देखकर मुहं-दबी सूखी हड्डी लेकर ऐसे दौड़ पड़ता है जैसे सिंह उसकी सूखी हड्डी छीन लेगा। जड़-इंद्र का डर भी ऐसा ही है। तात्पर्य यह कि तुलना के लिए अलंकार-सिद्ध महाकवि तुलसी ने भी कुत्ते को उपमान के रूप में चुना।
प्रसिद्ध उपन्यास सम्राट् प्रेमचंद की कई कहानियों में कुत्ता सहनायक बनकर आया है । ‘पूस की रात‘ अगर आपको याद हो तो हरखू के मित्र के रूप में और हरखू के काम में उससे ज्यादा मुस्तैदी से कुत्ता ही लगा दिखाई देता है। पे्रमचंद कुत्ते से इस कदर प्रभावित थे कि उन्होंने ‘एक कुत्ते की कहानी‘ लिखकर उसका मान बढ़ाया।
प्रसिद्ध आंचलिक कथाकार फणिश्वरनाथ रेणु के उनन्यास ‘परती परिकथा’ में कुत्ते का जो स्थान है वह प्रसिद्ध प्रगतिशील लेखक हरिशंकर परसाई के शब्दों में ही पढ़ना रोमांचक हो सकता है। परसाई लिखते हैं: ‘‘...‘परती परिकथा‘ का नायक है कौन ? आप कहेंगे जित्तन या जितेन्द्र बाबू। मैं नहीं मानता। मैं चार साल से इस पर विचार कर रहा हूं और इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि नायक वह कुत्ता मीत है। इस कुत्ते के चरित्र का लेखक ने अधिक कुशलता से विकास किया है। आरंभ से अंत उसके चरित्र में एक संगति है जो जित्तन के चरित्र में नहीं है।‘‘ अब तो इस बात का कोई काट विश्वसाहित्य में नहीं है क्योंकि विश्वसाहित्य की विश्वसनीयता तो स्वयं हरिशंकर परसाई हैं।
वैसे स्वयं परसाई भी कुत्ते के प्रभव से नहीं बच सके और उन्हें भी कुत्तें के नायकत्व में एक रचना प्रस्तुत करनी पड़ी , ‘एक मध्यमवर्गीय कुत्ता‘ शीर्षक से।
कुलमिलाकर कुत्ता हर क्षेत्र में सफलता पूर्वक अपनी धाक जमाए हुए हुए है। हर प्रतिश्ठित घर के सामने लिखा होता है कुत्ते से सावधान। धार्मिक आध्यात्मिक राजनैतिक सामाजिक साहित्यिक सांस्कृतिक मनोरांजनिक कहां आप कुत्तों से मुक्त हैं। वैसे सच्चाई यही है कि कुत्ते हैं तो हम सुरक्षित हैं। सुरक्षा के मामले में जाएं तो कुत्ता विश्व भर की पुलिस और विश्व भर की सेनाओं में कुत्ता बड़े अधिकारी के पद पर अभिराजित है। जनरंजन के सबसे लोकप्रिय और शक्तिशाली माध्यम फिल्म में भी कुत्ते को ऊंचा स्थान है। वे कई लोकप्रिय फिल्मों में बतौर नायक आए हैं। विदेशों में भी उनके नायकत्व में कई फिल्में बनीं। धर्मेन्द्र के बारे में बताने की जरूरत नहीं है जो जीवन भर कुत्ते का खून पीने की धमकी देते रहे। आजकल के महानायकों को अपने साथी नायकों के नाम से कुत्ते पालने का शौक बढ़ा है। एक नायक ने अपनी प्रेमिका को उपहार में कुत्ता भेंट किया है। 180709
क्रमशः
Comments
कुर्बान तुझपे कई सारी ज़िंदगानियां...
सुरक्षा देने वाले, परिश्रम करने वाले लोगों के बिना ये सत्ताएं टिकी नहीं रह सकती...
इसीलिए गुलामी को, वफ़ादारी को, सेवा को, पुराने युगों से लेकर वर्तमान तक छुटपुट रूप से प्रतिष्ठित किया जाता रहा है...
एक अच्छा व्यंग्य...
honeybee