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और मेरा आगे निकल जाना

पड़े रह जाना तीन लेखकों का फुटपाथ पर और मेरा आगे निकल जाना तीन लेखक फुटपाथ पर पड़े हैं। सोचता हूं कि उन्हें उठा लूं। मगर मेरी खुद की हालत खस्ता है। लोग देख रहें है कि मैं भी फुटपाथ पर खड़ा हुआ हूं। फुटपाथ के साथ मैं इस कदर तदाकार हो चुका हूं कि उससे मेरा तादात्म्य स्थापित हो चुका है। संतों ने इसे ही पहुंची हुई स्थिति कहा है। मगर मैं संतों को कहां ढूंढूं कि वे मेरी इस स्थिति को देख सकें। फलस्वरूप मैं मनमारे फुटपाथ पर खड़ा बेचैनी से उसका इंतजार कर रहा हूं। मेरे हाव भाव से ही लग रहा है कि मैं जिसका इंतजार कर रहा हूं उसके लिए किसी भी स्थिति से गुजर सकता हूं। उसे देखकर मैं बावरा सा दौड़ सकता हूं ,बिना यह सोचे कि पागलों की तरह दौड़नवाली गाड़ियों के नीचे आ भी सकता हूं। यही आदर्श लगाव और प्रतीक्षा है। मैं जब अपनी बेसब्री नहीं संभाल पाता तो पास खड़े एक अजनबी से पूछता हूं:‘‘ वह कब आएगी।‘‘ अजनबी उपेक्षा से कहता है:‘‘ वह आधा घंटा बाद आएगी। मैं भी उसका इंतजार कर रहा हूं।‘‘ मैं समझ जाता हूं कि एक तो यही प्रतियोगिता में है जिसे पछाड़कर मुझे उस तक पहुंचना है। मैं तनाव में आ जाता हूं। ध्यान बंटाने के लि...

चुहिया बनाम छछूंदर

डायरी 24.7.10 कल रात एक मोटे चूहे का एनकाउंटर किया। मारा नहीं ,बदहवास करके बाहर का रास्ता खोल दिया ताकि वह सुरक्षित जा सके। हमारी यही परम्परा है। हम मानवीयता की दृष्टि से दुश्मनों को या अपराधियों को लानत मलामत करके बाहर जाने का सुरक्षित रास्ता दिखा देते हैं। बहुत ही शातिर हुआ तो देश निकाला दे देते हैं। आतंकवादियों तक को हम कहते हैं कि जाओ , अब दुबारा मत आना। इस तरह की शैली को आजकल ‘समझौता एक्सप्रेस’ कहा जाता है। मैंने चूहे को इसी एक्सप्रेस में बाहर भेज दिया और कहा कि नापाक ! अब दुबारा मेरे घर में मत घुसना। क्या करें , इतनी कठोरता भी हम नहीं बरतते यानी उसे घर से नहीं निकालते अगर वह केवल मटर गस्ती करता और हमारा मनोरंजन करता रहता। अगर वह सब्जियों के उतारे हुए छिलके कुतरता या उसके लिए डाले गए रोटी के टुकड़े खाकर संतुष्ट हो जाता। मगर वह तो कपड़े तक कुतरने लगा था जिसमें कोई स्वाद नहीं होता ना ही कोई विटामिन या प्रोटीन ही होता। अब ये तो कोई शराफत नहीं थी! जिस घर में रह रहे हो उसी में छेद कर रहे हो!? आखि़र तुम चूहे हो ,कोई आदमी थोड़े ही हो। चूहे को ऐसा करना शोभा नहीं देता। हालांकि शुरू शुरू ...

मार्बल सिटी का माडर्न हॉस्पीटल

उर्फ मरना तो है ही एक दिन इन दिनों चिकित्सा से बड़ा मुनाफे़ का उद्योग कोई दूसरा भी हो सकता है, इस समय मैं याद नहीं कर पा रहा हूं। नहीं जानता यह कहना ठीक नहीं। शिक्षा भी आज बहुत बड़ा व्यवसाय है। बिजली, जमीन, शराब, बिग-बाजार आदि भी बड़े व्यवसाय के रूप में स्थापित हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य आदमी की सबसे बड़ी कमजोरियां हैं, इसलिए इनका दोहन भी उतना ही ताकतवर है। हमें जिन्दगी में यह सीखने मिलता है कि बलशाली को दबाने में हम शक्ति या बल का प्रयोग करना निरर्थक समझते हैं, इसलिए नहीं लगाते। दुर्बल को सताने में मज़ा आता है और आत्मबल प्राप्त होता है, इसलिए आत्मतुष्टि के लिए हम पूरी ताकत लगाकर पूरा आनंद प्राप्त करते हैं। मां बाप बच्चों के भविष्य के लिए सबसे मंहगे शैक्षणिक व्यावसायिक केन्द्र में जाते हैं। इसी प्रकार बीमार व्यक्ति को लेकर शुभचिन्तक महंगे चिकित्सालय में जाते हैं ताकि जीवन के मामले में कोई रिस्क न रहे। इसके लिए वे कोई भी कीमत चुकाना चाहते हैं और उनकी इसी कमजोरी को विनम्रता पूर्वक स्वीकार करके चिकित्सा व्यवसायी बड़ी से बड़ी कीमत लेकर उनके लिए चिकित्सा को संतोषजनक बना देते हैं। माडर्न ...

प्रेतवाला पीपल

स्कूल ग्राउंड में अंधेरा है। अंधेरे में स्कूल ग्राउंड मे खड़ा प्रेतवाला पीपल का पेड़ और भी भयानक लग रहा है। उसी भयानक पेड़ के नीचे बने ,टूटे फूटे चबूतरे पर संता गुरुजी चैन की नींद सो रहे हैं। संता गुरुजी का मन जब जब खराब होता है , तब तब प्राइमरी स्कूल के खुले ग्राउंड के एक कोने में खड़ा पीपल का पेड़ ही उनको शांति देता है। शांति के लिए तो सभी जीनेवाले बुरी तरह मरते रहते हैं। लोगों का कहना है कि जो लोग बुरी तरह मरते हैं , वे लोग प्रेत बनकर इसी पीपल के पेड़ में रहने लगते हैं। आदमियों के मरने से बननेवाले भूत , प्रेत , बेताल वगैरह प्रायः पेड़ में ही रहते हैं। इसका कोई पौराणिक कारण होगा। गुरुजी उस कारण पर नहीं जाते और परंपरा के अनुसार अन्य लोगों की तरह जब तक सांस है , पेड़ के नीचे रहते हैं। मरने पर पेड़ पर तो रहना ही है। ऐसा विश्वास है कि इस स्कूल ग्राउंड वाले पीपल के पेड़ पर भूत रहते हैं। जब-जब किसी बच्चे की स्कूल में तबीयत खराब हो जाती है , तब-तब पूरे गांव में फुसफुसाहट फैल जाती है कि पीपलवाले प्रेत ने सताया है। बच्चे के परिवारवाले तब छोटी-मोटी पूजा करके पीपल के प्रेत को मनाया करते हैं। उस पूजा ...

बिल्ली का भाग्य

डर्टी ,डफर ,चीटर कैट ! आई हेट यू! अपने पीले गंदे दांत मत निपोरो । आई रियली हेट यू। मेरे सामने बिल्कुल म्यांऊं मत करो। मैं तुमसे नफ़रत करता हूं और नम्बर एक में नफ़रत करता हूं। नंबर दो में नहीं ..जहां आई हेट यू का मतलब आई लव यू होता है। आजकल युवाओं में प्रेम के मामले में इन्नोवेशन के चलते नये नये संप्रेषण के तरीके निकाले जा रहे है। मुझे कम से कम तुम युवा मत समझना। आज मैं गुस्से में हूं और चाहता हूं कि तुम पक्के तौर पर मुझे खड़ूस समझो। गुस्से में मुझे अपनी इमेज नही दिखाई दे रहीं ;केवल दिखाई दे रहा है वह पतीला जिस में शाम को फ्राई होने के लिए रखा गया भात था और तुमने उसे गिरा दिया । मुझे दिखाई दे रही है दूध से भरी हुई वह पतीली जिसमें मलाईदार दूध अभी भी रखा हुआ है और जिसे तुमने ..अरी चटोरी ,चालू ,चालाक, चोर , भड़ियाई बिल्ली ! लपलप सड़पसड़पकर जूठा कर दिया। तुम्हें पता है कि अब वह किसी इंसान के काम का नहीं रहा ? तुम्हें क्या पता ! तुम्हें तो मुंह डालने के पहले यह भी पता नहीं था कि इतना एक लीटर दूध तुम पी भी पाओगी या नहीं। बस मुंह डाल दिया। इसके पहले तो तुम ऐसी नहीं थी। तुम सिर्फ चूहों के पीछे भा...

नाक में दम

कैमिस्ट्री की कक्षा में मेरी कैमिस्ट्री ठीक रहती है। गणित और जूलाजी , फिजिक्स और वनस्पति के सभी केमिकल एक ही बीकर में मिल जाते हैं। मैं अपने पिपेट से बूंद बूंद एसिड टपकाता हूं। वे बीकर में अपने अंदर के ज्ञान-क्षार को संतृप्त होते महसूस करते हैं। एक दूसरे की सांद्रता का मजे़ से पता चलता रहता है। विज्ञान की भाषा इसे चाहे अनुमापन कहंे, मैं इसे साथ साथ पकना और पकाना कहता हूं। क्योंकि बात मुहावरों पर आकर ख़त्म होती है और मुझे मुहावरों में मज़ा आता है। उस दिन जुलाजी के एक मैमल ने कहा:‘‘ सर , हिन्दी में एक मुहावरा है। नाक में दम होना या शायद नाक में दम करना ...तंत्रिका-तंत्र के हिसाब से यह ग़लत है। कृपया ,इस पर ज़रा प्रकाश डालें।’ प्रश्न सुनते ही मज़ा आ गया। मेरे अंदर आनंद की रासायनिक क्रिया शुरू हो गई। छात्र के सवाल में उत्प्रेरक के रूप में विविध क्रिस्टल पड़ गए थे। मैमेल पूछ रहा था हिन्दी का मुहावरा। कक्षा थी कैमिस्ट्री की। उसका आग्रह था भौतिकशास्त्र की फोटोमेट्री यानी प्रकाशमिति से संबंधित। कह रहा था ‘प्रकाश डालें।’ मेरा मन बाटनीकल गार्डन हो गया। मै कह चुका हूं कि इस क्लास में आकर मुझे मल्टीप...

भैंस के आगे बीन

दूधवाला उस दिन भी उसी तरह दूध लेकर आया ,जिस तरह हमेशा लाता है। संक्षिप्त में कहें तो रोज की ही तरह नियमितरूप से दूध लेकर आया। उल्लेखनीय है कि यहां कवि दूध की विशेषता नहीं बता रहा है ,दूधवाले के आने की विशेषता बता रहा है। दूध की विशेषता तो आगे है, जहां कवि कहता है कि दूधवाला उसी तरह का दूध लेकर आया जिस तरह का दूध ,आज के यानी समकालीन दूधवाले लेकर आते हैं , जो उन दूधवालों की साख है ,उनकी पहचान है ,उनका समकालीन सौन्दर्य-बोध है। कह सकते हैं कि बिल्कुल प्रामाणिक, शुद्ध-स्वदेशी दूध.....सौ टके ,चौबीस कैरेटवाला दूध। जिसे देखकर ही दूध का दूध और पानी का पानी मुहावरा फलित हो जाता है। चूंकि वस्तुविज्ञान के अनुसार यह प्रकरण साहित्य का कम और चूल्हे का ज्यादा था , इसलिए पत्नी ने इसे अपने हाथों में ( दूध को भी और प्रकरण को भी ) लेते हुए दूधवाले को टोका:‘‘ क्यों प्यारे भैया ! जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है , दूध पतला होता जा रहा है।’’ दूधवाले ने अत्यंत अविकारी और अव्ययी भाव से कहा: ‘‘ क्या करें बहिनजी ! हम लोग भी परेशान हैं। भैंस को चरने भेजते हैं तो वो जाकर दिन भर तालाब में घुसी बैठती है। कुछ खाए तो दूध ग...