मेरे सुख-दुख नहीं बांटना,
मेरी उन्नति नहीं चाहना,
कष्ट पड़े तो दूर भागना,
दुर्भिक्षों में नहीं झांकना।
कूटनीति होगी उनकी यह,
हर आयोजन है हत्यारा।
चुन-चुनकर, कर रहे बेदख़ल,
लगा रहे अपना सारा बल,
रच षड्यंत्र, प्रपंच और छल,
पग-पग मचा हुआ है दंगल।
इधर अमावस पसर रही है,
चमक रहा है उधर सितारा।
तोड़ रहे हैं, फोड़ रहे हैं,
वे धारा को मोड़ रहे हैं,
तट भी गरिमा छोड़ रहे हैं,
भंवरों से गंठ जोड़ रहे हैं।
विप्लव, प्रलय, बवंडर, आंधी,
हुआ इकट्ठा कुनबा सारा।
@ रा. रामकुमार,
१३.११-०९.१२.२०२५, अपरान्ह १२.१३

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