चाय
धूप को चाय में घोलकर पी रहे।
हम हवा को भी दिल खोलकर पी रहे।
हम हवा को भी दिल खोलकर पी रहे।
गांव से शह्र तक राह है पुरख़तर,
'आंख में ख़ून है' बोलकर पी रहे।
कितनी शक्कर घुलेगी तो मर जायेंगे?
जानकर बूझकर तोलकर पी रहे।
ज़िंदगी में बनाएगा यह संतुलन,
हम करेले का रस रोलकर पी रहे।
जबसे पत्थर तलक रत्न होने लगे,
तब से हर ज़ख्म का मोलकर पी रहे।
- रा. रामकुमार, ०७.१२.२५, रविवार।

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