Skip to main content

मैनपाट में बहता है उल्टा पानी

मैनपाट में बहता है उल्टा पानी : दृष्टिभ्रम या चमत्कार । जानिए पर्यटन स्थल की सच्चाई।

0
चमत्कार, जादू या करामात को वैज्ञानिक सोच के समझदार लोग आंख का धोखा या दृष्टिभ्रम, हाथ की सफाई, आदि कहा करते हैं। कई ऐसे प्राकृतिक स्थल हैं जो अनेक विचित्रताओं से भरे हुए हैं। कहीं गर्म पानी और ठंडे पानी के अगल बगल बने कुंड, कहीं पहाड़ी में बने कुएं के अंदर से आती हवाएं, कहीं कोई अद्भुत दलदल जो बरसात के बाद सुख जाता है लेकिन दीपावली के आसपास उसमें पानी निकलता है और ज़मीन दलदल की तरह धंसने और हिलने लगती है। इनके पीछे बहु गर्भीय कारण हो सकते हैं जिस पर भू-गर्भ शास्त्रियों के अतिरिक्त कौन सरदर्द मोल ले?






ऐसा ही एक स्थान है छत्तीसगढ़ का पर्यटन स्थल कहलानेवाला मैनपाट। यह स्थल खूबसूरत वादियों के साथ आश्चर्य से भर देनेवाले 'उल्टा बहने वाले पानी' के लिए विख्यात है। यह ऐसा स्थान है जहाँ पानी का बहाव ऊँचाई की ओर है। इसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं।
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में 'मैनपाट' विसरपानी गाँव में स्थित है। यह स्थान पिछले कुछ वर्षों से लोगों के बीच 'उल्टा पानी' काफी ज्यादा चर्चित है। सामान्यतः पानी नीचे की ओर अर्थात् ढलान की तरफ़ बहता है लेकिन यहां देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि पानी का बहाव ऊँचाई की ओर है। यह सुनकर ही अचंभित करनेवाले बात है जिसे देखने के लिए लोग लालायित हो उठते हैं।

इस उल्टी बात के कारण पहले स्थानीय लोग इसे भूतिया जगह मानते थे।  जब जिज्ञासु पर्यटकों की संख्या दिन ब दिन  बढ़ने लगी तो लोगों ने इसे प्राकृतिक चमत्कार मैन लिया।

अनेक विज्ञानवादी लोगों ने इसके पीछे के कारण को समझने का प्रयास किया। अनेक भू वैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने इस पर काम किया, लेकिन किसी सर्वमान्य निर्णय पर नहीं पहुंच पाए। कुछ लोग मानते हैं कि यह केवल एक दृष्टि-भ्रम, ऑप्टिकल इल्युजन या आंखों का धोखा है। कुछ इसे 'स्थलीय गुरुत्वाकर्षण बल' का अधिक होना मानते हैं, जिसे कुछ लोग हास्यास्पद कहते हैं।

चाहे जो हो है यह एक आकर्षक मायाजाल, मारीचिका या कौतूहल का कारण तो है ही, जिसने इस स्थल के पर्यटन को बढ़ावा दिया है। प्रायः मानसून और ठंड के मौसम में यहाँ की ख़ूबसूरती चरम पर होती है और यह चहल पहल बढ़ जाती है।

सरगुजा जिले में विसरपानी स्थित यह मैनपाट स्थल, जिला अंबिकापुर से लगभग 56 किलोमीटर और राजधानी रायपुर से लगभग 365 किलोमीटर की दूरी पर है। सड़क मार्ग से बस अथवा कार से सरलतापूर्वक यहां पहुंचा जा सकता है। निकटतम  रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड अंबिकापुर में है। दूसरे प्रान्तों या देशों से आनेवाले पर्यटक रायपुर स्थित 'स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डे' से टैक्सियों द्वारा वहां पहुंच सकते हैं। 

मैनपाट पर्यटन स्थल में 'उल्टा पानी' के अतिरिक्त अन्य दर्शनीय स्थलों में टाइगर पॉइंट भी एक है।  यह मैनपाट का सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यहां महादेव नदी पर एक आकर्षक जलप्रपात है जो 80 फ़ीट ऊपर से गिरता है। इसे टाइगर पॉइंट के नाम से जाना जाता है। यहाँ बाघ या बंगाल टाइगर पानी पीने आते थे जो पर्यटकों को भी यदाकदा दिख जाते थे, इसलिए इस स्थल का नाम 'टाइगर पॉइंट' कहलाया। इसे जलपरी पॉइंट भी कहते हैं। उसके पीछे की कथा कोई बता नहीं पाता। अल्बत्ते अनुमान लगाना और कथा गढ़ लेना भारत की एक सार्वभौम विशेषता है।
दलदली – मैनपाट का आश्चर्यजनक स्थल है, जहाँ उछलने पर जमीन हिलती है। जंगल के बीच में छोटे से मैदान में स्थित यह दलदली लोगो के मनोरंजन को नमकीन बनाती है।

@कुमार

Comments

वाह ! अद्भुत पर्यटन स्थल है ।
वाकई देखे जाने योग्य ।
Dr.R.Ramkumar said…
ज़रूर।
जिज्ञासु प्रवृत्ति के लिए रुक पाना मुश्किल है। बालाघाट से
लगभग 565 किलो मीटर पड़ेगा।

Popular posts from this blog

काग के भाग बड़े सजनी

पितृपक्ष में रसखान रोते हुए मिले। सजनी ने पूछा -‘क्यों रोते हो हे कवि!’ कवि ने कहा:‘ सजनी पितृ पक्ष लग गया है। एक बेसहारा चैनल ने पितृ पक्ष में कौवे की सराहना करते हुए एक पद की पंक्ति गलत सलत उठायी है कि कागा के भाग बड़े, कृश्न के हाथ से रोटी ले गया।’ सजनी ने हंसकर कहा-‘ यह तो तुम्हारी ही कविता का अंश है। जरा तोड़मरोड़कर प्रस्तुत किया है बस। तुम्हें खुश होना चाहिए । तुम तो रो रहे हो।’ कवि ने एक हिचकी लेकर कहा-‘ रोने की ही बात है ,हे सजनी! तोड़मोड़कर पेश करते तो उतनी बुरी बात नहीं है। कहते हैं यह कविता सूरदास ने लिखी है। एक कवि को अपनी कविता दूसरे के नाम से लगी देखकर रोना नहीं आएगा ? इन दिनों बाबरी-रामभूमि की संवेदनशीलता चल रही है। तो क्या जानबूझकर रसखान को खान मानकर वल्लभी सूरदास का नाम लगा दिया है। मनसे की तर्ज पर..?’ खिलखिलाकर हंस पड़ी सजनी-‘ भारतीय राजनीति की मार मध्यकाल तक चली गई कविराज ?’ फिर उसने अपने आंचल से कवि रसखान की आंखों से आंसू पोंछे और ढांढस बंधाने लगी। दृष्य में अंतरंगता को बढ़ते देख मैं एक शरीफ आदमी की तरह आगे बढ़ गया। मेरे साथ रसखान का कौवा भी कांव कांव करता चला आया।...

मार्बल सिटी का माडर्न हॉस्पीटल

उर्फ मरना तो है ही एक दिन इन दिनों चिकित्सा से बड़ा मुनाफे़ का उद्योग कोई दूसरा भी हो सकता है, इस समय मैं याद नहीं कर पा रहा हूं। नहीं जानता यह कहना ठीक नहीं। शिक्षा भी आज बहुत बड़ा व्यवसाय है। बिजली, जमीन, शराब, बिग-बाजार आदि भी बड़े व्यवसाय के रूप में स्थापित हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य आदमी की सबसे बड़ी कमजोरियां हैं, इसलिए इनका दोहन भी उतना ही ताकतवर है। हमें जिन्दगी में यह सीखने मिलता है कि बलशाली को दबाने में हम शक्ति या बल का प्रयोग करना निरर्थक समझते हैं, इसलिए नहीं लगाते। दुर्बल को सताने में मज़ा आता है और आत्मबल प्राप्त होता है, इसलिए आत्मतुष्टि के लिए हम पूरी ताकत लगाकर पूरा आनंद प्राप्त करते हैं। मां बाप बच्चों के भविष्य के लिए सबसे मंहगे शैक्षणिक व्यावसायिक केन्द्र में जाते हैं। इसी प्रकार बीमार व्यक्ति को लेकर शुभचिन्तक महंगे चिकित्सालय में जाते हैं ताकि जीवन के मामले में कोई रिस्क न रहे। इसके लिए वे कोई भी कीमत चुकाना चाहते हैं और उनकी इसी कमजोरी को विनम्रता पूर्वक स्वीकार करके चिकित्सा व्यवसायी बड़ी से बड़ी कीमत लेकर उनके लिए चिकित्सा को संतोषजनक बना देते हैं। माडर्न ...

चूहों की प्रयोगशाला

( चींचीं चूहे से रेटसन जैरी तक ) मेरे प्रिय बालसखा , बचपन के दोस्त , चींचीं ! कैसे हो ? तुम तो खैर हमेशा मज़े में रहते हो। तुम्हें मैंने कभी उदास ,हताश और निराश नहीं देखा। जो तुमने ठान लिया वो तुम करके ही दम लेते हो। दम भी कहां लेते हों। एक काम खतम तो दूसरा शुरू कर देते हो। करते ही रहते हो। चाहे दीवार की सेंध हो ,चाहे कपड़ों का कुतरना हो , बाथरूम से साबुन लेकर भागना हो। साबुन चाहे स्त्री की हो या पुरुष की, तुमको चुराने में एक सा मज़ा आता है। सलवार भी तुम उतने ही प्यार से कुतरते हो , जितनी मुहब्बत से पतलून काटते हो। तुम एक सच्चे साम्यवादी हो। साम्यवादी से मेरा मतलब समतावादी है, ममतावादी है। यार, इधर राजनीति ने शब्दों को नई नई टोपियां पहना दी हैं तो ज़रा सावधान रहना पड़ता है। टोपी से याद आया। बचपन में मेरे लिए तीन शर्ट अलग अलग कलर की आई थीं। तब तो तुम कुछ पहनते नहीं थे। इसलिए तुम बिल से मुझे टुकुर टुकुर ताकते रहे। मैं हंस हंस कर अपनी शर्ट पहनकर आइने के सामने आगे पीछे का मुआइना करता रहा। ‘आइने के सामने मुआइना’ , अच्छी तुकबंदी है न! तुम्हें याद है ,तुम्हारी एक तुकबंद कविता किताबों में छप...