काली_पुतली_चौक_की_चौपाटी_में_भारत_माता_और_आदिवासी_अस्मिता_का_सवाल 6 सितंबर 2025 को बालाघाट के इतिहास में एक और पुतली स्थापित हुई। चार सिंहों के रथ पर सवार 'भारत माता' (राष्ट्र पिता के बरक्स राष्ट्र माता) की रंगीन फाइबर प्रतिमा स्थापित की गई। शरद पूर्णिमा और महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर इस प्रतिमा का स्थापित किया जाना नगरपालिका अध्यक्ष की विशेष उपलब्धि बताया जा रहा है। बालाघाट जीरो माइल पर स्थित 'काली पुतली' चौक हमेशा से अपने नाम और लोकेशन (क्षेत्र स्थिति) के लिए प्रसिद्ध है। इस नामकरण का कारण इस चौक के बीचों बीच स्थापित काली प्रतिमा है। यह प्रतिमा सिर्फ कलात्मकता के कारण स्थापित की गई हो और उसका और कोई निहितार्थ हो, सामान्यतः इस पर विश्वास करना मुश्किल है। जानकारी के अभाव में इस पर किसी प्रकार का कयास लगाना भी उचित नहीं है। काली पुतली चौक जिस बिंदु पर स्थापित है वह छः मार्गों का संगम है। एक बालाघाट गोंदिया मैन रोड, जो हनुमान चौक से जुड़ती है, सर्किट हाउस रोड पर स्थित अम्बेडकर चौक से आने वाली कनेक्टिंग रोड, जयस्तम्भ चौक से आनेवाली रोड, पुरानी...
विहंगम्य (पांडुलिपि चर्चा/समीक्षा ) ' तृण पुष्पों का संचय': डॉ. रवींद्र सोनवाने डॉ. रवींद्र सोनवाने मेरे महावियालीन साथी रहे हैं। गणित के प्राध्यापक होने के साथ साथ वे साहित्य, इतिहास, समाजविज्ञान के भी गम्भीर अध्येता हैं। सामाजिक सरोकार के क्षेत्र में भी उनका पर्याप्त योगदान है। लगातार उनसे विचार विमर्श होते रहता है। कुछ दिन पूर्व ही उन्होंने बताया कि उनका तीसरा स्वतंत्र काव्य संकलन प्रकाशनाधीन है। वे चाहते हैं कि कोई टिप्पणी, भूमिका या समीक्षा उस पर लिख दूँ, ताकि रचना का एक दृष्टि से मूल्यांकन हो जाये। मैं द्विविधा में पड़ गया। घनिष्ठ रचनाकार के लेखन पर लिखित रूप से कुछ व्यक्त करने की अपनी सुविधाएं भी हैं और दुविधाएं भी। सुविधा यह कि रचना कर्म की सूक्ष्मतर जानकारी आपको उपलब्ध रहती है और दुरूहता या अस्पष्टता की स्थिति में चर्चा कर हल निकाला जा सकता है। दुविधा मतभेद की स्थिति में होती है। चिंतन, विचारधारा, परिस्थियों के प्रति अपने अपने दृष्टिकोण, मान्यताएं, आग्रह दुराग्रह आदि स्वाभाविक मानवीय द्वंद्व हैं। लेखन में इससे ऊपर और हटकर भी मतभेद स्वाभाविक है। भाषा, बिम्...