चाय धूप को चाय में घोलकर पी रहे। हम हवा को भी दिल खोलकर पी रहे। गांव से शह्र तक राह है पुरख़तर, 'आंख में ख़ून है' बोलकर पी रहे। कितनी शक्कर घुलेगी तो मर जायेंगे? जानकर बूझकर तोलकर पी रहे। ज़िंदगी में बनाएगा यह संतुलन, हम करेले का रस रोलकर पी रहे। जबसे पत्थर तलक रत्न होने लगे, तब से हर ज़ख्म का मोलकर पी रहे। - रा. रामकुमार, ०७.१२.२५, रविवार।
देखते रहो... किस ओर चल रही है हवा देखते रहो। किस वक़्त पे क्या क्या है हुआ देखते रहो। पाज़ेब पहन नाचती हैं सर पे बिजलियां, आंखों के आगे काला धुंआ देखते रहो। तक़रीर कर रहे हैं शिकारी नक़ाब में- 'ज़ुल्मों से बचाएगा ख़ुदा देखते रहो।' अनुभव से अपनी राह चुनो जां पे खेलकर, भटकाए किताबों का लिखा देखते रहो। चारों तरफ़ है घोर घमासान मारकाट, काटेगी सियासत ही गला देखते रहो। @ कुमार, ०१.१२.२०२५, सोमवार, १०.१५.