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चाय

 चाय  धूप को चाय में घोलकर पी रहे। हम हवा को भी दिल खोलकर पी रहे। गांव से शह्र तक राह है पुरख़तर, 'आंख में ख़ून है' बोलकर पी रहे। कितनी शक्कर घुलेगी तो मर जायेंगे? जानकर बूझकर तोलकर पी रहे। ज़िंदगी में बनाएगा यह संतुलन, हम करेले का रस रोलकर पी रहे। जबसे पत्थर तलक रत्न होने लगे, तब से हर ज़ख्म का मोलकर पी रहे। - रा. रामकुमार, ०७.१२.२५, रविवार।
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देखते रहो...

 देखते रहो... किस ओर चल रही है हवा देखते रहो। किस वक़्त पे क्या क्या है हुआ देखते रहो।  पाज़ेब पहन नाचती हैं सर पे बिजलियां, आंखों के आगे काला धुंआ देखते रहो। तक़रीर कर रहे हैं शिकारी नक़ाब में-  'ज़ुल्मों से बचाएगा ख़ुदा देखते रहो।'  अनुभव से अपनी राह चुनो जां पे खेलकर, भटकाए किताबों का लिखा देखते रहो। चारों तरफ़ है घोर घमासान मारकाट, काटेगी सियासत ही गला देखते रहो।   @ कुमार, ०१.१२.२०२५, सोमवार, १०.१५.

इस शहरे नामुराद में मेरे घर का पता

 इस शहरे नामुराद में मेरे घर का पता             घर का एक पता होता है। यह सबको पता है। जिसका घर लापता हो, उस आदमी का सबको पता होने पर भी, वह लापता ही होता है। वह लोगों की नज़र में 'न घर का होता न घाट का'। घाट भी तो अपना एक पता होता ही है जैसे असी घाट। असी घाट सबको पता है कहां है? राजघाट, शांतिघाट, विजयघाट वगैरह असी घाट की ही बिरादरी के पते हैं। जब कोई सामान्य या असमान्य आदमी उठता है तो इन्हीं घाटों में जाता है। आने वाले का पता चाहे कुछ भी हो, जाने का पता सबका एक ही होता है-श्मसान घाट। इसलिये लोग उसे कहते हैं सम-शान घाट। सबकी समान शान।              बालाघाट और बरघाट भी दो स्थान हैं, जो दक्षिण मध्यप्रदेश में हैं। संसद तक को इनका पता है। पर ये दोनों पहले चार घाटों की तरह सम-शान या श्मसान घाट नहीं हैं। इन दोनों से मेरे सम्बन्ध हैं मगर इनमें से पहला मेरा वर्तमान पता है। हालांकि यह अलग बात है कि इस बात का पता बहुत कम लोगों को है। लगभग लापता ही हूँ। पर फिर भी मेरा एक घर है, जहां में हमेशा लौटकर आता हूँ। इस पर एक मुहाव...

छठी का दूध याद आना

छठी का दूध याद आना 26.11.2025, बुधवार, बालाघाट।  26 नवंबर आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वाणिज्यिक, प्रभुता सम्पन्न भारत के लिए महत्वपूर्ण दिन है।   इसे वर्त्तमान पीढ़ी के समक्ष संविधान दिवस के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस इतिहास के साथ कि हमने अंग्रेजों की दो सौ वर्षीय आर्थिक, वाणिज्यिक और नागरिक दासता के विरुद्ध लड़कर 1947 की आज़ादी पाई थी। उसके बाद लगभग दो वर्ष की कड़ी मेहनत, विचार विमर्श, दूरदर्शिता, आदि के बाद अपना सबसे बड़ा वृहत्तम संविधान तैयार कर लिया था। संविधान सभा के अध्यक्ष और स्वंत्रत भारत के मनोनीत राष्ट्रपति मा. राजेन्द्र प्रसाद जी के हस्ताक्षर 26 नवंबर 1949 को हुए थे। इसे दो महीने बाद  26 जनवरी 1950 को लागू कर लिया गया। इसी हस्ताक्षर दिवस की याद में 26 नवंबर  को संविधान दिवस मनाया जाता है, याद किया और कराया जाता है। जिनकी उम्र 75 वर्ष या उससे कम है, उन्हें इस दिन का पता कराया जाता है, ज्ञान कराया जाता है। संज्ञान में लिया जाता है कि बची खुची जिस तार तार सांवैधानिकता की सांसों का हल्का स्वर हम सुन पा रहे हैं, वह आज के दिन ही तैयार होकर आने...

भगवान बिरसा मुंडा जयंती 2

 भगवान बिरसा मुंडा जयंती पर 32 बंदी जेल से रिहा  : एक आदिमजाति विमर्श         आदिमजातीय गौरव दिवस, यानी 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर, मध्यप्रदेश राज्य अपनी विभिन्न जेलों से कुल 32 कैदियों को मुक्त करने वाला 'देश का पहला राज्य' बन गया है।  यद्यपि यह रिहाई जेल प्रावधानों के तहत 'अच्छे आचरणों के आधार पर रिहाई नियम' के अंतर्गत हुई है, किंतु इसे म.प्र. सरकार ने  अपने इस कदम  को आदिम-जातीय समुदाय के गौरव को सम्मान प्रदान करनेवाला "ऐतिहासिक कदम" बताया है।            मुक्त किए गए 32 कैदियों में जबलपुर जेल से 6 बंदी (5 पुरुष, 1 महिला), ग्वालियर सेंट्रल जेल से एक पुरुष बंदी शामिल है।  कटनी और छिंदवाड़ा सहित अन्य जिलों की जेलों से भी कैदियों को रिहा किया गया। इन 32 कैदियों में से केवल 9 आदिवासी समुदाय से संबंधित हैं।              मध्य प्रदेश सरकार की नई नीति के अनुसार, अब साल में कुल पांच बार जेल से कैदियों की रिहाई की जाएगी-1. 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस), 2. 15 अगस्त (स्वतंत...

बिरसा मुंडा : उलगुलान

बिरसा मुंडा 'धरती आबा'(धरती पिता) (15 नवंबर 1875 - 9 जून 1900) जन्म स्थल : ग्राम-सिंजुड़ी टोला-बाहम्बा खुटकटी गांव-उलिहातु, राँची जिला, बंगाल प्रेसिडेंसी (अब खूँटी जिला, झारखंड) बिरसा मुंडा एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना पुर्ती (मुंडा) और माता का नाम करमी पुर्ती (मुंडा) था। साल्गा गाँव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा (गोस्नर इवेंजेलिकल लुथरन चर्च) विद्यालय में पढ़ाई करने चले गए। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और 'धरती आबा' नाम से भी जाना जाता है। 'उलगुलान' (आदिवासी विद्रोह) के नायक बिरसा मुंडा-                 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को...

कटोगे तो विकास करोगे!

 कटोगे तो विकास करोगे! जंगल से जल ज़मीन छीन खोद खदानें, शेरों को सब्ज़ बाग़ दिखाती है सियासत। बंदूक फेंक दी है निहत्थे हुए हैं फिर,  मज़बूर मुल्क में हुई बे-दख़्ल बग़ाबत।           @ कुमार,०६.११.२५, गुरुवार, ०८०९ जंगल से कटे तो मिले शहरों के क़त्लगाह, वनवासी कभी शेर थे अब बैल बनेंगे। ख़ूँखार ज़िंदगी की कलाबाज़ियाँ गईं, चालाकियाँ के देश में ये खेल बनेंगे।          @ कुमार, ०७.११.२५, शुक्रवार, ०७.३९ काटें ज़मीन से तुम्हें आकाश बनाएं। सूरज के, चांद तारों के सपनों से सजाएं। तुम पैर की जूती हो तुम्हें ऐसे उछालें, यूं मुफ़्त में दुनिया की तुम्हें सैर कराएं।          @ कुमार, ०७.११.२५, शुक्रवार, ०७.५१