चिट्ठी आई है। गांवों में सब हरा भरा है चिट्ठी आयी है। इस सबूत के लिए एक फ़ोटो चिपकायी है। ज़ीने के सर से ऊपर तक ऊंचा हुआ पपीता। पके हुए फल पायदान से तोडूं, हुआ सुभीता। उसी पपीते ने कद्दू की बेल चढ़ाई है। इस सबूत के लिए.... नींबू के झरबरे पेड़ पर सेमी की मालाएं। तोड़ रहीं हैं जात-पांत की सड़ी गली सीमाएं। सदा साग में स्वाद अनोखा, भरे खटाई है। इस सबूत के लिए.... नन्हे लाल भेजरे ऊपर, तले चने के बिरवे। अमरूदों पर झूल रहे हैं हरे करेले कड़वे। उधर तुअर के बीच घनी, मैथी छ्तराई है। इस सबूत के लिए.... गांवों में सब हरा भरा है चिट्ठी आयी है। इस सबूत के लिए एक फ़ोटो चिपकायी है। @ कुमार, १६.१०.२४, एकादशी, अपरान्ह १४.३५
कृत्रिम-बौद्धिकता (A.I.)की भागमभाग में वास्तविकता (Reality) के दो जीवंत पल दीपावली मिलन की आकुल अधीरता किसी न किसी कारण से विवशता के दड़बे में बंधी पड़ी थी। बंधन में कौन नहीं है? कोई नौकरी के बंधन में है, कोई व्यवसाय के? किसी की कलाई में पढ़ाई की हथकड़ी है तो किसी को बिगड़ते मौसम ने दबोच रखा है। गोवर्धन-संक्रांति और भाई-दूज के जाने के बाद परिवार विदाई के रोमनामचे लिखने में लगा हुआ था। कोई पल ऐसा नहीं था जिसे सांस लेने की फुर्सत हो। अंततः वही काम आया जिसे निरर्थक बदनाम किया जाता रहा है। शनिश्चर यानी शनिवार अथवा संक्षिप्त में शनि। जो विज्ञानवादी हैं , वे तो चलो, वाम-मार्गी हैं, उनकी बात छोड़ दें तो हम सकारात्मक दृष्टिकोण रखनेवाले भद्रजनों की ही बात कर लें; जो ये कहते हैं कि शनि किसी को हानि नहीं पहुंचाता, किसी की बाधा नहीं बनता, वह तो तुम्हारे हौसले और धैर्य की परीक्षा लेता है। यानी चित (head) भी उसकी और पट (tail) भी उसी का। रविवार को हर व्यक्ति कहीं न कहीं जानेवाला होता है या कोई न कोई हिलगन्ट/फसौअल/मज़बूरी आ ही जाती है। मुझे भी आ गई। बाहर जाना निकल आया। मैंने सोचा कि शनिवार