सुप्रभात की सामाजिक-साहित्यिक परम्परा
सामाजिकता की चाह ने मनुष्य-समाज बनाया और उसके निरंतर विकास के प्रयास मनुष्य करता रहा। मनुष्य ही क्या, पृथ्वी पर जीवित और गतिशील प्रत्येक पार्थिव जीव, जंतु और द्रव्य इसी सामाजिकता की जन्मजात भावना में बंधकर परस्पर बंधने और बांधने के प्रयास में सक्रिय हैं। मनुष्य संगठन बनाकर शक्तिशाली और सुरक्षित रहता है, तो पशु पक्षियों को देखकर, समूह और समाज के सशक्त-सौंदर्य का बोध होता है। सांझ होते ही आकाश में पक्षियों की चित्रात्मक कतारों या समूहों को देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है। ठिकानों में लौटते पशु-समूह सामूहिकता के मूल्यों को बहुमूल्य बना देते हैं। घरेलू मवेशियों को छोड़ भी दें तो समूह-सौंदर्य का दर्शन जंगलों में जाकर किया जा सकता है। चीतलों, चिंकारों, सांभरों, बारहसिंघों और नीलगायों के झुंड के झुंड आपसी-समूह में चरते, आपस में झूमते-मस्ताते दिख जाते हैं। भारतीय गौरों (वनभैंस, Bison) के पारिवारिक वनभैंसियों को, बछड़ों के साथ देखकर, उनका श्यामल ‘समूह-सौंदर्य’ मन को मोह लेता है। सामाजिकता का लोभी मन तो वन-शूकरों (जंगली सुअरों) की सामूहिकता पर भी रोमांचित हो उठता है। हाथियों को भी समूह के स्वाद का पता है और गिर के सिंहों को भी। केवल एक्कड़ वनभैसों (पुरुष गौर) और संप्रभुतावादी व्याघ्रों (बाघों) में अकेले रहने की अकड़ देखी जा सकती है। इन अपवादों को नज़रअंदाज़ करना ही अच्छा। आज तो केवल समूह और सामाजिकता का गुणगान ही करने का मन है।
जबसे सामाजिक सभ्यता विकसित हुई है, मनुष्य आपसी संघर्षों के आदिम अज्ञान से बचकर सहअस्तित्व के तत्वज्ञान तक पहुंचा। साहचर्य और साथ-साथ चलने के सुरक्षित रास्तों की पहचान होते ही वह परस्पर संपर्क करने और संबंध बनाने के नये-नये उपाय करने लगा। सभ्यताएं आती रहीं, जाती रहीं, एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति टकराती रहीं, घुलती-मिलती रहीं। मनुष्यों की अंतरराष्ट्रीय दृष्टियों ने एक दूसरे के अंदर झांकना और अपनी भाषा को साझा करने की कला विकसित कर ली। आज हम जब इलेक्ट्रानिकी के अंतरजाल में नटों की तरह कलाबाज़ियां करते हुए वैश्विक-संपर्क का सुख भोग रहे हैं तब संपर्क की प्रणालियों का सार्वभौमिक साधनों का भी उपयोग करने में पीछे नहीं हैं।
संपर्क और जुड़ने के सबसे प्रारंभिक और प्राथमिक तरीके में संबोधन आता है। जान-पहचान वाले व्यक्ति या अजनबी व्यक्ति से जब आप मुखातिब होते हैं तो अपनी भाषा, परम्परा, संस्कृति, सभ्यता आदि के सर्वाधिक आसान साधन का उपयोग करते हैं। जैसे अगर भारतीय है तो क्षेत्र के अनुसार संबोधनों को चुन लेते हैं। प्रायः नमस्कार, प्रणाम, जोहार, सत-श्री-अकाल, राम-राम, साई राम, राधे कृष्ण, राधे-राधे, जय गोपाल, सलाम, अस्सलाम अ'लेकुम, आदाब अर्ज़ है,बड़क्कम, हाय, हेलो, (एक्सक्यूज मी, क्षमाकरें) आदि शब्दों के माध्यम से आप परिचित अपरिचित से जुड़ने की पहली पायदान पर चढ़ते हैं। फिर उसके बाद अपनी-अपनी रुचि के विषयों पर वार्त्ताएं करते हैं। भारतीय मीडिया में समाचार प्रस्तुति या किसी अन्य कार्यक्रम के प्रारंभ में सूत्रधार या एंकर इन्हीं संबोधनों से आरंभ करता है।
इन दिनों नन्हें बच्चों से लेकर वृद्धजनों तक सभी ‘सोशल मीडिया’ के विभिन्न नेटवर्क से जुड़े हुए हैं। व्हाटएप, फेसबुक-मेसेन्जर, इंस्टाग्राम, ट्वीटर (एक्स), यू टयूब आदि जीवनचर्या में शामिल हो चुके है। इन सभी में लोग बातचीत (चेटिंग) करते हैं, फोटो शेअर करते हैं, किसी अर्टिकल (लेख, लधुकथा, कहानी, कविता, ग़ज़ल, गीत आदि) के ज़रिए अपना संदेश अपने चाहे गए व्यक्ति तक पहुंचाते रहते हैं। अगर यह सब नहीं ही करना हो तो केवल रोज़ की उपस्थिति या जुड़ाव की निरन्तरता को बनाए रखने के लिए ‘गुड मार्निंग’ या ‘सुप्रभात’ तो भेज ही देते हैं।
दूरदर्शन के प्रस्तुतकत्ताओं के अतिरिक्त यू-ट्यूब में हजारों यू-ट्यूबर्स हर मिनट लोगों से कनेक्ट या संपर्कित रहने के लिए अपने कार्यक्रम अपलोड कर रहे हैं। प्रत्येक यू-ट्यूबर अपना अलग संबोधन, स्टाइल या शैली अपनाकार अपनी प्रस्तुति देता है। प्रत्येक अवसर में यू-ट्यूब में हजारों यू-ट्यूबर सक्रिय मिल जाते है। हमारे आसपास क्या हो रहा है इसकी जानकारी इनके माध्यम से समाज को मिल जाती है। इसीलिए तो ये कहलाते हैं सोशल-मीडिया (सामाजिक माध्यम)।
कुछ संबोधनों पर चर्चा कर लें। रवीशकुमार के संबोधन की शैली ‘नमस्कार, मैं रवीशकुमार’ है तो अशोककुमार पांडे की शैली ‘नमस्कार, मैं अशोककुमार पांडे’ है। अशोक वानखेड़े भी ‘नमस्कार मैं अशोक वानखेड़े, लेकर आया हूं ....’कहकर अपने दर्शकों से संपर्क स्थापित करते हैं। दीपक शर्मा कहते हैं ‘नमस्कार मैं दीपक शर्मा, मेरे यू-ट्यूब मंच में आपका स्वागत है।’ वहीं संजय शर्मा कहते हैं‘ नमस्कार मैं संजय शर्मा और आप देख रहे हैं..’ अभिषेककुमार ‘नमस्कार दोस्तों! से बात प्रारभ करते हैं। इन्हीं यू-टयूबर्स के बीच एक अलग लड़की है निधि शर्मा, जो एक 'कर्टेन-रेज़र/इंट्रो' के बाद ‘हे, हेलो, हाय, नमस्कार जी, सतश्रीअकाल, अस्लामअलेकुम, मैं निधि शर्मा’ कहकर अपने दर्शकों को कनेक्ट करती है। वह निर्दोष मुस्कान के साथ पूरे भारत को अपने से जोड़ लेती है। ऐसे ही अपने विचारों में उदार-भारत की जीवंतता को लेकर ध्यानाकर्षित करनेवाली महिला-प्रस्तोता यू- ट्यूबर्स में उल्लेखनीय हैं आरफ़ा ख़ानम शेरवानी (नमस्कार, ...चैनल में आपका स्वागत है, मैं हूं आरफ़ा ख़ानम शेरवानी), प्रज्ञा मिश्रा (नमस्कार दोस्तों) और कुमकुम बिनवाल (दोस्तों) कहकर आपका ध्यान आकर्षित करती मिल जाएंगी।
इसी क्रम में संस्कृत के एक प्रसिद्ध प्राध्यापक हैं डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी। संस्कृत-साहित्य के विमर्श को आधुनिक संदर्भों से जोड़कर यू-ट्यूब में वे अपने व्यक्तिगत चैनल के माध्यम से व्याख्यान देते हैं। प्रायः सहज स्वर में वे संबोधित करते हैं-‘नमस्कार’ अथवा ‘सभी को नमस्कार’। फिर अपना वक्तव्य प्रारम्भ करते है।
उपयुक्त उदाहरणों में केवल एक ही ‘संबोधन’ या ‘संपर्क-शब्द’ बहुतायत से दिखाई दे रहा है-‘नमस्कार।’ इसका अर्थ 'प्रणाम' के समकक्ष ‘नमन करने’ का भाव है। निधि शर्मा ने ही केवल विविध संबोधनों के साथ ‘नमस्ते’ शब्द का प्रयोग किया है, जिसका अर्थ ‘तुम्हें/तुझे नमन है।’ दोनों में मूल धातु ‘नमः’ हैं। नमः का सामान्य भाव यही है कि मैं/हम विनम्रतापूर्वक झुककर आपका अभिवादन करता हूं/करते हैं। इस विनम्र अभिवादन से व्यक्ति ‘कनेक्ट’ हो जाता है,जुड़ जाता है। यह ‘जुड़ना’ ही समाज की और इस लेख की विषय वस्तु है।
भारतीय ग्रंथों में, विशेष रूप से संस्कृत ग्रंथों में नमः, नमस्कार, नमस्ते, नमः तुभ्यम्, नमः तस्यैंः, नमस्तु ते, नमामि, आदि शब्दों से अपने गुरुजनों, अपने अभीष्टों को समर्थन, सम्मान और अभिवादन प्रस्तुत किया गया है। सहस्रों दृष्टांत हैं। सभी को प्रस्तुत करना संभव और उचित नहीं हैं। गुरू को प्रणाम या नमस्कार का यह सर्वाधिक प्रसिद्ध श्लोक देखना पर्याप्त होगा।
गुरुः साक्षात परब्रह्मः तस्मै श्री गुरुवे नमः’।
देवी के अनुयायियों का एक श्लोक यह भी लोकप्रिय है-
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणतास्मताम्।।’
और यह भी
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नमस्ते, नमस्कार और प्रणाम विनम्रता, दीनताबोध या किसी अन्यान्य कारणवश जो बोलना नहीं चाहते, उन लोगों ने या उस पीढ़ी ने संपर्क के लिए अंग्रेजी शब्द ‘गुड मार्निंग’ या हिन्दी शब्द ‘सुप्रभात’ को अपने दिन की शुरुआत का ज़रिया बना लिया है। दोनों शब्द अलग-अलग राष्ट्रीय-भाषाओं के हैं। कोई किसी का अनुवाद नहीं है। हर देश में सूरज निकलता है, हर देश में सुबह होती है। दो ध्रुवीय देशों में भौगोलिक कारणों से कुछ घंटे आगे पीछे सूरज देखा जाता है, परन्तु होता सबका अपना सवेरा है। यह कहावत ‘जब जागे तभी सबेरा’ वैश्विक बुजुर्ग़ों ने, सौरमंडल में धरती द्वारा अपनी धुरी पर स्वयं घूमने और सूरज के चक्कर लगाने के कारण ही बनाया होगा। हालांकि पहली बार यह सत्य उजागर करने पर हमारे विश्वगुरु गैलीलियो को देशीय अंधविश्वासियों ने मृत्यु-दण्ड दिया था। बाद में विज्ञान ने यह बात मान ली कि विश्वगुरु गैलीलियो सही थे। तब से स्वतंत्रता पूर्वक अलग-अलग भौगोलिक-समय में संबंधित देशों में सवेरे की दुआ सलाम, सुप्रभात, गुडमार्निंग अपनी अपनी भाषा में होने लगी। भारत में अंग्रेजों के साथ इस देश में आई 'गुडमार्निंग' ‘सुप्रभात’ के साथ हिलमिल गई।
हम सब जानते हैं कि भारत विविधताओं का देश है। अनेक राष्ट्रों ने इस देश से संपर्क किया, शासन किया और अपनी संस्कृति और भाषा को इस देश में रोपित किया। तत्कालीन परिस्थितयों में हमने उन्हें अपने दैनंदिन जीवन में स्वीकार भी कर लिया। अरबी और अंग्रेजी भाषा संस्कारों से आज भी हम जुड़े हुए हैं।
अंग्रेजों ने गुड मार्निंग, गुड नून/ गुड आफ्टर नून, गुड ईवनिंग, गुड नाइट, आदि की बोली और सभ्यता दी।
संस्कृत और हिन्दी भाषी हिन्दुस्तान (भारत) में ‘सुप्रभात’ की परम्परा दीर्घकालीन है। आनंद और प्रसन्ता की बात यह है कि चौदह की चौदह भाषा बोलनेवालों में संस्कृत शब्द ‘सुप्रभातम्’ ‘सुप्रभात’ के रूप में मिल जाता है। शुभ दिन, शुभ-संध्या और शुभ-रात्रि कहनेवाले असंख्य है। हिन्दुस्तान ही नहीं विदेश में भी।
उल्लेखनीय है कि संस्कृत के कवियों ने अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार अपने-अपने ढंग से ‘सुप्रभात’ पर गीति-काव्य रचा। ‘मम सुप्रभातम्’ और ‘तव सुप्रभातम्’ दो पारम्परिक सुप्रभातियां इस देश में प्रचलित हैं।
‘मम सुप्रभातम्' के अंतर्गत पांच श्लोकों में पूरे नभमंडल, सौरमंडल के नव ग्रह, पृथ्वी, सात सागर, संगीत के सात सुर, सात पर्वत, सात द्वीप, आदि को प्रातःकाल बड़े मधुर संगीत के साथ गाकर ‘सुप्रभात’ कहा गया है।
इसी प्रकार प्रतिदिन सुबह आकाशवाणी में, दक्षिण भारतीय कण्ठ से निकलकर संपूर्ण भारत में नमः-ग्रीव होकर सुना जानेवाला ‘तव सुप्रभातम्’ भी, अद्भुत स्वर लहरी के साथ ‘श्री वेंकटसुप्रभातम्’ के नाम से सुना जाता है। दक्षिण के किसी कवि के द्वारा रचित श्री वेंकट सहित अन्यान्य हिन्दु देवताओं से प्रातःकाल जुड़ने का प्रभात-गायन मुग्ध कर देता है।
‘श्री वेंकटसुप्रभातम्’ नामक यह ‘सुप्रभाती’ कुल उन्तीस श्लोकों की है। इनमें दो प्राथमिक श्लोकों में कमलाकांत से तीनों लोकों का मंगल करने के लिए उठने (जागने) का अनुरोध है। इसके तत्काल बाद तीसरे श्लोक में ‘समस्त जगत की जननी’ को श्रीवेङ्कटेशदयिते तव सुप्रभातम् कहा गया। 4 थे श्लोक में वेंकटेश को सुप्रभातमरविन्दलोचने कहकर सुप्रभाती आरंभ की गई। शेष 25 श्लोकों में ‘कमलाकांत’ को अनेक नामों से संबोधित कर उन्हें सुप्रभात कहा जा रहा है। एक एक बार वृषाचलपतेरिह सुप्रभातम्, वेङ्कट सुप्रभातम्, वेङ्कटपते तव सुप्रभातम् कहा गया और शेष श्लोकों में शेषाद्रिशेखरविभो तव सुप्रभातम् कहा गया।
आशा है सुप्रभात से मेरा जो आशय या अभिप्राय है उसके सामाजिक महत्व को समझ रहे होंगे, अतः सुप्रभातम्।
@ रा.रा.कुमार वेणु
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