'मेल मुलाक़ात' का गीत .. संदेशों के शब्दों में कब तक मिलोगे, कभी रूबरू भी मुलाक़ात कर लो। न जाने कई दिन का क्या क्या दबा है, चले आओ खुलकर सभी बात कर लो। न तुम जानते थे, न हम जानते थे, हमें दूरियों की ख़बर ही नहीं थी। ज़रा खिंच के दौड़ी, चली आये वापस, ये दूरी वो खेंची, रबर ही नहीं थी। अकथनीय बंधन थे, मज़बूरियों के, नहीं छूट थी, कुछ अकस्मात कर लो। दबाये रखे दुख, बहाने बनाकर, कभी भूलकर, ना बहे भावना में। बचाये रखी साख सम्बन्ध की सब, जिलाये रखा उसको शुभकामना में। मिले पर्व के पल, मिलन के परस्पर, भरो अंजुरी इनको सौग़ात कर लो। सभी स्वप्न स्वर्णिम, सभी सुख सुहाने, सु-स्वर्णाक्षरों में लिखी पुस्तकें हैं। दुखी दुर्दिनों को न कोसा करें हम, ये संभावना से भरी दस्तकें हैं। समूचा जो साकार है 'आज' प्रस्तुत, वही सच है, स्वीकार, संज्ञात कर लो। ० @कुमार, सोम,२७.११.२३, ०५.५७, संज्ञात : पूर्णतः मान्य, आत्मसात,