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Showing posts from October, 2022

आज की ग़ज़ल

 आज की ग़ज़ल  0 हमेशा' अपनी' ही मर्ज़ी से क्यों जिया जाए कभी हवा की दिशा में भी बह लिया जाए फटे दिलों को मुहब्बत से अब सिया जाए हुए कटार से रिश्ते हैं क्या किया जाए तबील राह हो तो ये सबक़ ज़रूरी है मुसाफ़िरों के बराबर सफ़र किया जाए हंसी ख़ुशी के ये लम्हात गर गए तो गये हज़ार जख़्म दबा मौज में जिया जाए ज़मीन पास में होगी तो नींव रख लेंगे बने मकान तो छत उठ के आलिया जाए मसर्रतों का मुहर्रम मना रही है सदी महज़ ख़याल की सड़कों पे ताज़िया जाए तमाम रिश्तों से बढ़कर वो एक है कांधा कि जिस पे रखते ही सर सोग़ शर्तिया जाए बयानबाज़ियों के सब्ज़ बाग़ रहने दो करो उपाय कि मसला ये हालिया जाए  शराब की ही लगानों से मुल्क जी पाया निजाम ये है कि घर घर में साक़िया जाए  @ हबीब अनवर  {alis डॉ. आर रामकुमार, रामकुमार रामरिया, कुमार ज़ाहिद वग़ैरह} 0 शब्दार्थ : तबील = लम्बी, दूरी की,  आलिया (अरबी)= आकाश, स्वर्ग, मसर्रत = हर्ष, उल्लास, खुशी, आनंद,  मुहर्रम = शोक काल, इमाम की शहादत का मातम,  महज़ = केवल, मात्र, निरा,  ख़याल = कल्पना, तख़य्युल, illusion, दृष्टि भ्रम, निराधार कल्पना, ताज़िया = इमाम क...

ग़ज़ल

 एक ग़ज़ल  रश्क़ दुश्मन को हो    असबाब हैं मेरे अंदर जान से क़ीमती    अहबाब हैं मेरे अंदर रतजगे जश्न तमाशे सभी का मरकज़ हूं अलहदा क़िस्म के   अरबाब हैं मेरे अंदर हाल बीमार का   आंखों से पकड़ लेता हूँ आइना हूँ   कई सीमाब हैं मेरे अंदर मैं कि किरदार को ज़रदार बना देता हूँ गो नगीने नए नायाब हैं मेरे अंदर रोज़ इंसान की सीरत को नई सूरत दूं आसमां हूं   कई महताब हैं मेरे अंदर @डॉ. रा.रामकुमार, (प्रतिच्छाया : @ कुमार जाहिद, @हबीब अनवर, 19.10.22) शब्दार्थ : असबाब > सबब का बहुवचन, अहबाब > हबीब( मित्र) का बहुवचन अरबाब > रब (ईश्वर, अनेक धर्मों के अनेकशः) सीमाब > पारा, पारद, अनेक आलों में अलग अलग इस्तेमाल होनेवाली तरल धातु, {सीमाब के साथ कई लफ़्ज़ तब अखरनेवाला है जब उसे एक ही अर्थ में लिया जाए। सीमाब का अर्थ (१) आईने के लेप और (२) पारे से बनी दवा , चिकित्सक (३) बुखार नापने और (४) बीपी नापने के दो अलग अलग आले में इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावे (५)एटमोस्फियरिक प्रेशर के लिए बैरोमीटर में भी सीमाब का इ...