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Showing posts from September, 2022

नाख़ून कब कटेंगे?

 नाख़ून कब कटेंगे?                            @डॉ. आर. रामकुमार ० हमारे बाल और नाख़ून रोज़ बढ़ते हैं. यह प्राकृतिक-शारीरिक क्रिया है. बाल, हड्डी और नाख़ून एक ही प्रजाति के प्रत्यंग हैं. हड्डी काटने और तोड़ने का कोई दिन या मुहूर्त नहीं होता, उसके लिए 'भाव' की भूमिका महत्वपूर्ण है. घृणा या क्रोध जैसे ख़राब समझे जानेवाले 'भाव' आने से, लोग दिन या मुहूर्त का विचार किये बिना ही, किसी भी क्षण हड्डी तोड़ या काट सकते हैं. कभी-कभी ख़राब ही नहीं, अच्छे या ऊंचे 'भाव' होने पर भी हड्डियां काटी या तोड़ी जाती हैं. ऊंचे और अच्छे 'भाव' के कारण ही इस देश में गायों, बकरियों और मुर्ग़ियों की हड्डियां काटी और तोड़ी जा रही हैं. गाय की हड्डियों ने तो राजनीति पर भी बड़ा हल्ला मचाया है. चूंकि इस देश में गाय की तुलना स्त्री से की जाती है, इसलिए देश के धर्मप्राण प्रान्तों में स्त्री और गाय की हड्डियां समान रूप से तोड़ी और काटी जा रही हैं. अब हम बाल पर आते हैं. बालों की महिमा बहुत है. बाल शरीर पर हड्डियों और नाख़ूनों के साथ आते हैं. एक समय तक बाल बढ़ाने का ...

युद्धोत्प्रेरक सप्तशती है गीता

युद्धोत्प्रेरक सप्तशती है गीता  *  वास्तव में प्रतिपक्ष के प्रतिकार का पूर्व-प्रबंधन है गीता। सामना की तैयारी है। सान पर शस्त्रों को पैना करना है। शस्त्रों को धार देने का प्राम्भिक सत्र है गीता। संघर्ष का प्राक्कथन है। प्रायः पक्ष का प्रबंधन, अहंकार और अहमन्यता पर आधारित स्थापनाओं और उनकी प्रतिरक्षा तक सीमित हो जाता है। उसकी हठधर्मिता का सारा ध्यान निर्माण की अपेक्षा विध्वंस में लिप्त रहता है। इसलिए प्रतिपक्ष वाम-मार्गी होता है। वह विरोध में, असहमति में उठा हुआ हाथ होता है। उसकी वह न्याय के पक्ष में होता है और पक्ष में भांड होते हैं, ताली बजानेवाले किन्नर होते हैं, चारण होते हैं, विचार-विहीन उच्छ्रंखल होते हैं। जैसा कि महाभारत की कथावस्तु में देखते हैं। महाभारत में दो पक्षों अर्थात पक्ष और प्रतिपक्ष के आपसी अंतिम टकराव, आर-पार की लड़ाई का प्राम्भिक प्रबंधन अर्जुन-कृष्ण संवाद के रूप में महाभारत का सप्तशती-खंडकाव्य गीता है, जो अर्जुन के हतप्रभ और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाने के बाद हथियार डालने के बाद, कृष्ण के प्रेरणास्प्रद उद्बोधन अथवा समकालीन शब्दों में मोटिवेशनल-स्पीच (motivation...