3. असम्बाधा :
असम्बाधा को प्रो. मौला बक्श ने छंदोमंजरी में 41 वें छंद क्रम में लिया है। 14 वर्ण या अक्षरों या गण मर्यादा में 22 मात्राओं के इस छंद को वे निम्नानुसार व्यक्त करते हैं - अक्षर 14, गण म त न स गा गा, मात्रा स्वरूप 222, 221,111,112, 22, कुल मात्रा 22,
छंद के उदाहरण संस्कृत, हिंदी, मराठी, गुजराती में प्रस्तुत करने के पूर्व प्रो. बख्श उदाहरण माला के ऊपर ही असंबाधा छंद के गायन के लिए राग, जाति, ताल और गति का विवरण इस रूप में दे देते हैं...
राग: आरभी, ताल : चतुश्र, जाति: भानुमति, मात्रा 11 विलंबकाल.
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उदाहरणमाला
1. संस्कृत :
वीर्य्याग्नौ येन ज्वलति रण वशात क्षिप्ते।
दैत्येन्द्रेजाता धरणि रियमसम्बाधा।।
धर्मस्थित्यर्थं प्रकटित तनु संबंध:।
साधूनां बाधां प्रशनमयतु स कंसारी:।। { यही संस्कृत उदाहरण छंदोर्णव पिङ्गल (1929) के रचयिता भिखारीदास पद १८०, पृ. ४६ में यथावत प्रकाशित करते हैं।)
2. हिंदी :
रात्यो द्यो वा नाम जपत अति वै तापे।
तू ताही को नाम कहति मत ले मौ पे।।
पापी पीड़ावंत जग तज सुनू राधा।
ज्या के ध्याये हॉट अकलुष असंबाधा।।
3. मराठी
मोठे दाते ते तनुधनसह गेले कीं ॥
स्वर्गा त्यांचें भूवरि सुत नुरले लोकीं ॥
गौळीयातें तो यदुपति दिसतो साधा ॥
भक्तांची जो दूर सहज करितो बाधा ॥
4. गुजराती
बीजे देशे जै पर नरपतिनी वातो।
छानो रै जाणे मननि समझि ले घातो।।
तेना दासो पास रहि सकल वृत्तान्तो।
जाणी लै पोते कुशळ रहि न लोपातो।।
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अन्यत्र यह विवरण मिलता है कि असंबाधा एक वर्णवृत जिसके प्रत्येक चरण में मगण, तगण, नगण, सगण और दो गुरु होते हैं।
इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। गणों के उच्चारण करने से गति, प्रवाह या लय स्पष्ट हो जाती है।
मातारा ताराज नसल, सलगा गा गा। (यति ९-५)
१. यह लक्षण वृत्त छंद प्रेमियों को रचने में सहायक हो सकेगा:
मातारा ताराज नसल, सलगा गा गा।
चौदा वर्णों साथ चतुष गण को पागा।।
गाते गाते गीत मधुर सुर जो साधा।
चिंता बाधा मुक्त विरचित असंबाधा।। (रारावे)
२.
जीते-जीते राज समझ, यह आता है।
कोई भी होता न अमर, मर जाता है।।
छीने चाहे पात्र-अमिय, बल से लोभी,
पी पाने का भी अवसर, कब पाता है?।
( रा रा वे)
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असबंधा छंद: (वर्णिक छंद) के अन्य उदाहरण देखें..
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हिन्दी भावों की मधुरिम परिभाषा है।
ये जाये आगे बस यह अभिलाषा है।।
त्यागें अंग्रेजी यह समझ बिमारी है।
ओजस्वी भाषा खुद जब कि हमारी है।
@बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
० मराठी में देखें...
असंबाधा. य० ९,५. लक्षण वृत्त
त्या वृत्ताला बोलति सुकवि असंबाधा ॥
ज्याच्या पादीं ये म त न स ग ग निर्बाधा ॥
एके पादीं ते अवयव भरती चौदा ॥
पुण्याचा तूं लौकर कारं मनुजा सौदा ॥
चरणांत अक्षरें १४.
गण - म, त, न, स, ग, ग.
उदाहरण
मोठे दाते ते तनुधनसह गेले कीं ॥
स्वर्गा त्यांचें भूवरि सुत नुरले लोकीं ॥
गौळीयातें तो यदुपति दिसतो साधा ॥
भक्तांची जो दूर सहज करितो बाधा ॥१॥
*मोरोपंत
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