आज हिन्दी दिवस है।
सुबह आंख खुलते ही मेरे दिमाग में अलार्म की तरह यह धुन बजने लगी कि आज हिन्दी दिवस है। इसका श्रेय मैं उन तथाकथित हिन्दी-सेवकों को देना चाहता हूं जिन्होंने पत्र लिखकर या फोन करके मुझे बार-बार याद दिलाया था कि आगामी फोरटीन सितम्बर हिन्दी दिवस है। मैं हिन्दी का प्राध्यापक हूं, इस नाते प्रमुख वक्तव्य देना मेरा कत्र्तव्य है। वे मुझे आमंत्रित नहीं कर रहे थे, बल्कि मेरे हिन्दी के प्रति बाई-डिफाल्ट कत्र्तव्य की याद दिला रहे थे। उनके अनुसार, यह मेरी नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि मैं इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिये अवश्य टाइम निकालूं। मैं समझ गया कि न वे ऐसे छोड़नेवाले हैं, न मैं।
हिन्दी दिवस पर क्या बोलूंगा, यह मैं समझ नहीं पा रहा था। लोगों का रुझान दिवस मनाने में ही रहता है। एक कार्यक्रम हो गया, जिन्होंने मनाने के लिये कहा है, उन्हें रिपोर्ट कर दी, बस। यही आयोजकीय है। हिन्दी क्या, क्यों, कहां, कैसी, कितनी आदि का ना तो उन्हें पता है, ना वे पता करना चाहते। उन्हें या तो सब आता है, जैसा कि उन्हें मुगालता है, या हिन्दी में क्या रखा है, जैसा कि हर व्यक्ति सोचता है। हिन्दी सेवकों के नाम पर खड़े इन हिन्दी विरोधियों को भला मैं क्या बता पाउंगा।
बहरहाल, मैं तनाव में हूं कि हिन्दी-दिवस पर कुछ बोलना है, पर क्या बोलना है, नहीं मालूम। इसी बीच चाय आ जाती है और चाय के दो घूंट भरता हूं तो अखबार आ जाता है। इस क्षेत्र का सबसे ज्यादा वेल एस्टेब्लिश्ड, वेल मार्केटेड और लोकप्रिय अखबार ही मेरे घर आता है। सभी द बेस्ट चाहते हैं।
मैं हेड लाइन पढ़ने लगता हूं, बिल्कुल बीचोबीच काले अक्षरों में लिखा हैै- ‘अमित शाह के खिलाफ चार्जशीट। भड़काऊ भाषण मामला। दोषी पाए जाने पर तीन साल की हो सकती है सजा।’ इसे आज की सुर्खी कहा जा सकता है। (कहा इसलिये जा सकता है क्योंकि है ‘सुर्खी’, पर छपी काली स्याही में है।)
दूसरी हेडलाइन- ‘एक लाख जिन्दगी बचाई, पांच लाख बचाने की चुनौैती।’
तीसरी हेडलाइन-‘छत्तीसगढ़ में बनेगी देश की पहली तेंन्दुआ सफारी। सौ हैक्टेयर इलाके में फेंसिंग कर रखे जायेंगे तेन्दुए।’
मुझे जिस तरफ जाना है, वह रास्ता दिखने लगा है। मैं उत्सुकता से आगे पढ़ता हूं-‘छत्तीसगढ़ के बार-नवापारा अभ्यारण्य में देश की पहली तेन्दुआ सफारी बनाने की कवायद की जा रही है।$$वनविभाग ने सफारी का पूरा प्रोजेक्ट तैयार कर लिया है। इसे वे अक्टूबर में दिल्ली स्थित सेन्ट्रल जू अथारिटी के सामने पेश करेंगे।$$नंदनवन से 20 काले हिरण बार-नवापारा के जंगलों में शिफ्ट किये जायेंगे।
इस समाचार के नीचे ही वन विभाग के बड़े अधिकारी का बयान छपा है-‘‘बार नवापारा के जंगलों में तेंदुए बड़ी तादाद में हैं। यहां कुछ इलाकों को तेंदुआ सफारी के रूप में डेवलप करने का प्लान हैं।’’-एसएसडी बड़गैया, डीएफ।(इस अभ्यारण्य में हिन्दी के लिये भी सफारी का प्रावधान है क्या भाई?)
चलिये, मुझे वह मिल गया है जिसकी मैं तलाश कर रहा था। मैं दो और मजे़दार समाचार सुनाता हूं जिसका संबंध भी मेरे मन्तव्य से है, फिर आपको बताता हूं कि मुझे क्या मिल गया। तेंदुआ सफारी वाले समाचार के ठीक ऊपर ‘राष्ट्रीय-अस्मिता और नैतिकता’ से जुड़ा बड़ा रोचक समाचार है। हेड लाइन है-‘केरल सरकार को सुको ने बार लाइसेंस रद्द करने से रोका।
नई दिल्ली। सुको ने केरल सरकार को फिल्हाल बार लाइसेंस रद्द करने से रोक दिया है। सरकार के फैसले के मुताबिक पूरे राज्य में गुरुवार से यह लाइसेंस रद्द हो रहे थे।$$उसने सिर्फ फाइव स्टार होटलों को ही बार लाइसेंस देने का फैसला किया है। जबकि करीब 700 छोटे होटलों को गुरुवार तक उनके बार बंद करने के निर्देश दिये थे। इसके खिलाफ़ होटल मालिकों ने शीर्ष कोर्ट में अर्जी दाखिल कर तुरंत सुनवाई की मांग की थी।$$बेंच ने कहा कि उसे सरकार की नई शराब नीति में कोई तर्क नज़र नहीं आता।’
(तर्क तो शराब के लाइसेंस किसी को भी देने में नहीं है जनाब सुको बेंच साहब!) इससे ठीक बगल में राष्ट्रीय-चरित्र, सांवैधानिकता और संस्कृति पर प्रश्न-चिन्ह लगाते दूसरे समाचार पर जरा गौर फर्माएं-‘‘तेलंगाना का अपमान किया तो दफना दूंगा: सीएम।
हैदराबाद। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने मीडिया को धमकी दी है। राव ने कहा है कि तेलंगाना की बेइज्जती करनेवाले मीडिया कर्मियों की गर्दन तोड़ देंगे। उन्हें जमीन के 10 किमी नीचे तक दफन कर देंगे।’’(दफनाने की क्रिया और मि. राव? बात कुछ जमी नहीं। धमकी हास्यास्प्रद हो गई।)
खैर, राजनीति के महारथियों पर दो और हैडिंग देखिये-पहली-‘‘सोनिया की फोटो के खिलाफ दायर याचिका खारिज। यूपीए अध्यक्ष की हैसियत से सरकारी विज्ञापनों के जरिये प्रचार-प्रसार के आरोपों को हाई कोर्ट ने नाकाफी पाया।
दूसरी-‘मानहानि मामले में सुब्रह्मण्यम (सुब्रमणियम जी देखेंगे तो अपने अजीबोगरीब ढंग से लिखे नाम से घबरा ही जायेंगे।) स्वामी को समन। तमिलनाडु की एक कोर्ट ने भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम (सुब्रमणियम) स्वामी को समन जारी किया है। मुख्यमंत्री जयललिता की मानहानि के मामले में उनसे 30 अक्टूबर को अदालत में पेश होने को कहा गया है। जयललिता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य सेसन जज आदिनाथ ने समन जारी करने के आदेश दिए।’’ (प्रकरण श्रीलंका में बंदी तमिलियन मछुआरों के बंदी बनाए जाने का है।)
ये तो रहे राष्ट्रीय राजनीतिक समाचार। लगे हाथ दो अंतर्राष्ट्रीय हैडिंग का लुत्फ लेते चलें। तमिल सुब्रमणियम (संस्कृत ‘शुभ्रमणियम्’) स्वामी के समाचार के ठीक नीचे ये हैडिंग है-‘‘ब्रिटेन की संसद पर चर्चा, भारत ने जताया ऐतराज। मानवाधिकारों पर ब्रितानी सांसद करेंगे बातचीत।’ इसी पेज में ऊपर कोने में हमारी अंतर्राष्ट्रीय नीति पर प्रकाश डालती यह हैडिंग देखिये-‘‘याचिका-इटली जाने की इजाजत से पहले मेडिकल जांच हो नौसैनिक की। नई दिल्ली। बीमार इतालवी नौसैनिक को स्वदेश जाने की इजाजत देने से पहले उसकी मेडिकल जांच कराई जानी चाहिए।$$इतालवी नौसैनिक को 15फरवरी 2012 को की गई फायरिंग में दो भारतीय मछुआरे मारे गए थे।$$कोर्ट से नौसैनिक मैसी मिलियानो लातोरे की जांच के लिए एम्स के डाक्टरों का बोर्ड बनाने का आग्रह किया गया है।’’
इन सब समाचारों में सूचनाएं तो होती हैं, जिन्हंे हम चाव से पढ़ते हैं या पढ़कर गहरी सांस लेते हैं। परन्तु इन सब समाचारों के कुछ निहित अर्थ भी होते हैं। हम सब किसी न किसी प्रभाव को ग्रहण करते हैं, कुछ सोचते हैं, किसी न किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। मोबाइल फोन, टीवी या कम्प्यूटर से बिना देखे जाने निकलनेवाली रेडिओ एक्टिव किरणों की तरह ये लिखित समाचार भी हमारे मष्तिष्क और अवचेतन को वायरल करते हुए गुजर जाते हैं।
इसके बावजूद, हिन्दी-दिवस के अवसर पर मैं इन समाचारों को आज दूसरे ही परिप्रेक्ष्य में देख रहा हूं। हिन्दी भाषा की वर्तमान दशा और वह किस दिशा में निकल आई है, यह देख रहा हूं। अंग्रेजी और अरबी-फारसी के रक्त और मांसपेशियों से भरी-पूरी आज की गुदाज अखबारी भाषा में हिन्दी को विलुप्त होते किसी शेर की तरह ढूंढ रहा हूं। हिन्दी के शिकार पर प्रतिबंध न होने से शिकार के शौकीन अंग्रेजी काउ-बाॅय और अरबी अजीमुश्शान शहंशाहों ने हिन्दी को पता नहीं कहां और किस प्रकार भून कर खा लिया। अब तो वह चिड़िया घरों मंे दिखाई देनेवाले सिंहों-शेरों पढ़ी और बोली जानेवाली भाषा में यदाकदा दिख जाती है। आजकी यानी 14 सितम्बर 2014 की हिन्दी ट्राई-लिंगुअल दिखाई दे रही है जिसमें अरबी-फारसी के जांबाज अलफा़जों की आन, बान और शान तो है ही, इंगलिश का ग्लैमर और ग्लोबलाइजेशन भी पूरे पावर में है। यही है महोदय आज की हिन्दी। चाहें तो एक बार फिर मेरे चयनित उद्धरणों को पढ़ ले या कोई भी हिन्दी का अखबार यानी न्यूज पेपर उठा कर देख लीजिये। समझ जाएंगे कि मैंने समाचार-पत्र उठाने की बात क्यों नहीं की।
14 सितंबर 2014 गुरुवार।
अगली प्रस्तुति: हमारी ‘एंग्लो-अर.फार. हिन्दी’’: परिचय और प्रावधान
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