पिछले पत्र का पुनश्च: चूहों का साहित्य-विमर्श मेरे आत्मन,, मेरे अपरूप चींचीं, इतनी आत्मीय से घबराना मत कि कहीं मैं सरक तो नहीं गया। आगे पढ़ोगे तो समझ जाओगे कि मैं तुम्हें अपना अपरूप क्यों कह रहा हूं। ‘पर्दे के पीछे’ के लेखक जयप्रकाश चौकसे एक समर्थ लेखक है। दिनांक 24 मार्च 10 को प्रकाशित उनका लेख ‘ बचपन को समर्पित अमर पात्र ’ चींची तुम्हारी याद में है। श्री चौकसे कविता दर्शन और साहित्य का ऐसा समन्वय उपस्थित करते हैं कि उनका लेख फिल्मी कहीं से नहीं रह पाता। वे गंभीरता पूर्वक सामाजिक सरोकार के पैरोकार लगते हैं और उनके सूत्र विश्वगुरुओं के उद्गार। मैं उनके आलेखों को रेखांकित करते हुए पन्नों को और काला करता हूं। यह साहित्य का अद्भुत रंग दर्शन है कि जितने काले होते हैं पन्ने ,उतने उजले होते हैं। श्रद्धेय चैकसे के कुछ रेखांकित अंश चींचीं तुम भी पढ़ो..............‘ बचपन को समर्पित अमर पात्र ’ कार्टून पात्र ‘टाॅम एंड जैरी ’ सारी दुनिया के लागों का मनोरंजन विगत सत्तर वर्षों से कर रहे हैं।..हर कथा के अंत में मजबूत और डील डौल में बड़ी बिल्ली थककर निराश हो जाती है । हमेशा छोटा चूहा जीत जाता है। ...