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Showing posts from September, 2009
जिनमें निश्छल दर्द हुआ है उन गीतों ने मुझे छुआ है। मुख्य-मार्ग में रेलम पेला पथपर मैं चुप चलूं अकेला खेल-भूमि पर हार जीत का कोई खेल न मैंने खेला । बहुत हुआ तो चलते चलते कांस-फूल को गोद लिया है। फिसलन हैं ,कंकर पत्थर हैं मेरे घर गीले पथ पर हैं भव्य-भवन झूठे सपने हैं अपने तो चूते छप्पर हैं। छल प्रपंच के उजले चेहरे निर्मल मन में धूल धुआं है। मंगली हैं मेरे सब छाले दिए नहीं मन्नत के बाले मेरी नहीं सगाई जमती कोई सगुन न मेरे पाले हाथों कष्टों की रेखाएं सर पर मां की बांझ दुआ है। फिर भी मैं हंसता गाता हूं जिधर हवा जाती जाता हूं दिल में जो भी भाव उपजते गलियों में लेकर आता हूं बोया बीज न फसल उगाई खुले खेत भी कहां लुआ है। 080909

राष्ट्र-ऋषि नहीं कहलाएंगे शिक्षक

चाणक्य के देश में शिक्षक दुखी है ,अपमानित है और राजनीति का मोहरा है। वह पीर ,बावर्ची और खर है। खर यानी गधा। उस पर कुछ भी लाद दो वह चुपचाप चलता चला जाता है। आजादी के बाद से गरिमा ,मर्यादा और राष्ट्र-निर्माता के छद्म को ढोते-ढोते वह अपना चेहरा राजनीति के धुंधलके में कहीं खो चुका है। वह जान चुका है कि शिक्षकों के साथ राजनीति प्रतिशोध ले रही है। फिर कोई चाणक्य राजनीति के सिंहासन को अपनी मुट्ठी में न ले ले ,ऐसे प्रशानिक विधान बनाए जा रहे हैं। आजादी के बाद इस देश में शिक्षकों को राष्ट्रपति बनाया गया। एक राजनैतिक चिंतक ने राष्ट्र को दार्शनिक-राजा द्वारा संचालित किये जाने की बात की थी। डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् जैसे प्रोफेसर को राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर बैठाकर भारत ने जैसे अपनी राजनैतिक पवित्रता प्रस्तुत की। राष्ट्रपति राधा कृष्णन् के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाए जाने से जैसे शिक्षकों और गुरुओं के प्रति राष्ट्र ने अपनी श्रद्धा समर्पित कर दी। लेकिन पंचायती राज्य ,जनभागीदारी और छात्र संघ चुनाव के माध्यम से शिक्षकों को उनकी स्थिति बता दी गई कि तुम राष्ट्र निर्माता नहीं हो ,सब्बरवा...

तोता उड़ गया

और आखिर अपनी आदत के मुताबिक मेरे पड़ौसी का तोता उड़ गया। उसके उड़ जाने की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। वह दिन भर खुले हुए दरवाजों के भीतर एक चाौखट पर बैठा रहता था। दोनों तरफ खुले हुए दरवाजे के बाहर जाने की उसने कभी कोशिश नहीं की। एक बार हाथों से जरूर उड़ा था। पड़ौसी की लड़की के हाथों में उसके नाखून गड़ गए थे। वह घबराई तो घबराहट में तोते ने उड़ान भर ली। वह उड़ान अनभ्यस्त थी। थोडी दूर पर ही खत्म हो गई। तोता स्वेच्छा से पकड़ में आ गया। तोते या पक्षी की उड़ान या तो घबराने पर होती है या बहुत खुश होने पर। जानवरों के पास दौड़ पड़ने का हुनर होता है , पक्षियों के पास उड़ने का। पशुओं के पिल्ले या शावक खुशियों में कुलांचे भरते हैं। आनंद में जोर से चीखते हैं और भारी दुख पड़ने पर भी चीखते हैं। पक्षी भी कूकते हैं या उड़ते हैं। इस बार भी तोता किसी बात से घबराया होगा। पड़ौसी की पत्नी शासकीय प्रवास पर है। एक कारण यह भी हो सकता है। हो सकता है घर में सबसे ज्यादा वह उन्हें ही चाहता रहा हो। जैसा कि प्रायः होता है कि स्त्री ही घरेलू मामलों में चाहत और लगाव का प्रतीक होती है। दूसरा बड़ा जगजाहिर कारण यह है कि लाख पिजरों के सुख के ब...