अनुभूतियां , अभिव्यक्तियां,
जीवन की दो ध्रुव शक्तियां,
पहला चरण है आचरण, दूजा चरण अनुवृत्तियां ।।
रचना का पहला धर्म है, संवेदना जीवित रहे ।
विचलित न हो जो हार से, साहस से चिरसिंचित रहे ।
एकाकी होकर भी चले,
उसका मनोबल क्या दलें,
दूषित स्वजीवी हेकड़ी, बूढ़ी अपाहिज भ्रांतियां ।।
अपने लिए सुविधा रखे, दुविधाएं देकर अन्य को ।
निर्मल सुजन कब पूजते, ऐसे दुमुख सौजन्य को ?
उपकार की गणना करे,
हर सांस में करुणा भरे,
उसकी बनावट टूटती, चलती जो सच की आंधियां ।।
अपने को रखकर केन्द्र में, दूजे का मूल्यांकन करे ।
प्रतिफल की आशा में सदा, आदर्श का पालन करे ।
अपने लिए जीता मरे,
विद्वेष विष पीता फिरे,
ऐसे अभागे व्यक्ति की, खुलती कभी न ग्रंथियां ।।
जीवन की दो ध्रुव शक्तियां,
पहला चरण है आचरण, दूजा चरण अनुवृत्तियां ।।
रचना का पहला धर्म है, संवेदना जीवित रहे ।
विचलित न हो जो हार से, साहस से चिरसिंचित रहे ।
एकाकी होकर भी चले,
उसका मनोबल क्या दलें,
दूषित स्वजीवी हेकड़ी, बूढ़ी अपाहिज भ्रांतियां ।।
अपने लिए सुविधा रखे, दुविधाएं देकर अन्य को ।
निर्मल सुजन कब पूजते, ऐसे दुमुख सौजन्य को ?
उपकार की गणना करे,
हर सांस में करुणा भरे,
उसकी बनावट टूटती, चलती जो सच की आंधियां ।।
अपने को रखकर केन्द्र में, दूजे का मूल्यांकन करे ।
प्रतिफल की आशा में सदा, आदर्श का पालन करे ।
अपने लिए जीता मरे,
विद्वेष विष पीता फिरे,
ऐसे अभागे व्यक्ति की, खुलती कभी न ग्रंथियां ।।
Comments