जंगल से जल ज़मीन छीन खोद खदानें,
शेरों को सब्ज़ बाग़ दिखाती है सियासत।
बंदूक फेंक दी है निहत्थे हुए हैं फिर,
मज़बूर मुल्क में हुई बे-दख़्ल बग़ाबत।
@ कुमार,०६.११.२५, गुरुवार, ०८०९
जंगल से कटे तो मिले शहरों के क़त्लगाह,
वनवासी कभी शेर थे अब बैल बनेंगे।
ख़ूँखार ज़िंदगी की कलाबाज़ियाँ गईं,
चालाकियाँ के देश में ये खेल बनेंगे।
@ कुमार, ०७.११.२५, शुक्रवार, ०७.३९
काटें ज़मीन से तुम्हें आकाश बनाएं।
सूरज के, चांद तारों के सपनों से सजाएं।
तुम पैर की जूती हो तुम्हें ऐसे उछालें,
यूं मुफ़्त में दुनिया की तुम्हें सैर कराएं।
@ कुमार, ०७.११.२५, शुक्रवार, ०७.५१

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