शानी का पूरा नाम ...
'नाम में क्या रखा है।' यह बड़ा लोकप्रिय कथन है और अंग्रेजी लैटिन के जानकार बताते हैं कि विलियम शेक्सपीअर के किसी नाटक में कोई पात्र यह कथन करता है। लेकिन सच्चाई यही है कि अधिकांश लोग धन, जन, काम और नाम के लिये ही जीते हैं। उसे ही पुरुषार्थ मानते हैं।
पर देखा यह जाता है व्यक्ति के काम के पीछे उसका नाम गौण होकर, काम की पीठ पर सवार होकर चलता रहता है। पैरासाइट की तरह , पिस्सू या अमरबेल की तरह। आज भी कालिदास का मूल नाम किसी को नहीं मालूम। तुलसीदास
का नाम रामबोला भी अनुमान या कथा ही है। राहुल सांकृत्यायन, नागार्जुन, धूमिल आदि के नाम जानने के लिए हड़प्पा की वापी खोदनी पड़ती है।
मैं भी कुछ क्षण के लिए इस चक्कर में पड़ गया। मैं उन लोगों में से नहीं हूं जिनका भरोसा ज्ञान के मामले में भी कट्टर 'मैं' को अंगद की तरह एक स्थान पर जमाये रखते हैं। आस्था के मामले में एक ही बात को आंख मूंदकर पकड़े रखना भक्ति की सार्थकता हो सकती है। तर्क के हाथपांव बांधकर पत्थर के साथ कसकर समुद्र में फेंक देना सच्चा अनुगमन हो सकता है, मगर ज्ञान के रास्ते में निरंतर तार्किकता के साथ जागना ही सत्यान्वेषण है। मैं डूबकर मोती निकालने के लचीलेपन पर भरोसा करता हूँ। शोध की सबसे प्रियतम बात यह है कि कुछ नई और अतिरिक्त बातें जानने मिल जाती है। श्रम और समय का बलिदान अवश्य देना पड़ता है। यही कारण है कि आज फिर मैं मान्यताओं के वस्त्र घाट पर रखकर समुद्र में छलांग लगा गया।
हुआ यह कि सुबह ही मैंने शानी के शालवन की कथा की प्रतिलिपि बनाने की ख़ुशी ज़ाहिर की थी और आज ही दोपहर बाद मैंने एक विद्वान की वाल पर शानी का पूरा नाम गुलशेर अहमद खान पढ़ा। गुलहेर खां शानी तो मैं जानता ही था। अहमद नाम से मैं चौंका। मैंने शानी के विषय में और खंगालना शुरू किया। कहीं भी अहमद नाम नहीं मिला।
समस्त मशक्कतों के बाद कह सकता हूँ कि शानी का मूलनाम गुलशेर खां ही है। यह खां ही प्रचलित है, कोष्ठक में कहीं कहीं खान भी लिखा मिलता है। खान और खां अलग नहीं है, सामान्यत: उर्दू के जानकार जानते हैं कि खान, सामान, ज़ुबान आदि का नकारान्त उछलकर अगले शब्द के सिर पर चढ़ जाता है और अनुस्वार या अनुनासिक हो जाता है। कितनी मज़े की बात है कि उर्दू की व्याकरण भी यही बताती है कि दूसरों के सर पर या कंधे पर या पीठ पर सवार होने वाले का मान घट जाता है, आधा हो जाता है, जैसे पूर्ण स्वर हृस्व हो जाता है। ख़ैर शानी को नाम से क्या, उनका तख़ल्लुस ही काफ़ी है।
तथापि उनके नाम के विषय में जो जानकारी मिलती है, वह निम्नलिखित है-
1. गुलशेर ख़ाँ 'शानी' (अंग्रेज़ी: Shaani, जन्म: 16 मई, 1933 - मृत्यु: 10 फ़रवरी, 1995) प्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्य अकादमी की पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य' और 'साक्षात्कार' के संस्थापक-संपादक थे। 'नवभारत टाइम्स' में भी इन्होंने कुछ समय काम किया। अनेक भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, लिथुवानी, चेक और अंग्रेज़ी में इनकी रचनाएं अनूदित हुई। मध्य प्रदेश के शिखर सम्मान से अलंकृत और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं।' (-विकिपीडिया)
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2. 'मुस्लिम समाज के भूमिगत हाशिये को हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में स्थापित करने वाले हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार शानी (मूल: गुलशेर ख़ाँ) का जन्म 16 मई, 1933 को जगदलपुर, अब छत्तीसगढ़, भारत में हुआ था।' (-हिंदवी.ओ आर जी)
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3. गुलशेर ख़ाँ (ख़ान) शानी (16 मई 1933-10 फरवरी 1995) हिंदी के उच्च कोटी के लेखक, कथाकार और उपन्यासकार हैं। उनका जन्म जगदलपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ।(-हिंदी कहानी)
4. शानी: जन्म : 16 मई, 1933, जगदलपुर (मध्यप्रदेश)।
पूरा नाम : गुलशेर ख़ान शानी। समकालीन कथाकारों में विशेष रूप से समादृत। निधन : 10 फरवरी, 1995। (स्रोत प्रतिनिधि कहानियां,)
इसी संग्रह में 'शानी : एक मुस्लिम हिंदी लेखक' शीर्षक के अंतर्गत शानी का परिचय देते हुए लोठार लुत्से लिखते हैं-'शानी (गुलशेर खाँ, जन्म 16 मई, 1933) का यह शब्द-चित्र मुख्यतः लेखक द्वारा उपलब्ध कराई गई सामग्री पर आधारित है। इसे आत्म-चित्र भी कहा जा सकता है।(- प्रतिनिधि कहानियां पृष्ठ ७)
5. शानी का जन्म मध्यप्रदेश के जगदलपुर में 16 मई, 1933 को हुआ। उनका पूरा नाम गुलशेर ख़ान शानी था। वे मध्यप्रदेश साहित्य परिषद्, भोपाल के सचिव पद पर रहे। 'नवभारत टाइम्स' दिल्ली में सहायक सम्पादक रहे। बाद में 'साहित्य अकादमी', नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य' के सम्पादक रहे। निधन : 10 फरवरी, 1995। (-अल्फ़ातिहा उर्फ़ कालाजल उपन्यास, मुखपृष्ठ)
1. गुलशेर ख़ाँ 'शानी' (अंग्रेज़ी: Shaani, जन्म: 16 मई, 1933 - मृत्यु: 10 फ़रवरी, 1995) प्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्य अकादमी की पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य' और 'साक्षात्कार' के संस्थापक-संपादक थे। 'नवभारत टाइम्स' में भी इन्होंने कुछ समय काम किया। अनेक भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, लिथुवानी, चेक और अंग्रेज़ी में इनकी रचनाएं अनूदित हुई। मध्य प्रदेश के शिखर सम्मान से अलंकृत और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत हैं।' (-विकिपीडिया)
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2. 'मुस्लिम समाज के भूमिगत हाशिये को हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में स्थापित करने वाले हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार शानी (मूल: गुलशेर ख़ाँ) का जन्म 16 मई, 1933 को जगदलपुर, अब छत्तीसगढ़, भारत में हुआ था।' (-हिंदवी.ओ आर जी)
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3. गुलशेर ख़ाँ (ख़ान) शानी (16 मई 1933-10 फरवरी 1995) हिंदी के उच्च कोटी के लेखक, कथाकार और उपन्यासकार हैं। उनका जन्म जगदलपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ।(-हिंदी कहानी)
4. शानी: जन्म : 16 मई, 1933, जगदलपुर (मध्यप्रदेश)।
पूरा नाम : गुलशेर ख़ान शानी। समकालीन कथाकारों में विशेष रूप से समादृत। निधन : 10 फरवरी, 1995। (स्रोत प्रतिनिधि कहानियां,)
इसी संग्रह में 'शानी : एक मुस्लिम हिंदी लेखक' शीर्षक के अंतर्गत शानी का परिचय देते हुए लोठार लुत्से लिखते हैं-'शानी (गुलशेर खाँ, जन्म 16 मई, 1933) का यह शब्द-चित्र मुख्यतः लेखक द्वारा उपलब्ध कराई गई सामग्री पर आधारित है। इसे आत्म-चित्र भी कहा जा सकता है।(- प्रतिनिधि कहानियां पृष्ठ ७)
5. शानी का जन्म मध्यप्रदेश के जगदलपुर में 16 मई, 1933 को हुआ। उनका पूरा नाम गुलशेर ख़ान शानी था। वे मध्यप्रदेश साहित्य परिषद्, भोपाल के सचिव पद पर रहे। 'नवभारत टाइम्स' दिल्ली में सहायक सम्पादक रहे। बाद में 'साहित्य अकादमी', नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य' के सम्पादक रहे। निधन : 10 फरवरी, 1995। (-अल्फ़ातिहा उर्फ़ कालाजल उपन्यास, मुखपृष्ठ)
अब दूसरे क़िस्म के शग़ल पर आते हैं। वह है नाम के और उपनाम( तख़ल्लुस) के अर्थ के तानेबाने की खोज और मौज पर। तो यह मज़ा भी उठाते चलें। पहले लें......
गुलशेर नाम का मतलब या व्युत्पत्तियाँ :
1. गुलशेर अर्थात फूलों का महाराजा क्योंकि शेर जंगल का राजा और गुल बाग़ का राजा, गुलशेर राजाओं का राजा महाराजा हुआ।
दूसरा है तख़ल्लुस ....
2. शानी (संस्कृत, हिन्दी, अरबी : संज्ञा, स्त्रीलिंग)
१. इनारुन, इंद्रवारुणी, (तरबूज़ की तरह की वह लता जो सिंध, डेरा इस्माईलखाँ, सुलतान, बहावलपुर तथा दक्षिण और मध्य भारत में आपसे आप उपजती है।)
२. शत्रुता करने वाला, बैर करने वाला, बैरी
३. शानवाला, शानदार (-बीटा हिंदवी/रेख़्ता शब्दकोश)
४. शानी = इनारू>इँदारुन>इंद्रवारुणी, एक जंगली लता जिसमें लाल रंग के सुंदर फल लगते हैं। इनारू का फल खाने में कड़वा होता है। इसके पर्यायवाची हैं : अरुणा, इँदारुन, इंद्रवल्ली, इंद्रवारु, इंद्रवारुणी, इंद्रा, इंद्राणी, इंद्रायन, इनारू, इन्द्रवल्ली, गजचिर्मिटा, भूतकेश, माकल, माहर, मृगभक्षा, विशाला, वृषभाक्षी, वृषादनी, शक्रजा। (-स्रोत अमरकोश)
(इति नाम वार्त्ता:)

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