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'ग़ज़ल विधा' का 'सुरीला छन्द'

 'गीतिका' और 'विधाता' यानी 'ग़ज़ल विधा' का 'सुरीला छन्द' 

ग़ज़ल को अनेक नामों से पुकारकर अनेक सोशल मीडिया के जगतगुरु-गण उस छन्द नाम के जनक हो जाते है और परमपूज्य गुरुदेव बनकर पैर पुजवाने लगते हैं, गंडे बांधने लगते हैं। पिछले दशकों में ये पाखंड बहुत बढ़ा है। 


ग़ज़ल को अनेक विश्वगुरुओं ने हिंदी छंदों का नाम तो दे दिया किंतु  उर्दू छन्द की गण-पद्धति को यथावत मानते रहे। जैसे 'बहरे हज़ल मुसम्मन सालिम' को हिंदी की 'गण्डा संस्कृति' के कवियों ने 'विधाता छन्द' कहा। विधाता अर्थात ईश्वर।  किंतु इस विधाता के शरीर पर से वे अरबी-बाना नहीं उतार पाए और हिंदी-ग़ज़ल बहरे हज़ल के घुंघरू १२२२ ×४  बांधकर नाचती रही। इसके अरकान मुफ़ाईलुन को वे लगागागा ×४  गण-समूह बनाकर पालते रहे।

 

सभी जानते हैं कि हिंदी गण पद्धति में 4 के गुणांक में गण नहीं हैं, तीन के गुणांक में हैं। यथा यगण : यमाता 122, मगण : मातारा 222, तगण: ताराज 221 आदि। लेकिन इसे नज़र अंदाज़ कर, उन्होंने अरबी अरकान - मुफाईलुन अर्थात 1222 1222 1222 1222 को लगागागा ×4 लिखकर उसे बड़ी उपलब्धि मान लिया। 


यही नहीं ग़ज़ल का नया नामकरण, किसी हिंदी के जीवित और लोकप्रिय छन्द पर कर दिया। इस तरह उस हिंदी छन्द की हत्या का भी प्रयास किया। ऐसे लोगों ने अपनी वाहवाही और गुरुआई के लिए, ग़ज़ल की हत्या करके, हिन्दू पट्टी में जाकर अपनी पीठ तो ठुंकवा ली, लेकिन हिंदी छन्द की ब्रह्म-हत्या करने के पाप को किसी को नहीं बताया। यदि शेर को कोई महत्वाकांक्षी जनक अनुष्टुप कहने लगे तो शे'र तो मरा ही मरा, अनुष्टुप भी मर गया। हिंदी या संस्कृत का कोई विद्यार्थी अनुष्टुप की खोज नेट में करेगा तो  गूगल गुरुजी शे'र के दर्शन करा देंगे। 


ग़ज़ल के कुछ प्रचलित नाम ये हैं - हज़ल : हिंदी ग़ज़ल या हास्य प्रधान हिंदी ग़ज़ल। हिंदिका, तेवरी आदि। 


इन नामों से हिंदी और उर्दू को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि हिंदी में इस नाम से कोई छन्द नहीं है। इससे न ग़ज़ल की हत्या हुई न हज़ल या तेवरी की। ग़ज़ल तो सरल शब्द है, बोला जा सकता है, मगर उर्दू की सल्तनत ख़त्म करने की मनोवृति ने यह नवान्तर खड़ा किया है। इसे स्वीकार या अस्वीकार करने से कोई हानि किसी वर्ग की नहीं होती। आपके अनुगामी आपको विद्यावाचस्पति या वृहस्पति मान भी लें तो ग़ज़ल या साहित्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।


किंतु लज्जाजनक बात तो यह है कि कहीं कुछ 'एक-कक्षी (single room) विश्वविद्यालय' के 'जगतगुरु' इसे 'गीतिका' कहते हैं। लेकिन 'गीतिका' हिंदी का एक प्रसिद्ध छन्द है। यहां दोहरी हत्या हुई। ग़ज़ल की हत्या करने के चक्कर में आपने हिंदी के प्रतिष्ठित छन्द 'गीतिका' की हत्या का प्रयास ही किया। 


महाकौशल के एक 'महागुरु' ने पिता बनने के लोभ में एक उर्दू छन्द का अपहरण कर लिया और अपने पितृत्व को पुजवाना शुरू कर दिया।

यह ऐसे ही हुआ जैसे किसी वृद्ध पिता का युवा पुत्र किसी हादसे में मर गया तो उसने किसी के सुंदर पुत्र को चुरा लिया और हलफ़नामा देकर उसके पिता बन गए। 


ऐसे ही एक असफल ग़ज़लगो ने उर्दू की एक बह्र 'कामिल' के हिंदी अनुवाद 'पूर्णिका' को ग़ज़ल के स्थान पर रख दिया और पूजनीय गुरुदेव हो गए।  हिंदीवादी पट्टी में उनका अभिषेक 'पूर्णिका के जनक' के रूप में हो गया। गज़ब तो यह हुआ कि वे उर्दू ग़ज़लकारों को सलाह देने लगे कि ग़ज़ल को पूर्णता देने के लिए उसे पूर्णिका कहो। पूर्ण को उर्दू में कामिल कहते हैं इसलिये ग़ज़ल तभी कामिल या पूर्ण होगी जब उसे पूर्णिका कहोगे।

 

उर्दू हल्क़े में इस दिमाग़ी दिवालियेपन की ख़ूब भद्द हुई। उनके पास तो पहले ही ग़ज़ल का एक लोकप्रिय छन्द है बहरे कामिल। हिंदी ग़ज़लकारों जैसे डॉ. कुंवर बेचैन या लेखक डॉ.ललित कुमार  ने इसे समझाने के लिए संपूर्णिका, पूर्णिका, निपुणिका, निष्णातिका आदि नाम दिया। स्मरण रहे यह नाम बहरे कामिल यानी छन्द को दिया, सम्पूर्ण ग़ज़ल विधा को नहीं।

 

पुत्रत्व के भूखे पिता ने यह नाम पूरी ग़ज़ल को दे दिया। ग़ज़ल का ढांचा वही रखा किंतु ऊला सानी को अज़ीबोग़रीब नाम दे दिए। मत्ला और मक़्ता को कई ऐसे निरर्थक नाम दिए, जिसका अर्थ और नामकरण का कारण वे स्वयं नहीं बता सकते। 


हिंदी और उर्दू के अनपढ़ ग़ज़ल कारों ने पिता बनने की जल्दबाज़ी में मासूम विधाओं के साथ भाषायी बलात्कार किया। सोशल मीडिया के 'जंगलराज' में इस दुष्कर्म को 'अस्तित्व की आवश्यकता' मानकर गहरी चुप्पी है। आख़िर, जानकार, विशेषज्ञ और विद्वान चुप रहने के अतिरिक्त और कर ही क्या सकते हैं। 

उर्दू की बहरे हज़ल मुसम्मन सालिम जिसे कतिपय हिंदी विद्वान अर्थ और गुण की दृष्टि से सुरीला छन्द भी कहते हैं। इस छन्द में एक मुक्तक देखते हैं और उर्दू (अरबी) अरकान तथा हिंदी मापनी या गण सूत्र का विश्लेषण करते हैं। 

बहरे हज़ल मुसस्मिन सालिम 

अरकान या गणसूत्र(गणयोजना) 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

वज़न, मात्रा या मापनी

1222 1222 1222 1222

हिंदी में कहें तो 

लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा

लेकिन जैसा कि ऊपर देख चुके हैं 'हिंदी गण पद्धति में 4 के गुणांक में गण नहीं हैं, तीन के गुणांक में हैं। यथा यगण : यमाता, मगण : मातारा आदि।'

तो जैसा कि अनेक हिंदी के विद्वानों ने 'लगागागा' को गणों के तीन गुणांक में 

लगागा गालगा गागाल गागागा लगागा गा 

या 

यमाता राजभा ताराज मातारा यमाता गा 

(यगण रगण तगण मगण यगण गा) किया :

उदाहरण और विग्रह :

1. 

'मुरारी राधिका के पास बैठे और ये बोले-

प्रिये यमुना किनारे क्या तुम्हारा भी हृदय डोले?

सुनी बृषभानुजा ने जब चतुर-वाणी त्रिभंगी की,

कहा  "छलिये! वचन है कुंजिका जो भेद सब खोले।" 

2.

मुझे है गर्व दिल से मैं, खुला  व्यवहार करता हूँ।

अगर यह हीनता है तो,  इसे स्वीकार  करता हूं।

बड़ी दुनिया में छोटे लोग, खोटी बात क्योंकर हो?

उन्हीं को सर चढ़ाता हूं, जिन्हें मैं प्यार करता  हूं।

1. पहला विग्रह  4 के घटक १२२२ से
'मुरारी रा/धिका के पा/स बैठे औ/र ये बोले

2. दूसरा विग्रह 3 के घटक से
'मुरारी राधिका के पास बैठे औ/र ये बो/ले



           @ डॉ.रा.रामार्य वेणु, १९.०४.२४,


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