Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2025

म. प्र. विज्ञान सभा

 म. प्र. विज्ञान सभा और विज्ञान का वर्तमान मण्डला, 25 दिसम्बर 2025।  म. प्र. विज्ञान सभा की मण्डला इकाई का दिवसीय विचार गोष्ठी आयोजित की गई। नमर्दा तट पर गोंडी ट्रस्ट द्वारा संचालित भवन में प्रसिद्ध लेखक स्व. रामभरोस अग्रवाल सभागार में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि साक्षरता अभियान के तात्कालीन जिला सचिव एवं  सेवानिवृत प्राचार्य डॉ. रामकुमार रामार्य मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमती शील अमृत रामार्य की उपस्थिति ने आयोजन को गरिमा प्रदान की। भोपाल विज्ञान सभा के सचिव सुभाष शर्मा मुख्य वक्ता के रूप में सम्मिलित हुए। मण्डला के विज्ञान सभा सचिव राजाराम मरावी के संयोजन में प्रसिद्ध गीतकार श्याम बैरागी ने कार्यक्रम का संचालन किया।
  नवगीत :  हवा .... चल रही है! इधर चल रही है, उधर चल रही है। हवा को तो पढ़िए किधर चल रही है। इसे चुभ रही है, उसे डस रही है। कहीं फाड़ मुंह बे-हया हंस रही है। कहीं है धमाका, कहीं झुनझुना है। करेला इसे है, उसे अमपना है।                    बढ़ाती कहीं स्वाद, लेकिन कहीं पर-                      निवालों में भरकर ज़हर चल रही है। सवालों के कितने पड़ावों से बचकर। बहुत झूठ बोली, कहीं पर उतरकर। बहानों से  देकर  कभी सच को फांसी।                 ठहाके लगाती है, पर है रुहांसी।                     चली  मालगाड़ी  सजाकर  बजारन,                    हवा उसकी बन हमसफ़र चल रही है।  ये तोते गगन में जो छाए हुए हैं। ये जनता के हाथों उड़ाए गए हैं। ये टेंटें, ये तोतारटन्ती, ये भाषण। ये दिल्ली के सबसे बड़े हैं प्रदूषण।   ...

युवा नींद, क्वांरे सपनों को

 एक नवगीत युवा नींद, क्वांरे सपनों को, बटमारों ने चुन-चुन मारा। अब केवल रतजगा हमारा। मेरे सुख-दुख नहीं बांटना, मेरी उन्नति नहीं चाहना, कष्ट पड़े तो दूर भागना, दुर्भिक्षों में नहीं झांकना।               कूटनीति होगी उनकी यह,               हर आयोजन है हत्यारा। चुन-चुनकर, कर रहे बेदख़ल, लगा रहे अपना सारा बल, रच षड्यंत्र, प्रपंच और छल, पग-पग मचा हुआ है दंगल।          इधर अमावस पसर रही है,          चमक रहा है उधर सितारा।   तोड़ रहे हैं, फोड़ रहे हैं, वे धारा को मोड़ रहे हैं,  तट भी गरिमा छोड़ रहे हैं, भंवरों से गंठ जोड़ रहे हैं।        विप्लव, प्रलय, बवंडर, आंधी,        हुआ इकट्ठा कुनबा सारा।                                  @ रा. रामकुमार,                       १३.११-०९.१२.२०२५, अपरा...

चाय

 चाय  धूप को चाय में घोलकर पी रहे। हम हवा को भी दिल खोलकर पी रहे। गांव से शह्र तक राह है पुरख़तर, 'आंख में ख़ून है' बोलकर पी रहे। कितनी शक्कर घुलेगी तो मर जायेंगे? जानकर बूझकर तोलकर पी रहे। ज़िंदगी में बनाएगा यह संतुलन, हम करेले का रस रोलकर पी रहे। जबसे पत्थर तलक रत्न होने लगे, तब से हर ज़ख्म का मोलकर पी रहे। - रा. रामकुमार, ०७.१२.२५, रविवार।