क्यों भैया! क्या राजनांदगांव स्टेशन आ गया? इस्मिती आदबन ने घर को हमारे कितने साल दिए होंगे? याद करता हूं तो हार जाता हूं अपने जन्म तक भी नहीं पहुंच पाता अपने ही जन्म का किसको पता कब शुरू हुआ? कोई बताएगा क्या? मुझे ही इस्मिती आदबन ने कभी कभी बताया था- "इन्हीं हाथों में आंख खोली थी तुमने छोटे भैया! मैया तो बेहोश थी तुम्हें जनमते ही... सब तो उन्हें संभालने में लग गए तुम्हें कौन संभालता? मैं ही न? और अब तुम आकाश छूने लगे!! तुम्हारा मुंह देखना हो तो गर्दन दुखती है, पर सच्ची छोटे भैया! छाती जुड़ा जाती है... खूब बढ़ो!" मां ने बताया था कि जन्म से ही उसने मुझे बुलाया था - 'छोटे भैया!' राजनांदगांव के रानी सागर के नीचे जो बस्ती है बसंतपुर जानेवाली गाड़ादान को छूती यादवों की उसी बस्ती में रहती थी वह इस्मिती मौसी.. दूध, दही सब वही लाती थी हमारे घर और ढक्कन खोलते ही घर भर में खुशबू भर दे ऐसा कड़काया गया घी.. एक बस्सी में मिश्री मिलाकर तो मैं ही सबसे पहले भोग लगाता था जब जब घी आता था 'उसकी जुबान में मक्खन था और बातों मे...