गुरुपूर्णिमा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! संस्कृत ग्रंथों में एक श्लोक प्रसिद्ध है- अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥ *शब्दार्थ*: अज्ञान के अंधे-अंधेरे से बंद आंखों (चक्षुओं) को ज्ञान अंजन युक्त शलाका से जो खोलता है, उस गुरु को नमन! भावार्थ : एक परम्परा सिखाती है, शिक्षित और दीक्षित करती है कि आंख मूंदक तथाकथित गुरुओं पर भरोसा कर लो और वही करो जो वह कहता है, वही देखो जो वह दिखाता है। इसका लाभ स्वार्थी और पाखंडी गुरुओं को बहुत होता है। किंतु एक परम्परा वह भी है जहां व्यक्ति को तार्किक बनाया जाता है, वैज्ञानिक दृष्टि जिसे दी जाती है और जिसे आंख मूंदकर भरोसा करने की न शिक्षा दी जाती, न दीक्षा। इस परंपरा के गुरु आंख खुली रखकर दुनिया का अध्ययन, सत्य का परीक्षण करने के लिए निरन्तर सचेत करते हैं। वास्तव में ऐसे ही आंख खोलकर जीने का ज्ञान और विवेक का अभ्यास कराने वाले मार्गदर्शक अथवा गुरु को ही नमन है। तस्मै श्री गुरुवै नमः का यही अर्थ है- *उ...