देश भक्ति गीत ० सत्ता को वरदान मिला है, नंगा नाचो, ऐश करो। मारो, काटो, लूट मचाओ, दो कौड़ी का देश करो।। आशा और आस्थाओं का, मैं भी भूखा-प्यासा हूं। सक्रिय सकारात्मकता की, व्याकुल तीव्र पिपासा हूं। पूरे सृजनाकुल सपने हों, वाचित वह सन्देश करो।। राष्ट्र-संपदा, लोक-वित्त को, नहीं सुरक्षा दे सकते। गिद्ध-चील के मुंह से जनधन, वापस छीन न ले सकते। तब तो व्यर्थ राष्ट्र-पालक का, मत पहना गणवेश करो। भव्य, भयानक भूत-भवन हैं, मंदिर मूक मूर्तियों के। समता, ममता रहित लेख ये, पौरुष-हीन कीर्तियों के। वंचित, शोषित, दमित, दलित के, उनमें प्राण-प्रवेश करो। सारा भारत बेच रहे हो, धान, धरा, धन, धरोहरें। खान, विमानन, कोष, सुरक्षा, सड़कें, सब संस्रोत भरे। मां की कोख लजानेवालों, लज्जा तो लवलेश करो। कथनी-करनी एक रखो फिर, जनहित में अनुदेश करो। अपने दोष सुधारो पहले, फिर जन को उपदेश करो। तब यह देश सहर्ष कहेगा-"माननीय आदेश करो।।" ० @कुमार, २४.०८.२२ , ०८.३०-१.५४ , बुधवार,