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Showing posts from November, 2021

दो अपेक्षित कविताएं

 दो अपेक्षित कविताएं कविता : 1 -------- उठो देवता! उठो देवता! विषधर सहसफनों के नीचे रहकर सुखी न समझो, छोड़ो यह विश्राम कोलाहल है बहुत समुद्री इन लहरों में लहरें, यही इकाई हैं सागर के विस्तृत फैलावों की देख रही हैं रोज़ अंदर अंदर क्या चलता है मधुआरे का जाल बड़ा होता जाता है बड़ी मछलियां जैसे उसकी हैं बिचौलिया जो मछली जालों से बचकर दूर निकलती बड़ी मछलियां जो दलाल हैं मछुआरे की उस पर हमला कर देती हैं उठो देवता! सागर का कोलाहल भुगतो अपना भी अब पक्ष बताओ बोलो किसके साथ खड़े हो दुष्टों के, मध्यस्थों के या कुटनीतियाँ झेल रहे साधारण जन के? उठो देवता! कहा था तुमने सज्जन जब जब पीर सहेगा उल्टे सीधे मनमाने नियमों के आगे सर न झुकेगा समझदार भुक्तभोगी का उसका आकर त्रास हरोगे उठो देवता! कहा था तुमने खलजन का तुम शमन करोगे नीतिवान को मुक्त करोगे सारे दुख से वचन निभाओ फिर पवित्र तुलसी को ब्याहो उठो देवता! कोलाहल को शांति बनाओ! (१५.११.२०२१, ११.११ प्रातः) ००० 0 कविता : 2 कुछ कर दिखाओ ! * साहस का जुआ खेलो, जान की बाज़ी लगाओ, देखो मत किनारे पर खड़े रहकर तेज़ धार में ...

मैनपाट में बहता है उल्टा पानी

मैनपाट में बहता है उल्टा पानी : दृष्टिभ्रम या चमत्कार । जानिए पर्यटन स्थल की सच्चाई। 0 चमत्कार, जादू या करामात को वैज्ञानिक सोच के समझदार लोग आंख का धोखा या दृष्टिभ्रम, हाथ की सफाई, आदि कहा करते हैं। कई ऐसे प्राकृतिक स्थल हैं जो अनेक विचित्रताओं से भरे हुए हैं। कहीं गर्म पानी और ठंडे पानी के अगल बगल बने कुंड, कहीं पहाड़ी में बने कुएं के अंदर से आती हवाएं, कहीं कोई अद्भुत दलदल जो बरसात के बाद सुख जाता है लेकिन दीपावली के आसपास उसमें पानी निकलता है और ज़मीन दलदल की तरह धंसने और हिलने लगती है। इनके पीछे बहु गर्भीय कारण हो सकते हैं जिस पर भू-गर्भ शास्त्रियों के अतिरिक्त कौन सरदर्द मोल ले? ऐसा ही एक स्थान है छत्तीसगढ़ का पर्यटन स्थल कहलानेवाला मैनपाट। यह स्थल खूबसूरत वादियों के साथ आश्चर्य से भर देनेवाले 'उल्टा बहने वाले पानी' के लिए विख्यात है। यह ऐसा स्थान है जहाँ पानी का बहाव ऊँचाई की ओर है। इसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में 'मैनपाट' विसरपानी गाँव में स्थित है। यह स्थान पिछले कुछ वर्षों से लोगों के बीच 'उल्टा पानी' काफी ज्यादा चर्चित ...

छंद असंबाधा

 3. असम्बाधा : असम्बाधा को प्रो. मौला बक्श ने  छंदोमंजरी में 41 वें छंद क्रम में लिया है। 14 वर्ण या अक्षरों या गण मर्यादा में 22 मात्राओं के इस छंद को वे निम्नानुसार व्यक्त करते हैं - अक्षर 14, गण म त न स गा गा, मात्रा स्वरूप 222, 221,111,112, 22, कुल मात्रा 22, छंद के उदाहरण संस्कृत, हिंदी, मराठी, गुजराती में प्रस्तुत करने के पूर्व  प्रो. बख्श उदाहरण माला के ऊपर ही असंबाधा छंद के गायन के लिए राग, जाति, ताल और गति का विवरण इस रूप में दे देते हैं... राग: आरभी, ताल : चतुश्र, जाति: भानुमति, मात्रा 11 विलंबकाल. ० उदाहरणमाला 1. संस्कृत : वीर्य्याग्नौ येन ज्वलति रण वशात क्षिप्ते। दैत्येन्द्रेजाता धरणि रियमसम्बाधा।। धर्मस्थित्यर्थं प्रकटित तनु संबंध:। साधूनां बाधां प्रशनमयतु स कंसारी:।। { यही  संस्कृत उदाहरण छंदोर्णव पिङ्गल (1929) के रचयिता भिखारीदास पद १८०, पृ. ४६ में यथावत प्रकाशित करते हैं।) 2. हिंदी : रात्यो द्यो वा नाम जपत अति वै तापे। तू ताही को नाम कहति मत ले मौ पे।। पापी पीड़ावंत जग तज सुनू राधा। ज्या के ध्याये हॉट अकलुष असंबाधा।। 3. मराठी मोठे दाते ते तनुधनसह गेले ...