आस्था की हसीस और स्वर्ग के दिवास्वप्न धुंआ धुआं दिमाग के कैनवास पर धारणाओं के चलचित्र स्वर्ग रच रहे हैं कभी बूढ़ी न होनेवाली कामनाओं की अप्सराओं के साथ दिखाई दे रहे हैं ईर्ष्याओं के चिरयुवा इंद्र जीते जी स्वर्ग जाने का यही है आसान रास्ता आओ चलो रामायण और महाभारत देखें अवतरित होते हैं आस्था के अर्थहीन घटाटोप में बुढ़ापे की खीर से वंश की अप्रतिम अद्भुत अवर्णनीय गल्प गढ़ते अविजित अपराजेय आत्ममुग्धता के अविश्वसनीय चरित्र देते रहे हैं हमेशा समस्याओं के कुन्हासे में कल्पना के शुतुरमुर्गी समाधान कुछ क्षणों के लिए या किस्तों में जीवन भर गांजा जैसे दिव्य कशों में डूबे जनमानस को अलाल बनाती यह कुटिल-नीति शाश्वत है, सनातन है, कर्मप्रधानता का काढ़ा पीकर आओ, इस अजगर को प्रणाम करें! ® कुमार, २९.०४.२०२०