कामचोरी ने इस देश को ही नहीं, पूरी दुनिया को ऊंचे-ऊंचे विचार दिये हैं। कामचोरी से विचार प्रक्रिया तीव्र होती है। जितने भी नव्याचार प्रशासन द्वारा मातहतों पर थोपे जाते हैं वे सब कामचोरी की ही गाजरघास हैं, जो बड़ी तेजी से कागजी कार्यवाही के रूप में फैलती हैं और पूरे शासन तंत्र को कामचोरी के नये-नये गुर सिखाती हुई फूलने फलने लगती है। यह उत्तम विचार भी मुझे कामचोरी के कारण आया। आज मैं गर्व से अपने पूर्वज-द्वय के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर सकता हूं। कामचोरी को सबसे पहले परखनेवाले मेरे ये पुरोधा हैं मध्यकालीन श्री मलूकदास जी, जिन्होंने ‘अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गये सबके दाता राम’ का पांचजन्य फूंककर आलसियों का मनोबल बढ़ाया। दूसरे मेरे पुरखे है श्री हरिशंकर परसाई जिन्होंने ‘निठल्ले की डायरी’ लिखकर इस परम्परा को आगे बढ़ाया। मैं यह बताकर बेकार का काम नहीं करना चाहता कि तीसरा मैं हूं। मैं दावा कर सकता हूं कि खाली रहो तो सर्वश्रेष्ठ विचार आते हैं। इसमें कोई मतभेद हो ही नहीं सकता। ‘खाली दिमाग में खुराफात और खाली घर में शैतान रहता है’ कहनेवाले लोग ‘केवल विरोध के लिये व...