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Showing posts from January, 2013

औरत की जात, ( भाग 1)

           दुष्यंतकुमार ने अपनी एक स्वाभिमानी ग़ज़ल में प्रकृति के ‘कार्य कारण संबंधों’ पर हमारे व्यावहारिक कयासों का चित्रण करते हुए लिखा है-                   कल रात जो फ़ाके में मरा, उसके बारे में,                   सभी कहतें हैं कि ‘ऐसा नही ऐसा’ हुआ होगा।                         ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दोहरा  हुआ  होगा,                         मैं सजदे में नहीं था आपको धोका हुआ होगा।           इन दिनों हम बलात्कार के, अपनी अपनी समझ के अनुसार, कारणों के अनुमानों की बौद्धिक चर्चा में व्यस्त हैं और ऐसा समझा जा सकता है कि एक ज़रूरी सामाजिक सरोकार में अपनी हिस्सेदारी कर रहे हैं। ये सवाल हम उन लोगों से कर रहे हैं जो ऐसे प्रकरणों में न तो कभी उलझे और ना ही कभी ऐसे मामलों के चस्मदीद गवाह ही रहे। यह भी विश्वास क...