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Showing posts from 2012

विवेकानंद के जीवन दर्शन का साहित्य पर प्रभाव

  विवेकानंद के जीवन दर्शन का साहित्य पर प्रभाव विवेकानंद भारतीय राष्ट्रीय संदर्भों में युवकों के प्रेरणा-स्रोत के रूप में प्रासंगिक रहे हैं। विवेकानंद का नाम भारत के गौरवपूर्ण धार्मिक-अध्यात्म को विश्वस्तर पर प्रशस्त करने के अर्थ में स्थापित हो चुका है। हालांकि इस तथ्य की चर्चा बहुत कम हुई है कि यह नामकरण ‘विवेकानंद’ उनके 1893 में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद में भाग लेने के लिए ही किया गया। विद्वान भोैतिकवादी पिता और अत्यंत धर्म-परायण मां की संतान वीरेश्वर या नरेद्र दत्त ने भारत को नये वैज्ञानिक अर्थ और ऊंचाइयां दी। वे वेदांत के पुरोधा के रूप में वैदिक संस्कृति के नये और प्रगतिशील मानदंडों के उद्गाता बने। इसीलिए अमेरिका की भूमि में बिल्कुल नवीन और ऊर्जवसित कण्ठ से उन्होंने विश्वबंधुत्व का नारा दिया, तथापि हिन्दुत्व की भावभूमि पर बने रहकर। उन्होंने अपने प्रथम परिचयात्मक उद्बोधन में कहा-‘‘मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति दोनों की ही शिक्षा दी है। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश...

श्मशान गीता-2

पूर्वकथा - तरह तरह की मनःस्थितियों के चलते चलते अंततः शववाहन में शव को डालकर शवयात्रा शुरू हुई।               होता क्या है कि जीते जी हमें एक से अधिक शवयात्रा में शामिल होना पड़ता है। शवयात्रा में सभी को शामिल होना चाहिए। जान पहचान का हो ना हो, समय है तो किसी परिचित की शवयात्रा में शामिल हो जाना चाहिए। इससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है।              अच्छा आप कुछ कहना चाहते हैं?              मानता हूं आपकी बात। इतना फालतू वक्त किसके पास है? अपनों की, अपने पहचान वालों की शवयात्रा में शामिल जोने का वक्त ही नहीं है तो फिर पराए, अनजाने लोगों की शवयात्रा में शामिल कौन बेवकूफ होगा। यह सुझाव मूर्खतापूर्ण है।               लेकिन देखिए फिर भी कभी शामिल होकर.....सीखना तो जीवन भर चलता है सर! चलिए मैं आपको एक अपरिचित की  श वयात्रा में लिए चलता हूं। आपके कीमती समय का ख्याल रखकर बहुत ही संक्षिप्त शवयात्रा में लिवाने आया हूं। मेरे साथ तो चल सकते हैं न....

श्मशान गीता-1

लीगल सूचना:   मृत्यु कोई भयानक हौलनाक चीज नहीं है। कम से कम दूसरों की तो बिल्कुल नहीं। मृत्यु भी एक परिवर्तन है, जिससे हम नहीं डरते। परिवर्तन तो जिन्दगी में एक नया चार्म है। गीता भी यही कहती है। एक जगह रहते हुए ऊब गए हो तो उठो, कपड़े बदलो, कहीं घूम आएं।  किसी की मृत्यु होती है तो कुछ लोग दाह संस्कार कब्र अब्र की तैयारी करते हैं, कुछ लोग खाली होते हैं तो हंसी मजाक (धीरे धीरे ही सही) करते हैं, समय काटते हैं। आइए, एक शवयात्रा में आपको भी ले चलें।  भाई एक शर्त है मगर -सीरियस मत होना। मृत्यु का, यानी कपड़े बदलकर घूमने का चार्म खत्म हो जाएगा। प्लीज.... 1. को जाने कंह मारिसी युक्तेश भाई राठौर नहीं रहे। युक्तेश भाई राठौर कौन थे, यह मैं भी नहीं जानता। मैं जानता तो वे रहते, ऐसा भी नहीं है। जिनको रहना होता है, वे लाख अपरिचित होने पर भी रहते हैं। जिनको नहीं ही रहना है, उनके लाखों परिचित हो तो भी वे नहीं रह पाते। रहने और नहीं रहने का कोई बीज-गणित नहीं होता। होता तो खैर उसका कोई अंक गणित भी नहीं है। सौ साल रहें या बीच में ही चल दें, यह किसी के संज्ञान में नहीं...

दर्द के गुण-सूत्र

आपके इधर तो खैर आता ही होगा, हमारे भी आता है एक फेरीवाला..  प्लास्टिक  के घरेलू आइटम लेकर. वादा करता हे कि अगली बार वह भी लेकर आउंगा जो इस बार नहीं लाया..तो फिर जरूर आता है.. लीजिए मैंने भी कहा था कि अगली बार यह लेकर आउंगा तो आया... दर्द की चर्चा चल निकली। चार लोग बैठते हैं तो कुछ न कुछ चल निकलता है। चलते पुरजों से काम की बातें आप चाहे न निकाल पाएं, यह निष्कर्ष जरूर निकाल लेते हैं कि किसी के पेट में क्या है। मुझे लगता है कि यह कहावत ‘‘किसी के पेट में क्या है, कोई नहीं जानता’’, जरूर किसी दाई ने बनाई होगी। जचकी से संबंध बैठता है इसका। किसी दाई (मेटरनिटी मेड एक्सपर्ट) ने लक्षण देखकर बताया होगा कि लड़का होगा। हो गई होगी लड़की। भद्द हुई होगी तो झल्लाकर उसने कहा होगा-‘‘ अब किसी के पेट में क्या है, कोई थोड़े जानता है।’ लड़का होता तो वही शेखी बघारती और ईनाम लेती। कैसी अजीब बात है, जिस लड़की को लेकर दुनिया में इतनी मारकाट मची है, उसे ही लोग पैदा होने से रोकते है, भ्रूण में मार डालते हैं। खैर, चलते पुरजे अपना काम जिस खूबसूरती...

विवाह की वर्षगांठ: गांठ-विज्ञान के विशेष संदर्भ में।

आज मेरे विवाह की वर्ष-गांठ है। जयंती और दिवस जो होते हैं, वो मरणोपरांत मनाए जाते हैं। हमारे देश में प्रसिद्ध दिवस और जयंतियां हैं- बाल दिवस, शिक्षक दिवस, सदभावना दिवस, रजत जयंती, हीरक जयंती, प्रेमचंद जयंती, निराला जयंती। दिवस ‘मृत्यु का दिन’ और जयंती ‘जन्म लेने का दिन’ है। जैसे एक होती है प्रेमचंद-जयंती और दूसरा होता है प्रेमचंद दिवस। गांधी जी ने जन्म लिया तो गांधी जयंती दो अक्टोबर। जिस दिन उन्हें गोली मारकर मार डाला गया, वह मृत्यु का दिन हुआ। उस 31 जनवरी को, उनकी मृत्यु की याद में, हम ‘शहीद-दिवस’ कहते हैं। इस प्रकार दो दिन प्रसिद्ध हैं एक जयंती और दूसरा दिवस। जी! कुछ कहा आपने? आप पूछ रहे हैं कि बाल-दिवस और शिक्षक-दिवस किसकी मृत्यु के दिन है? पता नहीं। शायद बालमृत्यु की याद में बाल दिवस मनाया जाता है और भारत में किसी शिक्षक नामक मरे हुए व्यक्ति की याद में शिक्षक दिवस मनाया जाता होगा। मैं कुछ दावे से नहीं कह सकता। जी! क्या कहा आपने? अरे तो प्यार से बताएं न, इस तरह गाली गलौज क्यों करते है। जी! मैं समझ गया, बालदिवस हमारे प्रथम प्रधानमंत्री का जन्म दिन है और शिक्षक दिवस...

कुछ गर्मी खाए दोहे

मित्रों!  कुछ गर्मी से बचाए हुए फूल प्रस्तुत हैं, उम्मीद है आप तक आते आते इनकी खुष्बू बरकरार रहेगी.... लिखकर बताइये कि आप के उधर गर्मी के क्या हाल हैं। इधर तो ये हैं.......... नदियां छूकर जल मरीं, तले अतल सब ताल । वह भागे चारों तरफ़, पहन कांच की खाल ।। लपट झपटकर लूटता, उड़ता ले आकाश । खींच दुपट्टे फाड़ता, धूल झौंक बदमाश ।। होंठ फटे, सूखे नयन, संदेहों में नेह । हरे दुपट्टे से ढंकी, बिखरी धूसर देह ।। वृक्षों से टकरा गिरी, भरी जवानी धूप । उनकी बांहों में पड़ा, सांवल शीतल रूप ।। गर्मी के उपकार को, भूल सकेगा कौन । फिर प्यासों के होंठ तक, गागर आई मौन ।। बढ़ता जाता ताप है, घटती जाती भाप। धरा निर्जला कर रही, मृत्युंजय का जाप।। जलती धरती, जल रहे जलाशयों के घाट। पनघट मरघट हो गए, बस्ती सन्न सनाट।।  (सन्न सनाट- मूच्छित) आंखें पथराई हुई, पपड़ाए हैं होंट। भट्टी सी निकली हवा, दम जाएगी घोंट।। नागिन सी लू लपकती, हवा हुई है व्याल। हर पल अब लगने लगा, आग उगलता काल।।