पड़े रह जाना तीन लेखकों का फुटपाथ पर और मेरा आगे निकल जाना तीन लेखक फुटपाथ पर पड़े हैं। सोचता हूं कि उन्हें उठा लूं। मगर मेरी खुद की हालत खस्ता है। लोग देख रहें है कि मैं भी फुटपाथ पर खड़ा हुआ हूं। फुटपाथ के साथ मैं इस कदर तदाकार हो चुका हूं कि उससे मेरा तादात्म्य स्थापित हो चुका है। संतों ने इसे ही पहुंची हुई स्थिति कहा है। मगर मैं संतों को कहां ढूंढूं कि वे मेरी इस स्थिति को देख सकें। फलस्वरूप मैं मनमारे फुटपाथ पर खड़ा बेचैनी से उसका इंतजार कर रहा हूं। मेरे हाव भाव से ही लग रहा है कि मैं जिसका इंतजार कर रहा हूं उसके लिए किसी भी स्थिति से गुजर सकता हूं। उसे देखकर मैं बावरा सा दौड़ सकता हूं ,बिना यह सोचे कि पागलों की तरह दौड़नवाली गाड़ियों के नीचे आ भी सकता हूं। यही आदर्श लगाव और प्रतीक्षा है। मैं जब अपनी बेसब्री नहीं संभाल पाता तो पास खड़े एक अजनबी से पूछता हूं:‘‘ वह कब आएगी।‘‘ अजनबी उपेक्षा से कहता है:‘‘ वह आधा घंटा बाद आएगी। मैं भी उसका इंतजार कर रहा हूं।‘‘ मैं समझ जाता हूं कि एक तो यही प्रतियोगिता में है जिसे पछाड़कर मुझे उस तक पहुंचना है। मैं तनाव में आ जाता हूं। ध्यान बंटाने के लि...