उर्फ रसिक पुष्पवृक्ष और रस-केन्द्र सुन्दरियां हमारे आंगन में फूले गुलाब और इठलाते डहलियों की कई प्रजातियां दूर से लोगों को आकर्षित करती रही हैं। पीले डहलिया भ्रमणार्थी रमणियों को विचलित कर देती और वे गुलाब के भ्रम में उन्हें देखने आ जाया करती। हमारे पड़ोस में एक नमकमिर्ची-पूर्णा थी। वह जुबान की काली थी। अगर वह आपके स्वास्थ्य की तारीफ कर दे तो आप बीमार पड़ जाएं। हमारे आंगन और बाड़ी में पत्नी अभिरुचि और प्रेम के कारण लहराते हुए गुलाब ,डहलिया ,सेवंती, गेंदे ,अनार ,अंगूर , चीकू , पालक , मैथी , बड़ी तुअर आदि की वह ‘मुंह में कुछ और दिल में कुछ’ के अंदाज में तारीफ करके उन्हें नज़र लगा चुकी है। उसकी तारीफ़ों से पत्नी को आजकल भय होने लगा है। हमेशा खिली रहनेवाली फुलवारी आजकल उदास हो गई है। एक दिन पड़ोसन आई और झूठी सहानुभूति जताते हुए बोली:‘‘ अरे तुम्हारे आंगन को क्या हो गया भाभी ?’’ तो भरी बैठी पत्नी ने दुखी स्वर में कहा-‘‘ पता नहीं किस डायन की नजर लग कई पुन्नो ! कुछ दिनों से पनप ही नहीं रही हैं।’’ पड़ोसन समझ गई कि पोल खुल चुकी है। अब पड़ोसन नहीं आती और पत्नी नये सिरे से बगिया की संभाल में लग गई है। ...