उद्योग-नगरी के साहित्य क्लब में तब अध्यक्ष कोई बड़ा अधिकारी होता था और सचिव भी एक छोटा अफसर होता था। ये अफसर प्रायः प्रबंधक-वर्गीय होते थे। डाॅक्टर और इंजीनियर कार्यकारिणी में रखे जाते थे। टीचर्स ,इस्टेट और सैफ्टी इंस्पेक्टर वगैरह सदस्य हुआ करते थे। अध्यक्ष और सचिव पद पर बैठे पदाधिकारी अपनी शक्ति लगााकर महाप्रबंक जैसी मूल्यवान हस्तियों को तलुवों से पकड़कर ले आते थे और तालियां बजाकर अपने हाथ साफ कर लेते थे। उन दिनों मैं प्रबंधन में नया था और अफसर नहीं था। मेरे जैसांे की रचनाएं सराही तो जाती थीं मगर ’अधिकारी-सम्मान’ नहीं दिया जाता था। एक दिन मैं प्रशासनिक सेवा के लिए चुन लिया गया। अचानक जैसे सब कुछ बदल गया। मैं अब उपेक्षणीय से सम्माननीय हो गया। मेरी रचनाओं में वज़न आ गया। जबकि राजधानी की प्रशासनिक अकादमी के लिए मुझे उद्योग-नगरी से विदा होना था , तब मेरे सम्मान में साहित्य क्लब में विशेष आयोजन किया गया। अध्यक्ष , सचिव और कार्यकारिधी के पदाधिकारीगण फूलमालाओं की तरह बात बात में गले लगने लगे।विदाई में जो रचनाएं मुझे पढ़नी थीं , उसे रिकार्ड करने का इंतज़ाम स्वयं अध्यक्षरूपी अधिकारी ने की थी। य...