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स्मृति के शिलालेख

  'राग दरबारी'  : विद्रूपताओं और विडंबनाओं की जुगलबंदी         130 से अधिक पुस्तकों के लेखक, उपन्यासकार व व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल को लोग 'राग दरबारी' के लेखक के रूप में जानते हैं। उनको पढ़नेवालों ने लिखा है -"श्रीलाल शुक्ल का व्यक्तित्व द्वंदात्मक था। वे सहज लेकिन सतर्क, विनोदी लेकिन विद्वान, अनुशासनप्रिय लेकिन अराजकता का बहुविध मिश्रण थे। इसी क्रम में श्रीलाल शुक्ल प्रशासनिक अधिकारी की शुष्कता और रूक्षता के बावजूद शास्त्रीय  संगीत और सुगम संगीत दोनों पक्षों के रसिक-मर्मज्ञ थे। यही नहीं, श्रीलाल शुक्ल जी ने गरीबी झेली, संघर्ष किया, मगर उसके विलाप से लेखन को नहीं भरा। इसका कारण यह रहा कि समाज संरचना की दृष्टि से चारों ओर से उन्हें  जन्म से ही ऐसे मजबूत कवच का आवरण मिला जिसमें निर्धनता के बावजूद सम्मान, संघर्ष के बावजूद सहयोग और प्रोत्साहन तथा त्रुटियों के बावजूद सहानुभूति ने घेरे रखा। उन्हें बाधा हुई तो स्वास्थ्यगत कारणों से, क्योंकि 'देह धरे को दंड' तो राजा भी भोगता है, रंक भी। कुलीन भी भोगता है और वंचित भी। इसीलिए शैक्षणिक एवं स्वास्थ्यगत बाधाओं...
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स्मृतियों के नीलकंठ

स्मृति के नीलकंठ             एक पक्षी होता है नीलकंठ। गहरे नीले रंग के कारण उसे नीलकंठ कह दिया गया होगा। कंठ उसका नीला नहीं होता, पंख ही नीले होते हैं। लेकिन इस पक्षी को लेकर जन-मान्यता यह है कि इस पक्षी को देखना शुभ होता है। दशहरा में इसे अवश्य देखना चाहिये। कहते हैं जिस अवस्था में इसे देख लो वैसी अवस्था वर्ष भर बनी रहती है। यात्रा में देखो लो तो वर्ष भर यात्रा होगी। आनन्द के अवसर मेंवदेख लो तो वर्ष भर आनन्द उठाओ। व्यापार करते हुए देख लो तो वर्ष भर पैसा ही पैसा। काले कौवे को लेकर भी बहुत सी धारणाएं हैं। आश्चर्य यह है कि अंधविश्वासों से भरे भारत में इसे लोग पाल क्यों नहीं लेते। केवल हरे रंग के रट्टू तोते कब तक पालेंगे लोग? रंग और वाणी के अतिरिक्त उसके पास है ही क्या? दूसरी ओर  निरन्तर सुख समृद्धि का प्रतीक, यह सुलभ-साधन कब तक डाल-डाल उड़ता फिरेगा? कब तक सुख समृद्धि से वंचित लोग इसे ढूंढते फिरेंगे? मैं बहुत सोचता हूं न? सभी कहते हैं और छिटकते हैं। मैं भी जनता हूं कि मेरे अतिरिक्त मुझसे सभी लोग परेशान हैं।           कभी-...

स्मृतियों के नीलकंठ

स्मृतिलेख (फंतासी) स्मृतियों के नीलकंठ एक पक्षी होता है नीलकंठ। गहरे नीले रंग के कारण उसे नीलकंठ कह दिया गया होगा। कंठ उसका नीला नहीं होता, पंख ही नीले होते हैं। लेकिन इस पक्षी को लेकर जन-मान्यता यह है कि इस पक्षी को देखना शुभ होता है। दशहरा में इसे अवश्य देखना चाहिये। कहते हैं जिस अवस्था में इसे देख लो वैसी अवस्था वर्ष भर बनी रहती है। यात्रा में देखो लो तो वर्ष भर यात्रा होगी। आनन्द के अवसर मेंवदेख लो तो वर्ष भर आनन्द उठाओ। व्यापार करते हुए देख लो तो वर्ष भर पैसा ही पैसा। काले कौवे को लेकर भी बहुत सी धारणाएं हैं। आश्चर्य यह है कि अंधविश्वासों से भरे भारत में इसे लोग पाल क्यों नहीं लेते। केवल हरे रंग के रट्टू तोते कब तक पालेंगे लोग? रंग और वाणी के अतिरिक्त उसके पास है ही क्या? दूसरी ओर  निरन्तर सुख समृद्धि का प्रतीक, यह सुलभ-साधन कब तक डाल-डाल उड़ता फिरेगा? कब तक सुख समृद्धि से वंचित लोग इसे ढूंढते फिरेंगे? मैं बहुत सोचता हूं न? सभी कहते हैं और छिटकते हैं। मैं भी जनता हूं कि मेरे अतिरिक्त मुझसे सभी लोग परेशान हैं।  कभी-कभी मेरे मन में आता है कि मुझसे नीलकंठ देखने का अपराध अनजान...

सहज स्फूर्त कुलगीत

छिंदवाड़ा मेरे बचपन की क्रीड़ा-भूमि है, युवावस्था की स्वप्न नगरी है। रेलवे मिश्रित विद्यालय और डेनिएलशन उपाधि महाविद्यालय आज भी मेरे दिल और दिमाग में धड़कते हैं। माननीय मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश कमलनाथ जी ने छिंदवाड़ा को विश्वविद्यालय की सौगात देकर एक तरह से मेरे सपनों को पंख दिए हैं।  इस उत्साहित ऊर्जा से अनायास यह गीत प्रवाहित हो गया जिसे मैं कन्हान, कुलबेहरा और वैनगंगा की पावनता से सिंचित छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय को समर्पित करता हूँ।  इस सहजस्फूर्त गीत को जन जन का प्यार मिले बस यही आकांक्षा है, इसे किसी अनुमोदन या स्वीकृति की आवश्यकता ही नहीं। *** सहज-स्फूर्त विश्वविद्यालय-कुलगीत  * प्रथम पाठ  १. अर्थ का, विज्ञान का, तकनीक का आधार है। विश्वविद्यालय हमारा, ज्ञान का आगार है।  सतपुड़ा के धूपगढ़-सी श्रेष्ठता का यह निलय। मन पठारों-सा सरल पाकर अहं होता विलय। प्राण, पीकर बैनगंगा का सुधारस ठाठ से- लोक-दुर्गम घाट-पर्वत पर लिखे नित जय-विजय। मोगली-मानव-तनय को पाल लेता प्रेम से, वन्य-प्राणी-जगत जीवित-संस्कृति का सार है।                  ...

नए दिन की बधाई

एक कविता *# किंतु ..* फैली हुई धूप बहती हुई हवा हिलती हुई डालियां खिले हुए रंग बिरंगे फूल मैं सबको नए दिन की  बधाई देना चाहता हूं किंतु... प्रातः भ्रमण में निकले बुज़ुर्ग दौड़ते हुए युवा खेलते हुए बच्चे भागती हुई भीड़ आँचल को कमर में दबोचकर कचरा फेंकने निकली गृहणियां मैं सबको नए दिन की  बधाई देना चाहता हूं किंतु... काम पर निकले मज़दूर ऑटो दौड़ाते ऑटोचालक अल्पसंख्यक लुप्त प्राय  साईकल रिक्शा के पैडलों पर पूरी ताक़त झौंकते रिक्शा-चालकों विश्व के सबसे धनी  किंतु अ-दानी के देश में भीख मांगने निकले बच्चे, बूढ़े, औरतें और निराश पुरुष भिखारियों को मैं नए दिन की  बधाई देना चाहता हूं किंतु... किसी के पास फुर्सत नहीं है न इतनी जगह जहां वे इस बधाई जैसे मुफ़्त में बांटे गए पम्पलेट को रख सके फिर भी  ऊपर की सूची में से  आप जो भी हो मैं आपको भी नए दिन की  बधाई देना चाहता हूं किंतु... आप रखते हैं क्या याद ऐसी बधाइयां इनकी क़ीमत लगाते हैं क्या आपके जीवन के ख़ालीपन से लबालब भरे दिल में शेष है क्या कोई जगह? फिर भी.... मैं सबको नए दिन की  बधाई देना चाहता हूं हां, फायदा क्...

एक नवगीत: चिट्ठी आई है।

  चिट्ठी आई है। गांवों में सब हरा भरा है चिट्ठी आयी है। इस सबूत के लिए एक  फ़ोटो चिपकायी है। ज़ीने के सर से ऊपर तक ऊंचा हुआ पपीता। पके हुए फल पायदान से तोडूं, हुआ सुभीता। उसी पपीते ने कद्दू की बेल चढ़ाई है। इस सबूत के लिए.... नींबू के झरबरे पेड़ पर सेमी की मालाएं। तोड़ रहीं हैं जात-पांत की सड़ी गली सीमाएं। सदा साग में स्वाद अनोखा, भरे खटाई है। इस सबूत के लिए.... नन्हे लाल भेजरे ऊपर, तले चने के बिरवे। अमरूदों पर झूल रहे हैं हरे करेले कड़वे। उधर तुअर के बीच घनी,  मैथी छ्तराई है। इस सबूत के लिए.... गांवों में सब हरा भरा है चिट्ठी आयी है।  इस सबूत के लिए एक  फ़ोटो चिपकायी है।         @ कुमार, १६.१०.२४, एकादशी, अपरान्ह १४.३५