मछुआरे का गीत : नवीन गीतल , ० मोह प्राण के सतत बिसारे, तट पर रखकर कूल किनारे। मन के राजा हैं मछुआरे, उनसे हारे सागर खारे।। यदि मन में विश्वास प्रबल हो, तन का जीवन बढ़ जाता है, अगर विफलता लांघ सको तो, सदा सफलता बाट बुहारे।। मोल नहीं है कुछ सांसों का, दो कौड़ी है जिस्म की' क़ीमत, सपनों के इस मुर्दाघर में, कोई कैसे किसे पुकारे।। जगवाले हैं स्यार रंगीले, आंखों का काजल छल लेंगे, इंद्रजाल के जलसाघर में, मृगतृष्णा से सभी सहारे।। हैं भविष्य के बाज़ीगर सब, आशा का पासा फेंकेंगे, 'इनको' घर से बेघर करके, 'उनके' होंगे बारे न्यारे।। @ डॉ. रा. रा. कुमार 'वेणु ', 17-18.07.25, गुरु-शुक्र, (आधार छन्द -चौपाई,मात्रा बन्ध-16,16 )