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Showing posts from September, 2024

ट्रेल ऑफ टीयर्स डे

आज 'ट्रेल ऑफ टीयर्स डे'  है।  आज हजारों कैरोकी और दूसरे मूल अमेरिकन आदिवासियों के त्रासद और कारुणिक विस्थापन को याद करने का दिन भी है, जिसे ओखलाहोमा में बसे उनके वंशज उनकी पीड़ा भरी यादों समर्पित करते हैं। ओखलाहोमा हम इस पीड़ा में आपके साथ हैं।   प्रस्तुत है एक कविता-  आँसुओं की पगडण्डी ० हजारों हजारों सालों से  हजारों हजारों बार खदेड़ा गया है उन्हें अपनी जन्म भूमि से अपने पुरखों की धरती से दुनिया के हर कोने से आक्रमणकारी लुटेरे हमेशा आते हैं रूप और नाम बदलकर लूटने और बर्बाद करने पर किसको? लूट से बनाये गए दुर्ग? शोषण से सजाए गए महल? रक्षा के विश्वास से बनाये गए सत्ता के चमकदार तख़्ते ताउस? नहीं, वे बने रहते हैं। उन पर काबिज़ होकर आक्रामक आततायी तने रहते हैं। लुटती हैं बस्तियां  जो पहले भी लुट रहीं थीं लूटे और तोड़े जाते हैं मोहब्बतों के घर; लूटी जाती हैं  मेहनत से उगाई गईं फसलें; लूटी जाती हैं दुधारू मवेशी और रस भरी रसोइयां। जिनके पास जो भी कीमती था लूट लिया गया जिसको जो भी प्यारा था छीन लिया गया जिसे जान प्यारी थी छीन ली गयी जिसे मान प्यारा था लूट लिया गया दूध पीते बच्चों से उनकी मा

The flying Bird Balaghat : उड़ती चिड़िया

  उड़ती चिड़िया बालाघाट सतपुड़ा पर्वत-श्रृंखला के घेरदार पर्वतों से घिरे, मैंगनीज़ और तांबा के भंडार बालाघाट का जिक्र आते ही सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला याद आती है। याद आती है- कोल-सिटी छिंदवाड़ा; जहां पहली बार भवानीशंकर मिश्र जी के मुख से उनकी प्रसिद्ध कविता ‘सतपुड़ा के घने जंगल’ सुनी थी। यह अनूठा गीत जिसमें वर्णन तो था ‘नींद में डूबे हुए से, ऊंघते अनमने जंगलों’ का लेकिन जिज्ञासा से भरी युवावस्था की पहली अंगड़ाई भाव-विभोर हो गई थी। आठ पदों के इस भाव भरे गीत में, सात पहाड़ों वाले सतपुड़ा का जितना रोमांचक और व्यापक वर्णन होशंगाबाद (नर्मदापुरम्) के टिकरिया में जन्मे इस अमर कवि ने किया है, उसके बाद कुछ कहने के लिए शब्द सामने नहीं आते। अर्जुन की भांति अस्त्र-शस्त्र छोड़कर समर-वाहन (रथ) में पीछे जाकर बैठ जाते हैं। किन्तु इन्हें प्रोत्साहन देकर उठाए बिना, इन दुर्गम किन्तु सुहावनी पर्वतमालाओं की चढ़ाइयां चढ़ेगा कौन? ‘हमसे न होगा’ तो वे सब कह पड़ेंगे, जिन्होंने सतपुड़ा के विशेष-पर्वत ‘महादेव की चोटी’ पर स्थित ‘चैरागढ़’ चढ़ने का अनुभव चखा है। लेकिन किसी को तो उत्साहों की रणभेरी फूंकनी पड़ेगी। मैकल की चिल्पी घाटी उतरक

भारतेंदु और हिंदी जयंती

आज हिंदी के शिखर पुरुष भारतेंदु जी की 175 वीं जयंती है। उन्हें नमन! भारतेन्दु हरिश्चन्द्र   (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी। उनके प्रसिद्ध दोहे-- ' निज-भाषा '* (अवधी) निज-भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। बिन निज-भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय के सूल।। 1 अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन, पै निज-भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।। 2 विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार, सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।। 8 भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात, विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।। 9 सब मिल तासों छाँड़ि कै, दूजे और उपाय, उन्नति 'भाषा' की करहु, अहो भ्रातगन आय।। 10                                    @हरिश्चन्द्र 'भारतेंदु',              बीसवीं सदी में आधुनिक हिंदी, खड़ी बोली, भाखा, हिंदवी के जनक पर तेरहवीं-चौदहवी सदी की हिंदवी के जनक अमीर खुसरो का प्रभाव था। इसका प्रमाण भारतेंदु जी की वे मुकरिया

राष्ट्रीय वन्य प्राणी दिवस

राष्ट्रीय वन्य-प्राणी दिवस।    बाघनगर बालाघाट, 4 सितंबर 2024   आज ' राष्ट्रीय वन्य-प्राणी दिवस ' है - 'National wildlife day'.              प्रतिवर्ष 22 फरवरी और 4 सितंबर को राष्ट्रीय वन्य प्राणी दिवस मनाया जाता है। यह दिन जंगल और उनके मुहाने और पहाड़ों की तराइयों में बसे गांव की यात्राओं, वहां के जन जीवन को समझने, उनके साहस और उनकी जीवटता को समझने, उसकी 'अनुभूति' करने के लिए निर्धारित किये गए हैं। वन्यजीवों के प्रति करुणा और सहानुभूति विकसित करने के लिए प्रतिवर्ष, अक्टूबर के बाद से 'वन विभाग' ' अनुभूति ' कार्यक्रम संचालित करता है। 'अनुभूति' कार्यक्रमों में विद्यालयों के छात्र छत्राओं के शिविर जंगलों में लगाए जाते हैं। वन अधिकारियों और प्रशिक्षित वन-मित्रों के माध्यम से जंगल के अंदर शिविर लगाकर वन्यप्राणियों के प्रति जानकारी भी दी जाती है और उनके स्वभाव की विस्तृत पड़ताल कराई जाती है। सुरेंद्र बडीचार्य प्रशिक्षित वन-मित्र के रूप में बालाघाट के जंगलों में इन शिविरों का संचालन करते हैं और नुक्कड़ नाटकों तथा गीतों के माध्यम से बच्चों को व

बुंदेलखंडी ईसुरी

बुंदेलखंडी ईसुरी    बुंदेलखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि ईसुरी आज भी बुंदेलखंडी बोली के शीर्ष कवि के रूप में याद किये जाते हैं। ईसुरी की रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का वास्तविक और जीवंत चित्रण मिलता है। उनकी ख्‍याति फाग पर लिखी  रचनाओं के लिए है जो युवाओं में बहुत लोकप्रिय हुईं। विद्वानों के अनुसार 'ईसुरी की रचनाओं में निहित बुन्देली लोक जीवन की सरसता, मादकता और सरलता और रागयुक्त संस्कृति की रसीली रागिनी से मदमस्त करने की क्षमता है। ईश्वरी की रचनाएँ प्रगति वर्द्धक जीवन श्रंगार, सामाजिक परिवेश, राजनीति, भक्तियोग, संयोग, वियोग, लौकिकता, शिक्षा चेतावनी, काया, माया पर आधारित है।' बुंदेली काव्य के पितृ-पुरुष ईसुरी को विश्वविद्यालय के बुंदेली पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है जो मध्यप्रदेश के शीर्षोत्तर से लेकर दक्षिणान्त बालाघाट, छिन्दवाड़ा, सिवनी और बेतुल के कुछ अंशों में बोली जानेवाली महत्वपूर्ण भाषा और बोली रही है। विश्वविद्यालयों में सम्मिलित दूसरी 'बोली'(भाषा) 'बघेली' पूर्वोत्तर मध्यप्रदेश शहडोल से रीवा तक आज भी बोली जाती है। इन दोनों के साहित्य में श