आज 'ट्रेल ऑफ टीयर्स डे' है। आज हजारों कैरोकी और दूसरे मूल अमेरिकन आदिवासियों के त्रासद और कारुणिक विस्थापन को याद करने का दिन भी है, जिसे ओखलाहोमा में बसे उनके वंशज उनकी पीड़ा भरी यादों समर्पित करते हैं। ओखलाहोमा हम इस पीड़ा में आपके साथ हैं। प्रस्तुत है एक कविता- आँसुओं की पगडण्डी ० हजारों हजारों सालों से हजारों हजारों बार खदेड़ा गया है उन्हें अपनी जन्म भूमि से अपने पुरखों की धरती से दुनिया के हर कोने से आक्रमणकारी लुटेरे हमेशा आते हैं रूप और नाम बदलकर लूटने और बर्बाद करने पर किसको? लूट से बनाये गए दुर्ग? शोषण से सजाए गए महल? रक्षा के विश्वास से बनाये गए सत्ता के चमकदार तख़्ते ताउस? नहीं, वे बने रहते हैं। उन पर काबिज़ होकर आक्रामक आततायी तने रहते हैं। लुटती हैं बस्तियां जो पहले भी लुट रहीं थीं लूटे और तोड़े जाते हैं मोहब्बतों के घर; लूटी जाती हैं मेहनत से उगाई गईं फसलें; लूटी जाती हैं दुधारू मवेशी और रस भरी रसोइयां। जिनके पास जो भी कीमती था लूट लिया गया जिसको जो भी प्यारा था छीन लिया गया जिसे जान प्यारी थी छीन ली गयी जिसे मान प्यारा था लूट लिया गया दूध पीते बच्चों से उनकी मा