फल-स्वरूप परिणाम  *  भारी होने लगी आजकल,  दिल पर, हल्की सांस।   व्याकुलता के व्यग्र गिद्ध से  बचा न मन का भेद।  गहन टीस के तीक्ष्ण दांत भी  अधर गए हैं छेद।  गहराई में कुंडली मारे  बैठा है संत्रास।   फल-स्वरूप परिणामों का है  निर्दय-निर्मम दंड।  अनहोनी की छैनी करती  हृदय-पिंड के खंड।  न्यायालय आते-जाते ही  मरते सभी प्रयास।   हम विकास की सुनते-सुनते  गठिया-ग्रस्त हुए।  कड़वे काढ़े पी-पीकर भी  केवल त्रस्त हुए।  ऊपर से दो चार सुनाकर  जाती शरद बतास।   नीबू, इमली, आम, अमाड़ी,  हमें चिढ़ाते हैं।  कभी कबीट-करौंदे मिलकर  खूब खिझाते हैं।  चटनी के चटखारे लेकर  चहके बहुत खटास।   @ डॉ. रामकुमार रामरिया,  २२.०७.२०२०, १.२०, अपरान्ह,