बड़ी लम्बी कहानी है...   बहुत दिन बाद आया था  यहां पर हर कदम पर धूल के  रूखे बवंडर थे  हवाएं बदहवासी में  मुझे कसकर पकड़ती थीं  शहर की बेतहासा भागती  पागल सी दुनिया थी  सभी के पैर की ठोकर से गिर जाता  कभी कोई जइफ लम्हा  कभी कोई हसीं लम्हा   मगर जब शाम को  थककर उजाले घर को जा लौटे  तुम्हारा फिर पता खोला  जरा सा चैन आया   अरे,  इस शहर में  अब भी  कहीं पर रातरानी है...   बड़ी लम्बी कहानी है...     0 डा. रा. रामकुमार,