ग़ज़ल आजकल हो गया काबुल पे कब्ज़ा फिर से तालीबान का पढ़ रहा है यह ख़बर इक शख़्स हिंदोस्तान का यह तलब की वहशतें हैं या हुकूमत का नशा गोलियों में भुन रहा है हौसला इन्सान का दहशतें हैं औरतों के जिस्म चीथे जाएंगे सर उछाला जायेगा अब तेग़ पर अफ़ग़ान का हर तरफ़ बंदूक गोले और बारूदी सुरंग जद में तोपों के खड़ा हर शख़्स अब इमरान का एक पलड़े मौत दूजी ओर बदतर ज़िंदगी देखिए क्या फ़ैसला हो वक़त पर मीजान का दीमकें मज़हब उसूलों दीन को चट कर गईं क्या ख़ुदा किरदार बन रह पाएगा बुन्यान का इम्तहां पर इम्तहां ही इस सदी के नाम हैं इक तरफ़ ईमां का पर्चा इक तरफ़ औसान का शब्दार्थ: क़ब्ज़ा : किसी वस्तु पर अधिकार, तेग़ : तलवार, अफ़्ग़ान : अफ़्ग़ानिस्तानी, काबुली, जद : नोंक, निशाना, इमरान : जनसंख्या, आबादी, मीजान : तराज़ू, योगफल, तौल का नतीज़ा, किरदार : चरित्र, पात्र, बुन्यान : नींव, बुनियाद, ईमान : धर्म पर दृढ़ विश्वास, आस्था, पर्चा : प्रश्न पत्र, औसान : त्वरित बुद्धि, विवेक, विज्ञान, ० @कुमार ज़ाहिद, 17.08.2021,