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Showing posts from August, 2021

ग़ज़ल आजकल

  ग़ज़ल आजकल हो गया काबुल पे कब्ज़ा फिर से तालीबान का पढ़ रहा है यह ख़बर इक शख़्स हिंदोस्तान का यह तलब की वहशतें हैं या हुकूमत का नशा गोलियों में भुन रहा है हौसला इन्सान का दहशतें हैं औरतों के जिस्म चीथे जाएंगे सर उछाला जायेगा अब तेग़ पर अफ़ग़ान का हर तरफ़ बंदूक गोले और बारूदी सुरंग जद में तोपों के खड़ा हर शख़्स अब इमरान का एक पलड़े मौत दूजी ओर बदतर ज़िंदगी देखिए क्या फ़ैसला हो वक़त पर मीजान का दीमकें मज़हब उसूलों दीन को चट कर गईं क्या ख़ुदा किरदार बन रह पाएगा बुन्यान का इम्तहां पर इम्तहां ही इस सदी के नाम हैं इक तरफ़ ईमां का पर्चा इक तरफ़ औसान का शब्दार्थ: क़ब्ज़ा : किसी वस्तु पर अधिकार, तेग़ : तलवार, अफ़्ग़ान : अफ़्ग़ानिस्तानी, काबुली, जद :   नोंक, निशाना, इमरान : जनसंख्या, आबादी, मीजान :  तराज़ू, योगफल, तौल का नतीज़ा, किरदार : चरित्र, पात्र, बुन्यान :  नींव, बुनियाद, ईमान  : धर्म पर दृढ़ विश्वास, आस्था, पर्चा : प्रश्न पत्र, औसान :  त्वरित बुद्धि, विवेक, विज्ञान, ० @कुमार ज़ाहिद, 17.08.2021,

पैमाना और परीक्षा

  पैमाना और परीक्षा जो शीशा जानकर तोड़ें तो पत्थर टूट जाते हैं, ये सुख ही हैं जो दुख में हाथ मलते हैं। धूप को धूप समझिए तो बदन जलते हैं। ये तीन पंक्तियों की कविता थी, जो लकड़ी के एक फुटिया पीले पैमाने पर नीले बॉल-पेन से उर्दू में लिखी हुई थी। यह पैमाना महाविद्यालय के प्राचार्य और परीक्षा-महा-अधीक्षक आचार्य मेघनाथ कन्नौजे के सामने गवाही के तौर पर मुझसे पढ़वाया जा रहा था। जैसे ही मैंने तीसरी पंक्ति पढ़ी, आसपास सेनापतियों की तरह खड़े प्राध्यापकों के मुंह से वाह वाह निकल पड़ा। आचार्य मेघनाद कन्नोजे जो हिंदी के विद्वान प्राध्यापक थे, मुस्कुराने लगे। अपनी  'यथानाम तथा गुण' गहरी और भारी मेघवाणी में उन्होंने पूछा :" क्या तुमने ही इस पैमाने पर ये पंक्तियां लिखीं? यह किस शायर का शेर है?" "जी मैंने ही परीक्षा में सारे उत्तर लिखने के बाद, आखिर के ख़ाली समय में बैठे-बैठे ऐसे ही बना दिया?" "पैमाने पर क्यों लिखा?" "कुछ और नहीं था सर लिखने के लिए।" "और यह पैमाना इनके पास कैसे आया?" अब 'इनके' की तरफ़ मैंने देखा। वह मेरा सहपाठी और गहरा दो...