अतिथि देवो भव!? अर्थात् नववर्ष शुभ हो!! हमारा समाज ही ऐसा है कि हमारे यहां लोग आते-जाते रहते है। कुछ लोगों का हमें इंतजार रहता है कि साल-छः महीने में वो आएं-जाएं। मज़ा इसी में है कि औचक आएं और भौचक कर जाएं। औचक आनेवाले को अतिथि कह सकते है। जो सावधान करके आए वो कोई खास ही होता है और खास किस्म के इंतजाम का अभिलाषी होता है। खास व्यक्ति पहले से इत्तला कर के आए ऐसा हर सुग्रहणी चाहती है। सुव्यवस्थित रहने में ग्रहणी की नाक रह जाती है। ग्रहणियां बड़ी संवेदनशील होती हैं। कई परिवारों में पत्नियां अपने पतियों से झगड़ पड़ती है कि तुमने बिना किसी सूचना के अपने किसी खास साथी को खाने पर बुलवा लिया, यह अच्छा नहीं किया। हमारे ग्रहणित्व पर प्रश्नचिन्ह लगवा दिया। कुछ कमी रह गई तो हमारी क्या रह जाएगी? ग्रहणियां सुव्यवस्थित और सलोना घर बनाना चाहती हैं। कुल मिलाकर जो पूर्व सूचना के आते हैं, उन्हें अतिविशिष्ट अतिथि कहते हैं। किन्तु, इन्हें अतिथि कैसे कहोगे? ये तो सतिथि या सुतिथि हैं। किसी कार्यक्रम के अतिथि और मुख्य अतिथि भी पूरी तरह से सुनिर्धारित और सुनिश्चित तिथि पर आनेवाले लोग हैं। इनकी विश...