मित्रों ! इन दिनों आपने भी देखा होगा कि जिसके जो मुंह में आ रहा है बोले जा रहा है। जिसको जहां जगह मिल रही है वहां मुंह मार रहा है। किस मुंह से लोग भ्रष्टाचार के विरोध में बोल रहे हैं और किस मुंह से लोग भ्रष्टाचार विरोधियों को पीटकर अपने मुंह से उसे उचित बता रहे हैं , यह समझ में नहीं आ रहा है। कौन सा मुंह लेकर कौन आएगा और आपके मुंह पर किसका मुखौटा चिपका जाएगा ,यह सोचकर ही झुरझुरी आ जाती है। इसी झुरझुरी को मिटाने के लिए मैंने अपने ही मुंह को टटोलकर देखने की कोशिश की है। ‘ये मुंह और मसूर की दाल’ की तरह ‘छोटे मुंह बड़ी बात’ शायद कह रहा हूं और ‘मुंह उठाए’ आपके पास चला आया हूं। मैं आपका ‘मुंह इस उम्मीद में देख रहा हूं’ कि आप ‘मुंह बनाते है’ या मुस्कुराते हैं। मेरा मुंह मेरे पास एक मुंह है। किसी किसी के पास दो होते हैं। किसी के पास तीन होते हैं। चार मुंह वाले भी सुने हैं। पांच मुंह वाले एक मृत्युंजय के बारे में भी सुना है। उन्हीं का एक पुत्र छः मुंह वाला है। बात बढ़ी है तो दस मुंह वाले तक पहुंची है। एक समय ऐसा भी आया कि अलग अलग मुंह लेकर प्रकट होनेवाले एकमुखी ने पिछले सारे पिद्दियों के रिक...