कुदरत ने दिल खोल प्यार छलकाया बांझ आम इस बार बहुत बौराया ।। देख रहा हूं नीबू में कलियां ही कलियां । फूलों से भर गई नगर की उजड़ी गलियां। निकले करते गुनगुन भौंरे काले छलिया। उधर दबंग पलाशों ने भी अपना रंग दिखाया।। बांझ आम इस बार बहुत बौराया ।। खुसुर फुसुर में छुपे हुए फागुन के चरचे। नमक तेल के साथ जुड़े रंगों के खरचे। मौसम ने खोले रहस्य के सारे परचे। कठिन परीक्षा है फिर भी उत्साह समाया । बांझ आम इस बार बहुत बौराया ।। लहरायी बाली गेहूं की चने खिले हैं। मिटे मनों के मैल खेत फिर गले मिले हैं। बंधे जुओं के बैल चैन से खुले ढिले हैं। गीत हवा ने लिखे झकोरों ने हिलमिलकर गाया। बांझ आम इस बार बहुत बौराया ।। 17.02.11 गुरुवार