tag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post5034231588572189663..comments2024-02-28T00:50:07.173-08:00Comments on अनुभूतियां-अभिव्यक्तियां: मार्बल सिटी का माडर्न हॉस्पीटलDr.R.Ramkumarhttp://www.blogger.com/profile/09073007677952921558noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-24769487149301242322010-09-01T11:12:08.809-07:002010-09-01T11:12:08.809-07:00मित्रवृंद सादर वंदे!सलाम!
इंतजार होगा जानता हूं पर...मित्रवृंद सादर वंदे!सलाम!<br />इंतजार होगा जानता हूं पर मजबूर हूं ...<br />कुछ वक्त हमेशा भारी हुआ करता है।<br />पर शीघ्र आऊंगा..आपकी दुआओं से..Dr.R.Ramkumarhttps://www.blogger.com/profile/09073007677952921558noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-86101644881897311452010-09-01T11:08:18.630-07:002010-09-01T11:08:18.630-07:00डा.संध्या,
आपने बहुत देर तक मौन रहने की वाजिब शिका...डा.संध्या,<br />आपने बहुत देर तक मौन रहने की वाजिब शिकायत की है। इन दिनों मैं ‘‘शल्यचिकित्सा कांड’’ का मूक और पीड़ित पक्षकार बना रहा। वह मैं शीघ्र लेकर आ रहा हूं. <br />आपकी प्रतीक्षा में भी एक बहुत बड़ी और सबल टिप्पणी का वजन है। यह मुझे ऊर्जित करेगी..<br />कृतज्ञ हूं...Dr.R.Ramkumarhttps://www.blogger.com/profile/09073007677952921558noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-71489170957704779782010-08-29T07:32:50.056-07:002010-08-29T07:32:50.056-07:00"Bikhare Sitare" pe aapkee tippanee kee ..."Bikhare Sitare" pe aapkee tippanee kee shukr guzaree kee hai...zaroor gaur karen!kshamahttps://www.blogger.com/profile/14115656986166219821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-31849995367389493842010-08-27T01:22:30.344-07:002010-08-27T01:22:30.344-07:00काफी दिनों से कुछ नया पोस्ट नहीं किया आपने?काफी दिनों से कुछ नया पोस्ट नहीं किया आपने?sandhyaguptahttps://www.blogger.com/profile/07094357890013539591noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-21768634991096290312010-08-19T08:12:48.825-07:002010-08-19T08:12:48.825-07:00डॉ रामकुमार जी , बेशक आपका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर ग़ज़ब ...डॉ रामकुमार जी , बेशक आपका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर ग़ज़ब का है ।<br />बहुत बारीकी से आपने अस्पताल का हाल बयाँ किया है ।<br />अपने काम को एन्जॉय करना तो कोई बुरी बात नहीं । लेकिन ऐसा करने में किसी को तकलीफ हो सकती हो तो सही नहीं है ।<br />आज चिकित्सा जगत ही नहीं , लगभग सभी विभागों का यही हाल है , बल्कि और भी बदतर है । शिक्षा विभाग हो या पुलिस विभाग , सेल्स टैक्स , ट्रांसपोर्ट , और क्या क्या गिनाएं --नाम भी नहीं ले सकते उनका । <br />हरकीरत जी से सहमत --अपने पर हँसना सबके बस की बात नहीं ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-66569497228908371032010-08-19T00:09:18.547-07:002010-08-19T00:09:18.547-07:00पहले ही पढ़ गयी थी आपका ये अद्भुत व्यंग लेखन .........पहले ही पढ़ गयी थी आपका ये अद्भुत व्यंग लेखन ......<br />टिपण्णी भी लिखी एक बार नहीं दो बार ....पर हर बार बिजली धोखा दे जाती .....<br /><br />@ इस माडर्न हास्पीटल में मेरी सूरत रिसेप्सनिस्ट लड़के को पसंद नहीं आई तो उसने मुझे दूसरे रिसेप्सनिस्ट के पास भेज दिया। वह लड़की थी। उसे भी मेरी सूरत पसंद नहीं आई। उसने फिर उसी लड़के के पास जाने के लिए कहा। मैंने कहा: ‘‘उन्होंने ने ही आपके पास भेजा है।’’ लड़की ने लड़के को प्यार से घूरकर देखा और मुझसे बोली:‘‘ स्लिप किसके नाम से बननी है?’’ ऐसा कहकर उसने फिर लड़के को देखा जो अब मुस्कुरा रहा था। मैं समझ गया मामला क्या था ।<br />क्या कहूँ इतना आसान नहीं होता अपने आप पर व्यंग कर के लिखना .....और दूसरों को हंसना ......<br /><br />@ मैं परेशान हो गया जिसे देखकर बाकी लोगों के चेहरे पर हंसी आ गई। मुझे अच्छा लगा।.......बहुत खूब ......!!<br /><br />@बहुत से लोगों की मानसिक परेशानी तो इस लिफ्ट से ही दूर हो जाती होंगी। ...हा...हा...हा......<br /><br />@ व्हील चेयर अपनी गति से अंदर दौड़ गई जिसे अंदर खड़े दूसरे वार्डबाॅय ने हंसकर लपक लिया। हास्पीटल की नीरस जिन्दगी में कितने मज़े से ये लोग रस घोल रहे हैं । मरीजों का क्या, अच्छे हो गए तो घर लौटेंगे वर्ना मरना तो है ही एक दिन। बेहतर है वार्डबाॅय का मनोरंजन करते हुए मरें। .....<br />बहुत खूब ....अभी कुछ दिनों पहले पड़ोसी के लड़के की मौत में हास्पिटल यही नजारे देखने को मिले थे .......<br /><br />कुछ ब्लॉग जगत में डॉ मित्र भी हैं चाहती हूँ वे भी ये पोस्ट पढ़ें .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-62055475329889081292010-08-14T02:58:48.819-07:002010-08-14T02:58:48.819-07:00मैं सीढ़ियों से ऊपर भागा। सीढ़ियां चढ़ने से कुण्ठा और...मैं सीढ़ियों से ऊपर भागा। सीढ़ियां चढ़ने से कुण्ठा और अवसाद दूर होते हैं, ऐसा योग की किताबों में लिखा है और मैंने भी अनुभव किया है। सीढ़ियां चढ़कर जाने से मेरी कुण्ठा और अवसाद दूर हो गये। <br /><br />ek baar aur badhaikumar zahidhttps://www.blogger.com/profile/16434201158711856377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-9258307080314296692010-08-12T08:28:36.171-07:002010-08-12T08:28:36.171-07:00aap sabhi ne jis gambheerta se aalekh ko padha hai...aap sabhi ne jis gambheerta se aalekh ko padha hai us sahridyata ka aabhaar.Dr.R.Ramkumarhttps://www.blogger.com/profile/09073007677952921558noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-57216193465100440842010-08-12T03:22:14.817-07:002010-08-12T03:22:14.817-07:00शिक्षा और स्वास्थ्य आदमी की सबसे बड़ी कमजोरियां हैं...शिक्षा और स्वास्थ्य आदमी की सबसे बड़ी कमजोरियां हैं, इसलिए इनका दोहन भी उतना ही ताकतवर है।इस बात को आज के पूंजीवादी खूब समझते हैं तभी प्राइवेट स्कूल और so called modern हस्पताल गली गली मिलेंगे ..<br />प्राइवेट हस्पताल में भी इतनी मारामारी किसे दोष दें...रोबोट बने इंसानों को ये फिर पैसा भगवान् बन गया है उस बात को..<br />या फ़िर सम्वेंदनाएं मूक हो गयी हैं इस बात को??<br />बात जो भी हो है तो परेशानी का सबब ..<br />आप ने इतनी परेशानियां झेलीं जसे व्यंग्य के रूप में यहाँ प्रस्तुत किया ..यह शायद हर एक आम इंसान की व्यथा है reception से ले कर वार्ड तक या फ़िर examination रूम से लेकर हस्पताल से छुट्टी मिलने तक ..ऐसी ही न जाने कितनी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं ...modern और प्राइवेट हस्पतालों में भी भीड़ है ..क्या करें?सब जगह बुरा हाल है ..बहुत अच्छा व्यंग्य लिखते हैं आप.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-35421949467708686612010-08-12T02:53:36.216-07:002010-08-12T02:53:36.216-07:00मैं कहूँगा भाग्य अच्छे थे जो आपके ब्लॉग पर आना हुआ...मैं कहूँगा भाग्य अच्छे थे जो आपके ब्लॉग पर आना हुआ और इतना रोचक दमदार लेखन पढने को मिला...हास्पिटल का जो वर्णन आपने किया है वो कमोबेश इस देश के प्रत्येक हास्पिटल का है...आपने जिस अंदाज़ में पूरे घटना क्रम को प्रस्तुत किया है उसकी प्रशंशा के लिए हिंदी के शब्दकोष में उचित शब्द का अभाव है...मेरी मजबूरी समझते हुए आप इस वक्त केवल वाह वा...अद्भुत.. लाजवाब आदि शब्दों से मेरी भावना को समझें...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-64880297192773727112010-08-01T03:10:54.360-07:002010-08-01T03:10:54.360-07:00आदरणीय तिलकराज कपूर साहब ने मुझे एक ई मेल भेजा ......आदरणीय तिलकराज कपूर साहब ने मुझे एक ई मेल भेजा ...ई मेल नीचे दे रहा हूं..<br /><br />डॉ साहब <br />आपकी रचना में श् और ष् की समस्या ठीक कर भेज रहा हूँ।<br />कृति देव के दो वर्शन प्रचलन में हैं एक में दोष है एक में नहीं। आप कृति देव के स्थान पर देव लिज़ या कृष्णा का उपयोग करें, उसमें ये दोष नहीं है।<br />सर्वोत्तम विकल्प तो यह है कि सीधे हिन्दी IME का उपयोग कर यूनीकोड में पाठ टाईप करें।<br />सादर<br />तिलक राज कपूर<br /><br />मित्रों <br />ब्लाग की दुनिया में बेहतर ब्लागों में अपनी टिप्पणियों के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रसिद्ध श्री तिलकराज कपूर साहब को कौन नहीं जानता । वे मेरे ब्लाग में आए, रचना पढ़ी और मेरे रास्ते में आनेंवाली कठिनाई को किस सहज सकारात्मकता के साथ दूर कर गए...सारी रचना को मेहनत से पढ़कर और फोन्ट सुधारकर यह अनुकरणीय है। <br /><br />अब जो आप पढ़ रहे है वह आदरणीय तिलकराज कपूर साहब का कृति देव में संशोधित कर भेजा गया वर्जन पढ़ रहे हैं<br />कपूर साहब !आपका आभार..<br />उम्मीद है आना जारी रखेंगे इसी प्रकार की तकनीकी सहायता की आत्मीयता के साथDr.R.Ramkumarhttps://www.blogger.com/profile/09073007677952921558noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-47274993984932998822010-07-31T09:17:03.141-07:002010-07-31T09:17:03.141-07:00करारा व्यंग्य.
आपकी लेखनी में जादू है.करारा व्यंग्य.<br />आपकी लेखनी में जादू है.शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद''https://www.blogger.com/profile/09169582610976061788noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-9561830941911165692010-07-31T03:26:16.594-07:002010-07-31T03:26:16.594-07:00शिक्षा और स्वास्थय- जीवन की दो आधारभूत आवश्यकता.पर...शिक्षा और स्वास्थय- जीवन की दो आधारभूत आवश्यकता.पर हमारे देश में इनकी दशा या दुर्दशा के बारे में क्या कहा जाय ?sandhyaguptahttps://www.blogger.com/profile/07094357890013539591noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-27287439397276256892010-07-30T08:27:44.387-07:002010-07-30T08:27:44.387-07:00दुर्बल को सताने में मज़ा आता है और आत्मबल प्राप्त ह...दुर्बल को सताने में मज़ा आता है और आत्मबल प्राप्त होता है , इसलिए आत्मतुश्टि के लिए हम पूरी ताकत लगाकर पूरा आनंद प्राप्त करते हैं।<br />is baat hame bhi taklif hoti ki log samjh ki vajay istmaal kyo karte hai ya majboori ka fayda uthane me nahi chukte .ye sanstha hamare suvidha ke liye hoti ya .....?samjh nahi aaya sab kuchh vyapaar ban raha hai ..rochak aur aham vishya .ज्योति सिंहhttps://www.blogger.com/profile/14092900119898490662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-63853839867513078742010-07-28T07:34:14.669-07:002010-07-28T07:34:14.669-07:00एक अच्छा व्यंग्य। शायद यही हाल शिक्षा की दूकानो...एक अच्छा व्यंग्य। शायद यही हाल शिक्षा की दूकानों का है। एक दौड़ चल रही है और आगे निकलने की होड़ में नैतिक मूल्य पैरों तले रौंदे जा रहे हैं।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-86665271564529831842010-07-26T21:05:56.483-07:002010-07-26T21:05:56.483-07:00रोचक वृत्तान्त । लगभग हर जगह ऐसा ही है ।रोचक वृत्तान्त । लगभग हर जगह ऐसा ही है ।अरुणेश मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/14110290381536011014noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-71452958102589539402010-07-24T21:58:51.484-07:002010-07-24T21:58:51.484-07:00हमेशा की तरह ही, गज़ब की पडताल करता व्यंग्य...हमेशा की तरह ही, गज़ब की पडताल करता व्यंग्य...Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-22246293696065534862010-07-23T11:14:09.070-07:002010-07-23T11:14:09.070-07:00इन दिनों चिकित्सा से बड़ा मुनाफे़ का उद्योग कोई दूस...इन दिनों चिकित्सा से बड़ा मुनाफे़ का उद्योग कोई दूसरा भी हो सकता है, इस समय मैं याद नहीं कर पा रहा हूं। नहीं जानता यह कहना ठीक नहीं। शिक्षा भी आज बहुत बड़ा व्यवसाय है। बिजली , जमीन , शराब , बिग-बाजार आदि भी बड़े व्यवसाय के रूप में स्थापित हैं। <br />षिक्षा और स्वास्थ्य आदमी की सबसे बड़ी कमजोरियां हैं ,इसलिए इनका दोहन भी उतना ही ताकतवर है। हमें जिन्दगी में यह सीखने मिलता है कि बलषाली को दबाने में हम षक्ति या बल का प्रयोग करना निरर्थक समझते हैं , इसलिए नहीं लगाते। दुर्बल को सताने में मज़ा आता है और आत्मबल प्राप्त होता है , इसलिए आत्मतुश्टि के लिए हम पूरी ताकत लगाकर पूरा आनंद प्राप्त करते हैं।<br /><br />करीब सौ डेढ सौ फीट का लम्बा गलियारा चिकनी टाइल्स का था। उसपर भारी ,भरी पूरी करीब सात आठ फुट ऊंची मशीन को लुढकाने का मज़ा ही कुछ और था। जिसने देखा दंग रह गया। एक्स रे कक्ष से लिफ्ट की दूरी करीब साठ सत्तर फीट तो होगी। उस मौजी तकनीशियन ने उसे वहीं से पुश कर दिया तो मशीन तेजी से लिफ्ट की तरफ दौड़ पड़ी। वहां एक वार्ड बॉय खड़ा था । उसने हंसते हुए कैच ले लिया। हमारी जान में जान आई। अगर इस बीच कोई मरीज या उसका परिजन बीच में आ जाता तो ? फिर मैं अपनी इस मुर्खतापूर्ण सोच पर शर्मिन्दा हो गया। मैंने अपने को समझाया: यह हॉस्पीटल है भैये, दुर्घटना से कैसा डर ? <br /><br />कितनी बारीकी से आप चीजों की तह परजाते हैं और विडम्बनाओं पर कितना तीखा प्रहार करते हैं ..वाह..!!! शायद यह कहना भी विडम्बना ही है।kumar zahidhttps://www.blogger.com/profile/16434201158711856377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-69618540205147142442010-07-23T11:13:39.450-07:002010-07-23T11:13:39.450-07:00इन दिनों चिकित्सा से बड़ा मुनाफे़ का उद्योग कोई दूस...इन दिनों चिकित्सा से बड़ा मुनाफे़ का उद्योग कोई दूसरा भी हो सकता है, इस समय मैं याद नहीं कर पा रहा हूं। नहीं जानता यह कहना ठीक नहीं। शिक्षा भी आज बहुत बड़ा व्यवसाय है। बिजली , जमीन , शराब , बिग-बाजार आदि भी बड़े व्यवसाय के रूप में स्थापित हैं। <br />षिक्षा और स्वास्थ्य आदमी की सबसे बड़ी कमजोरियां हैं ,इसलिए इनका दोहन भी उतना ही ताकतवर है। हमें जिन्दगी में यह सीखने मिलता है कि बलषाली को दबाने में हम षक्ति या बल का प्रयोग करना निरर्थक समझते हैं , इसलिए नहीं लगाते। दुर्बल को सताने में मज़ा आता है और आत्मबल प्राप्त होता है , इसलिए आत्मतुश्टि के लिए हम पूरी ताकत लगाकर पूरा आनंद प्राप्त करते हैं।<br /><br />करीब सौ डेढ सौ फीट का लम्बा गलियारा चिकनी टाइल्स का था। उसपर भारी ,भरी पूरी करीब सात आठ फुट ऊंची मशीन को लुढकाने का मज़ा ही कुछ और था। जिसने देखा दंग रह गया। एक्स रे कक्ष से लिफ्ट की दूरी करीब साठ सत्तर फीट तो होगी। उस मौजी तकनीशियन ने उसे वहीं से पुश कर दिया तो मशीन तेजी से लिफ्ट की तरफ दौड़ पड़ी। वहां एक वार्ड बॉय खड़ा था । उसने हंसते हुए कैच ले लिया। हमारी जान में जान आई। अगर इस बीच कोई मरीज या उसका परिजन बीच में आ जाता तो ? फिर मैं अपनी इस मुर्खतापूर्ण सोच पर शर्मिन्दा हो गया। मैंने अपने को समझाया: यह हॉस्पीटल है भैये, दुर्घटना से कैसा डर ? <br /><br />कितनी बारीकी से आप चीजों की तह परजाते हैं और विडम्बनाओं पर कितना तीखा प्रहार करते हैं ..वाह..!!! शायद यह कहना भी विडम्बना ही है।kumar zahidhttps://www.blogger.com/profile/16434201158711856377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4997677413319818638.post-1997847297948890562010-07-23T10:58:55.555-07:002010-07-23T10:58:55.555-07:00....‘चलना ही जिन्दगी है’ के भाव से हम फिर चल पड़े। .......‘चलना ही जिन्दगी है’ के भाव से हम फिर चल पड़े। <br /><br />बहुत ही दर्द भरी अभिव्यक्ति एक से बढ़ कर एक और बेमिसाल. यहाँ दिल्ली में भी यही हाल है या इससे भी बदतर. बाहर और भीतर के बीच जमीन आसमान का अंतर है हर सुविधा होते हुए भी न के बराबर रहती हैरचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.com